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भाणु-भाव
पाइअसहमहण्णवो
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६८)। २ कहलाया हुआ: 'मयणसिरिनामाए भायण न [भाजन] आकाश, गगन (भग मुनि-प्रणीत नाट्य-शास्त्र (अणु)। ५ वि. रनो भज्जाए भारिणो मंती' (सुपा ५८७) २०, २---पत्र ७७६)।
भारतवर्ष-सम्बन्धी, भारतवर्ष का (ठा २, भाणु पुं[भानु] १ सूर्य, रवि (पउम ४६, भायणंग पुं[भाजनाङ्ग] कल्पवृक्ष की एक
३-पत्र ६९), 'तत्थ खलु इमे दुवे सूरिया ३६, पुप्फ १६४, सिरि ३२)। २ किरण जाति, पात्र देनेवाला कल्पवृक्ष (पउम १०२, .
पन्नत्ता, तं जहा-भारहे चेव सूरिए, एरवए (प्रामा) । ३ भगवान धर्मनाथ का पिता, एक १२०) ।
चेव सूरिए' (सुज्ज १, ३)। खेत्त न राजा (सम १५१) । ४ स्त्री. एक इन्द्राणी, भायणिज देखो भाइणिज (धर्मवि १२ |
[क्षेत्र] भारतवर्ष (ठा २, ३ टी-पत्र शक्र की एक अग्र-महिषी (पउम १०२,
काल) १५६)। कण्ण पुं [कर्ण] रावण का
भारहिय वि [भारतीय] भारत-संबन्धी. भायमाण देखो भा एक अनुज (पउम ७, ९७)। मई स्त्री
= भायय ।
'जा भारहियकहा इव भीमज्जुणनउलसउणि[मती] रावण की एक पत्नी (पउम ७४, भायर देखो भाउ (कुमा)।
सोहिल्ला' (सुपा २६०)। १०)। मालिणी [ मालिनी] विद्या-विशेष भायल पुं[दे] जात्य अश्व, उत्तम जाति का |
| भारही स्त्री [भारती] १ सरस्वती देवी (पि (पउम ७, १३६)। "मित्त न ["मित्र] घोड़ा (दे ६, १०४ पाप्र)।
२०७)। २ देखो भारई (स ३१६) । उज्जयिनी के राजा बलमित्र का छोटा भाई भार पुं[भार] १ बोझा, गुरुत्व (कुमा)।
भारिअ वि[भारिक भारी, भारवाला, गुरु (कालः विचार ४६४), 'वेग पुं ["वेग] २ भारवाली वस्तु, बोझवाली चीज (श्रा
। (दे ४, २: गाया १, ६ पत्र-११४)। एक विद्याधर का नाम (महा सण)+ सिरी ४०)। ३ काम संपादन करने का अधिकार
| भारिअ विभारित] १ भारवाला, भारी स्त्री ["श्री] राजा बलमित्र की बहिन (काल)। 'भारक्खमेवि पुत्ते जो नियभारं ठवित्तु नियपुत्ते,
(उप पृ १३४)। २ जिस पर भार लादा भाम देखो भमाड = भ्रमय । भामेइ (हे ४,
न य साहेइ सकज्ज़' (प्रासू २७)। ४ परिमाण-विशेष; 'लाउनबी इक्कं नासइ भार
गया हो वह, भार-युक्त किया गया (सुख ३०) । कवकृ. भामिजंत (गा ४५७) । कृ.
२,२५) भामेयव्व (ती ७)।
गुडस्स जह सहसा' (प्रासू १५१)। ५ परिग्रह, .
