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६५० पाइअसहमहण्णवो
भाव-भास 'सो चेव देवलोगो देवसहस्सोवसोहियो रम्मो। [संयत] सञ्चा, साधु (उप ७३२) साहु पवासदुहिया मिलाएई' (सुपा ९), 'एत्यंततुह विरहियाइ इरिह भावइ नरपोवमो मझ। पुं[साधु] वही अर्थ (भग)। सव पुं रम्मि भाविरनियपिउगुरुविरहग्गिदूमियमणेण
(सुर ७, १६)। [स्रव] वह प्रात्म-परिणाम, जिससे कर्म । (सुपा ७५)।। 'तं चिय इमं विमारणं रम्म
का प्रागमन हो; 'पासवदि जेण कम्मं परि- भाविल्ल वि [भाववत् ] भाव-युक्त, पण___मणिकरणगरयणविच्छुरियं । | पामेणप्पणो स विएणेमो भावासवो' (द्रव्य वीसं भावणा भाविल्लो पंचमरम्बयाई' तुमए मुक्कं भाव २६)
(संबोध २४)। घडियालयसच्छई नाह।' भाव भाव] महान् वादी, समर्थ विद्वान |
भाविस्म देखो भविस्स; 'भाविस्सभूयपभवंत(सुर ७, १७)। (दस १,१टी)।
भावपालोयलोयणं विमल' (सुपा ८६)।। भावअ विभावक होनेवाला (प्राकृ ७०)। 'एम्वहिं राहपोहरहं जं भावइ तं होउ
भावुक वि [दे] वयस्य, मित्र (संक्षि ४७)। देखो भावग। (हे ४, ४२०)।
भावुगा वि [भावुक] अन्य के संसर्ग की भावइआ स्त्री [दे] धार्मिक-गृहिणी (दे ६, भाव पुं[भाव १ पदार्थ, वस्तु: 'भावो वत्यु
भावुय जिस पर असर हो सकती हो वह पयत्थो (पाप विसे ७०; १६६२)। २
वस्तु (मोघ ७७३, संबोध ५४)।" भावग वि [भावक वासक पदार्थ, गुणाधायक अभिप्राय, प्राशय (प्राचाः पंचा १, १; प्रासू
भास सक [भाष ] कहना, बोलना। भासइ, वस्तु (प्राचू ३)। देखो भाव।। ४२)। ३ चित्त-विकार, मानस विकृतिः |
भासंति (भगः उव)। भवि. मासिस्सामि भावड पुं[भावक स्वनाम-ख्यात एक जैन 'हावभावपललियविक्खेवविलाससालिणीहि
(भग)। वकृ. भासंत, भासमाण (मौपा गृहस्थ (ती २) (पएह २, ४-पत्र १३२) । ४ जन्म,
भगः विपा १, १)। कवकृ. भासिज्जमाण उत्पत्ति; पिंडो कज्जं पइसमयभावाउ' (विसे भावण पुं [भावन] १ स्वनाम-सयात एक
(भगः सम ६०)। संकृ. भासित्ता (भग)। ७१)M५ पर्याय, धर्म, वस्तु का परिणाम, वणिक् (पउम ५, ८२)। २ नीचे देखो
कृ. भासिअव्व (भगः महा)। द्रव्य को पूर्वापर अवस्था (पण्ह १, ३, (संबोध २४: वि ६)।
भास मक [भास्] १ शोभना । २ लगना, उत्त ३०, २३; विसे ६६; कम्म ४, १; भावणा स्त्री [भावना] १ वासना, गुणाधान, |
मालूम होना । ३ प्रकाशना, चमकना । भासइ ७०)। ६ धात्वर्थ-युक्त पदार्थ विवक्षित किया संस्कार-करण (प्रौप)। २ अनुप्रेक्षा, चिन्तन ।
(हे ४, २०३), भासए, भासंति, भाससि का अनुभव करनेवाली वस्तु, पारमार्थिक ३ पर्यालोचन (प्रोघभा ३; उवः प्रासू ३७)।
(मोह २६; भत्त ११०; सुर ७, १६२)। पदार्थ (विसे ४६)।७ परमार्थ, वास्तविक सत्य भावि वि [भाविन्] भविष्य में होनेवाला
वकृ. भासंत (अच्नु ५४)।। (विसे ४६)। ८ स्वभाव, स्वरूप (अणुः णंदि)। (कुमा; सण)। .
