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पाइअसहमहष्णवो
मुत्ति-मुरुमुंड चउक' (संबोध २)। ३ शरीर, देह (सुर १, मुद्दिा स्त्री [मुद्रिका] अँगूठो (पएह १, | तक को अवस्था (ठा १०-पत्र ५१९; तंदु ३, पात्र)। ४ काठिन्य, कठिनत्व (हे २, | मुद्दिआ । ४; कप्पः प्रौपः तंदु २६)। बंध १६)।३० प्राप्र)। मंत वि [मत् ] मूर्तिवाला, पुं[बन्ध] ग्रन्थि-बन्ध, बन्ध-विशेष (ोघ मुर अक [लड् ] १ विलास करना। २ सक. मूर्त, रूपी (धर्मवि ६; सुपा ३८६; श्रु ६७)।
उत्पीड़न करना । ३ जीभ चलाना। ४ उपक्षेप मुत्ति स्त्री [मुक्ति] १ मोक्ष, निर्वाण (प्राचा;
मुद्दिआ स्त्री [मृद्वीका] १ द्राक्षा को लता करना। ५ व्याप्त करना । ६ बोलना। ७ पान; प्रासू १५५)। २ निर्लोभता, संतोष (परण १-पत्र ३३) । २ द्राक्षा, दाख (ठा फेंकना । मुरइ (प्राकृ ७३)। (श्रा ३१)। ३ मुक्त जीवों का स्थान,
४, ३-पत्र २३६; उत्त ३४, १५, पव मुर अक [स्फुट ] खोलना। मुरइ (हे ४, ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (ठा ८-पत्र ४४०)।
११४; षड् ) ४ निस्संगता (प्राचा)।
मुद्दी स्त्री [दे] चुम्बन (दे ६, १३३)। मुर पु[मुर] दैत्य-विशेष । 'रिउ पुरिपु] मुत्ति वि [मूत्रिन] बहु-मूत्र रोगवाला: 'उरि मुदुय देखो मुद्ग (पएण १ -पत्र ४८)। श्रीकृष्ण (ती ३) + वेरिय पुं [वैरिन्] च पास मुत्ति च सूरिणयं च गिलासिणं' (प्राचा)
मुद्ध देखो मुढ (प्रौपः कप्प; अोघभा १६ वही अर्थ (कुमा), रि पुं[रि] वही मुत्ति वि मौतिन्, मौक्तिक] मोतो पिरोने
कुमा) न वि [ न्य] १ मस्तक में उत्पन्न। अर्थ (वजा १५४)। या गूथने वाला (उप पृ २१०)।
२ मस्तक-स्थ, अग्रेसर । ३ मूर्धस्थानीय रकार मुरई स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे ६, १३५)।v
आदि वर्ण (कुमा) य पुं [ज] केश, मुरज पुं[मुरज] मृदंग, वाद्य-विशेष (कप्प; मुत्तिअ न मौक्तिक मुक्ता, मोती (से ५,
बाल (पएह १, ३–पत्र ५४), "सूल न ४६ कुप्र ३; कुमा, सुपा २४; २४६; प्रासू
मुरय । पान; गा २५३, सुपा ३६३; अंत; [शूल] मस्तक-पीड़ा, रोग-विशेष (णाया ३६ १७१)। देखो मोत्तिअ ।
धर्मवि ११२, कुप्र २८८ औपः उप पू
२३६) । देखो मुख। मुत्तोली स्त्री [दे] १ मूत्राशय (तंदु ४१)। मुद्ध वि [मुग्ध] १ मूढ, मोह-युक्त । २ ___ सुन्दर, मनोहर, मोह-जनक (हे २, ७७: प्रातः
मुरल पुं.ब. [मुरल] एक भारतीय दक्षिण २ वह छोटा कोठा जो ऊपर नीचे संकीर्ण और मध्य में विशाल हो (राज)।कुमाः विपा १, ७–पत्र ७७)।
देश, केरल देश; दियर ण दिट्ठा नुए मुरला' मुत्थ त्रि [मुस्त] मोथा, नागरमोथा (गउड)। मुद्धा स्त्री [मुग्धा] मुग्धा स्त्री, नायिका का