- भारिआ देखो भन्जा (हे २, १०७ उवा भामण न भ्रामण] घुमाना, फिराना (सम्मत्त धन-धान्य आदि का संग्रह (पएह १, ५)
| णाया २)। १७४) । 'ग्गसो अ[प्रशस् ] भार भार के परिमाण
भारिल्ल वि [भारवत् ] भारी, बोझवाला भामर न [भ्रामर] १ मधु-विशेष, भ्रमरी का सेः 'दसद्धवन्नमल्लं कुम्भग्गसो य भारग्गसो
(धर्मवि १३७) । बनाया हुमा मधु (पव ४)। २ पुं. दोधक य' (णाया १, ८-पत्र १२५) वह वि छन्द का एक भेद (पिंग)।
[वह] बोझा ढोनेवाला (था ४०) वह भारुड [भारुण्ड] दो मुंह और एक शरीर भामरी स्त्री [भ्रामरी] १ वीणा-विशेष वि [वह] वही अर्थ (पउम ६७, २६)।
वाला पक्षी, पक्षि-विशेष (कप्पा औप; महा: (णाया १, १७-पत्र २२६)। २ प्रदक्षिणा भारई स्त्री [भारती] भाषा, वाणी, वाक्य,
भाल न [भाल] ललाट (पापः कुमा)। (कप्पू: भवि)।
वचन (पान)। देखो भारही।। भारदाय । न [भारद्वाज १ गोत्र-विशेष,
भलुंकी [दे] देखो भल्लुकी (भत्त १६०)। भामिअ वि[भ्रमित] १ घुमाया हुमा (से २, ३२)। २ भ्रान्त किया हुआ, भ्रान्त-चित्त
भारदाय । जो गोतम गोत्र की एक शाखा | भाल्ल पुंन [दे] मदन-वेदना, काम-पीड़ा किया हुआ; 'धत्तूरभामिनो इव' (मन २७)
है (कप्प; सुज्ज १०, १६) । २ पुं. भारद्वाज (संक्षि ४७)। धर्मवि २३)।
गोत्र में उत्पन्न: 'जे गोयमा ते गग्गा ते भारद्दा भाव सक [भावया१वासित करना, गुणाभामिणी स्त्री [भागिनी] भाग्यवाली (हे
(? दाया); ते अंगिरसा' (ठा ७-पत्र | धान करना। २ चिन्तन करना। भावेइ १, १६०; कुमा)
३६०)। पक्षि-विशेष (प्रोधमा ८४) । ४ (विवे ९८), भाविति (पिंड १२६), 'भावेज्ज भामिणी स्त्री [भामिनी] १ कोप-शीला स्त्री।
मुनि-विशेष (पि २३६; २६८ ३६३) भावणं' (हि १९), भावेसु (महा)। कर्म. २ स्त्री, महिला (श्रा १२; सुर १, ७६; सुपा भारय देखो भार (सुपा १४, ३८५)। भाविज्जइ (प्रासू ३७)। वकृ. भावेत, ४७५, सम्मत्त १९३)।
भारह न [भारत] १ भारतवर्ष, भरत-क्षेत्र भावमाण, भावेमाण (सुर ८, १८५; सुपा भाय देखो भाउ (कुमा)।
(उवा); 'जहा निसते तवणचिमाली पभासई २६५, उवा)। संकृ. भावेत्ता, भाविऊण भायंत देखो भा - भी।
केवलभारहं तु (दस ६, १, १४)। २ (उवाः महा)। कृ. भावणिज, भावियव्व, भायण पुन [भाजन] १ पात्र । २ प्राधार । पाण्डव कौरवों का युद्ध, महाभारत (पउम
भारत भावेयव्य (कप्पू काल: सुर १४, ८४) ३ योग्य; 'भायणा, भायणाई' (हे १, ३३; १०५, १६) । ३ ग्रंथ-विशेष, जिसमें पाण्डव- भाव प्रक [भास्] १ दिखाना, लगना, २६७), "ति चिय धन्ना ते पुनभायणा, ताण कौरव युद्ध का वर्णन है, व्यास-मुनि-प्रणीत | मालूम होना । २ पसन्द होना, उचित मालूम जीवियं सहलं' (सुपा ५६७; कुमा) महाभारत (कुमाः उर ३, ८)। ४ भरत । होना;
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