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६८२ पाइअसहमहण्णवो
महिस्सर-महेसर महिस्सर पु[महेश्वर] एक इन्द्र, भूतवादि- पुं[ भार] छन्द-विशेष (पिन) मक्खिया, महुर पुं महुर] १ मनायं देश-विशेष । २ देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३- 'मच्छिा स्त्री [ मक्षिका] शहद की। उस देश में रहनेवाली अनार्य मनुष्य-जाति पत्र ८५)। देखो महेसर।
मक्खी; 'अह उड्डियाउ तोमरमुहाउ महुक्खि (पएह १, १-पत्र १४)।मही स्त्री [महा] १ पृथिवा, भूमि, धरती
(?मक्खि)याउ सव्वत्तो' (धर्मवि १२४ महुर वि [मधुर] १ मीठा, मिष्ट (कुमाः (कुमा, पान)। २ एक नदो (ठा ५, २
गा ६३४)। "मय वि ["मय] मधु से प्रासू ३३; गउडा गा ४०१)। २ कोमल पत्र ३०८) । ३ छन्द-विशेष (पिंग)। 'नाह
भरा हुआ (से १, ३०)। मह पुं[मथ] | (भग ६, ३१; प्रौप)। भासि वि पुं[नाथ राजा (उप पृ.६१) । पहु
विष्णु, बासुदेव, उपेन्द्र (पान से १,१७)। [भाषिन् ] प्रिय-भाषी (पउम ६, १३३) । [ प्रभु] राजा (उप ७२८ टी) । पाल
२ भ्रमर (से १, १७)। मह पु [मह] महुरा स्त्री [मथुरा] भारत की एक प्रसिद्ध पुं[पाल] वही अर्थ ( १५. टी, उव)।
वसन्त का उत्सव (से १, १७) महण नगरी, मथुरा (ठा १०० सम १५३; परह रुह पु रुह] वृक्ष. पेड़ (पास, सुर ३,
पु[ मथन] १ विष्णु (से १,१: वज्जा २४ । १, ३, हे २, १५०; कुमाः वज्जा १२२) । ११०; १६, २४८), वइ पु. [पति]
गा ११७; हे ४,३८४ पि १४३; पिंग) । २ | मंगु ' [मङ्ग ] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य राजा (श्रा २८ उप १४६ टीः सुपा ३८)।
समुद्र, सागर। ३ सेतु, पुल (से १, १) (सिक्खा ६२)। हिव ' [धिप] मथुरा 'वीढ न [पीठ] भूमि-तल (सुर २, ७४) ।
मास पु[ मास] चैत मास (भवि)। का राजा (कुमा)।स पू[श राजा (श्रा १४)। सक्क पु.
'मित्त पुन [मित्र] कामदेव (सुपा महरालिअ वि [दे] परिचित (दे ६, १२५)। [शक वही अर्थ (श्रा १४)। देखो
५२६)1 'मेहण न [ मेहन] रोग-विशेष, महरिम पंत्री [मधुरिमन्] मधुरता, माधुर्य महि। मधु-प्रमेह (पाचा १, ६, १, २)। 'मेहणि
(सुपा २६४: कुप्र ५०)। वि [ मेहनिन् ] मधु-प्रमेह रोगवाला महु पु[मधु] १ एक दैत्य (से १, १; (प्राचा) । मेहि पु[ मेहिन] वही अर्थ
महुरेस पुं [मथुरेश] मथुरा का राजा अच्च ४०)। २ वसन्त ऋतु; 'सुरही महू (प्राचा)। राय पु[राज] एक राजा
। (कुमा)। वसंतो' (पान; कुमा)। ३ चैत्र मास (सुर (रयण ७४) लट्रि स्त्री [यष्टि] १
महुला स्त्री [दे] रोग-विशेष, पाद-गण्ड ३, ४०; १६, १०७: पिंग)। ४ पाँचवाँ पोषधि-विशेष, यष्टिमधु, मुलेठी, जेठी मधु ।
(निचू २)। प्रति-वासुदेव राजा (पउम ५, १५६)। ५