(गा ८७६) एक भेद, काम-चेष्टा-रहित अंकुरित यौवना
मुरव देखो मुरय (प्रौप, उप पृ २३६)। २ स्त्री.त्था (संबोध ४४ कुमा) (कुमा)।
अंग-विशेष, गल-घण्टिका (प्रौप)।. मुदग्ग देखो मुअग्ग (ठा ७–पत्र ३८२)
मुद्धा (अप) देखो मुहा (कुमा)। मुरवि स्त्री [दे. मुरजिन्] आभरण-विशेष मुदा नी [मुद्] हर्ष, खुशी। गर वि
मुद्धाण देखो मुढ (उवाः कप्पः पि ४०२)। (औप)। [कर] हर्षजनक (सूत्र १, ६, ६)।
मुब्भ पुं[दे] घर के ऊपर का तिर्यक् काष्ठ, | मुरिअ वि [स्फुटित] खीला हुआ (कुमा) । मुदुग पुं[दे] ग्राह-विशेष, जल-जन्तु की गुजराती में 'मोम' (दे ६, १३३)। देखो मुरिअ विदे] १ त्रुटित, टूटा हुमा (दे ६, एक जाति (जीव १ टी--पत्र ३६) मोभ ।
१३५)। २ मुड़ा हुप्रा, वक्र बना हुआ (सुपा मुद्द सक [मुद्र] १ मोहर लगाना। २
मुमुक्खु वि [मुमुक्षु] मुक्त होने की चाहबन्द करना। ३ अंकन करना । मुद्देह (धम्म
वाला (सम्मत्त १४०)
| मुरिअ ' [मौर्य] १ प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश (उप ११ टी)।
मुम्मुइ । वि [मूकमूक] १ अत्यन्त मूक। २११ टी)। २ मौर्य वंश में उत्पन्न; 'रायगिहे मुइंग [दे] १ उत्सव । २ सम्मान (?)
मुम्मुय । २ अव्यक्तभाषी (सूम १, १२, | मू(? मु)रियबलभद्दे' (विसे २३५७) । (स ४६३, ४६४)।
५; राज)।
मुरंड पुं[मुरुण्ड] १ अनार्य देश-विशेष मुद्दग) [मुद्रिका] अँगूठी (उवा); 'लद्धो मुम्मुर सक [चूर्णय ] चूरना, घूर्ण करना ।
(इक; पव २७४) । २ पादलिप्तसूरि के समय मुद्दय । भद्द ! तुमे कि अह अंगुलिमुद्दो मुम्मुरइ (प्राकृ ७५)।
का एक राजा (पिंड ४६४ ४६८)। ३ एसो' (पउम ५३, २४)। मुम्मुर पुं[दे] करीष, गोइंठा (दे ६, १४७)।
पुंस्त्री. मुरुएड देश का निवासी मनुष्य (पएह मुद्दा स्त्री [मुद्रा] १ मोहर, छाप (सुपा ३२१; मुम्मुर पुं[दे. मुमुर] १ करीषाग्नि, गोइंठा
१,१-पत्र १४) । स्त्री. °डी (इक)। वजा १५६)। १ अँगूठी (उवा)। ३ अंग- की आग (दे ६, १४७जी ६) । २ तुषाग्नि विन्यास-विशेष (चैत्य १४)।
मुरुक्कि स्त्री [दे] पक्वान-विशेष (सण) । (सुर ३, १८७)। ३ भस्म-च्छन्न अग्नि, मुद्दिअ वि [मुद्रित] १ जिस पर मोहर भस्म-मिश्रित अग्नि-करण (उप ६४८ टी
मुरुक्ख देखो मुक्ख = मूर्ख (हे २, ११२ लगाई गई हो वह । २ बंद किया हुआ जी ६; जीव १)।
कुमा, सुपा ६११, प्राकृ ९७) (णाया १,२-पत्र ८६; ठा ३, १-पत्र | मुम्मुही स्त्री [मुन्मुखी] मनुष्य की दश मुरुमुंड [दे] जूट, केशों की लट (दे ६, १२३, कप्पू, सुपा १४४; कुप्र ३१)। दशाओं में नववीं दशा-८० से ६० वर्ष ११७)।
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