भास सक [ भीषय] डराना। भासइ (धात्वा ६ भवन, सत्ता (विसे ६०गउड ९७८)। भाविअ वि [दे] गृहीत, उपात्त (दे ६, १४७)।१० ज्ञान, उपयोग (प्राचू १; विसे ५०)। १०३)। ११ चेष्टा (णाया १, ८)। १२ क्रिया, भाविअ न [भाविक
भास पुं[भास] १ पक्षि-विशेष (पएह १,
एक देव-विमान (सम धात्वर्थ (अणु)। १३ विधि, कर्तव्योपदेशः
१; दे २,६२)। २ दीप्ति, प्रकाश; 'नाव'भावाभावमणंता' (भग ४१-पत्र ९७६)।
रिजइ कयावि। उकोसावरणम्मिवि जलभाविअ वि [भावित] १ वासित (पएह २, १४ मन का परिणाम (पंचा २, ३३; उवः
यच्छन्नकभासो ब्व' (विसे ४६८ भवि)। ५; उत्त १४, ५२: भग; प्रासू ३७)। २ कुमा ७, ५५)। १५ अन्तरंग बहुमान, प्रेम, भाव-युक्त; 'जिणपवयणतिव्वभावियमइस्स'
भास पुं [भस्मन्] १ ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क राग (उव; कुमा ७,८३८५)। १६ भावना, (उव)। ३ शुद्ध, निर्दोष (बृह १) प
देव-विशेष (ठा २, ३; विचार ५०७)। २ चिन्तन (गउड १२०४० संबोध २४)। १७ वि [मन्] १ वासित अन्तःकरणवाला भस्म, राख (णाया १, १; पण्ह २, ५)। नाटक की भाषा में विविध पदार्थों का चिन्तक (प्रौप; णाया १,१)। २ . मुहूर्त-विशेष,
'रासि पुं [ राशि ग्रह-विशेष (ठा २, ३; पण्डित (अभि १८२)। १८ प्रात्मा (भग १७, अहोरात्र का तेरहवाँ या अठारहवाँ मुहूर्त ३) । १६ अवस्था, दशा (कप्पू) केउ पुं (सुज १०, १३, सम ५१) पा स्त्री भासन [भाष्य] व्याख्या-विशेष, पद्य-बद्ध [ केतु] ज्योतिष्क देव-विशेष, महाग्रह-विशेष | [rमा] भगवान् धर्मनाथ की मुख्य शिष्या टीका (चैत्य १; उप ३५७ टी; विचार ३५२; (ठा २, ३) त्थ पुं [र्थ] तात्पर्य, (सम १५२)
सम्यक्त्वो ११) रहस्य (स ६) न °न्नुय वि [s] भाविंदिअ न [भावेन्द्रिय] उपयोग, ज्ञान भास देखो भासा (कुमा) + अणु वि [] अभिप्राय को जाननेवाला (माचाः महा)M (भग)।
भाषा के गुण-दोष का जानकार (धर्मसं 'पाण पुं [ प्राण ] ज्ञान प्रादि प्रात्मा भाविर वि [भाविन, भवित] भविष्य में ६२५) व वि[वत् ] वही अर्थ (सूम का अन्तरंग गुण (पएण १), संजय | होनेवाला, अवश्यंभावी; 'मम्हं भाविरदीहर- १, १३, १३)।।
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