महुसित्थ न [मधुसिक्थ] १ मदन, मोम २ इक्षु, ईख (हे १,२४७)। वक्त पुं[°पर्क] १ | एक राजा (श्रु ६१)। ६ मथुरा का एक
(उप पृ २०६)। २ पंक-विशेष, स्त्री के पैर दधियुक्त मधु, दही और शहद । २ षोडशोपराज-कुमार (पउम १२, २)। ७ चकवर्ती
| में लगा हुआ अलता तक लगनेवाला कादा
चार पूजा का छठवां उपचार (उत्तर १०३)। | का एक देव-कृत महल (उत्त १३, १३) ।
(मोघभा ३३) । ३ कला-विशेष (स ६.२)।'वार पु [वार] मद्य, दारू (पान) ८ मधूक का पेड़, महुआ का गाछ (कुमा)।
महुस्सव देखो महूसव (राज)।"सिंगी स्त्री ["शृङ्गी] वनस्पति-विशेष ९ अशोक-वृक्ष (चंड)। १० न. मद्य, दारू ( परण १-पत्र ३५)। सूयण पु
महूअ देखो महुअ मधूक (कुमाः हे १, (से २, २७)। ११ क्षौद्र, शहद (कुमा, पव
१२२) । [सूदन] विष्णु (गउडसुपा ७) । ४. ठा ४,१)। १२ पुष्प-रस । १३ मधुर
महूसव पुं [महोत्सव] बड़ा उत्सव (सुर ३, महुअ पु[मधूक] १ वृक्ष-विशेष, महुआ रस । १४ जल, पानी (प्राप्र हे ३, २५) ।
। १०८ नाट-मृच्छ ५४) ।
का गाछ (गा १०३)। २ न. महुमा का १५ छन्द-विशेष (पिग)। १६ मधुर, मिष्ट
महेंद देखो महिंद (से ६, २२)।वस्तु (पराह २, १)। अर पुंस्त्री [कर] फल (प्राप्रा हे १, २२२)।
महेड्ड पुं [दे] पंक, कादा (दे ६, ११६)। भ्रमर, भौंरा (पानः स्वप्न ७३, औपः महुअ पु[दे] १ पक्षि-विशेष, श्रीवद पक्षी।
महेब्भ [महेभ्य] बड़ा शेठ (श्रा १६) । कप्प; पिंग)। स्त्री. रिआ. री (अभि २ मागध, स्तुति-पाठक (दे ६, १४४) ।
महेभ [महेभ] बड़ा हाथी (कुमा)। १६०; नाट--मृच्छ ५७) । अरवित्ति स्त्री महुण सक [मथ् ] १ विलोडन करना ।
महेला स्त्री [महेला] स्त्री, नारी (हे १, [करवृत्ति] माधुकरी, भिक्षा वृत्ति (सुपा
२ विनाश करना । वकृ. 'विमुक्कट्टहासा
| १४६, कुमा)। ८३)। अरीगीय न [ करोगात] नाट्यजलियजलणपिंगलकेसा महुणित-जालाकराल
महेस ' [महेश नीचे देखो (त्रि ६४ भवि)।.. विधि-विशेष (महा)। आसव वि[°आश्रव] पिसाया मुका' (महा)।
महेसर पुं [महेश्वर] १ महादेव, शिव (पउम लब्धि-विशेषवाला, जिसके प्रभाव से बचन महुत्त (अप) देखो मुहुत्त (भवि)।
३५, ६४ धर्मवि १२८)। २ जिनदेव, मधुर लगे ऐसी लब्धिवाला (पएह २, १-- महुप्पल न[महोत्पल] कमल, पद्म; 'महुप्पलं अहंन् (पउम १०६, १२)। ३ श्रीमन्त, पत्र १००)। गुलिया स्त्री [गुटिका] | पंकयं नलिणं' (पान)
पाब्य (सिरि ४२)। ४ भूतवादि देवों के शहद की गोली (ठा ४, २) पडल न महुमुह पुं[दे. मधुमुख] पिशुन, दुर्जन, उत्तर दिशा का इन्द्र (इक) दत्त पुं [पटल मधुपुडा (दे ३, १२)। भार | खल (दे ६, १२२)।
[दत्त] एक पुरोहित (विपा १, ५)।
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