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६६६ पाइअसद्दमहण्णवो
मक्ख-मच्चिअ मक्ख सक [म्रक्ष ] १ चुपड़ना, स्नेहान्वित । (प्रौष पृ ४८ टि) [पुर न [पुर] नगर- मग्गगया स्त्री [मार्गगा] ईहा-ज्ञान, ऊहापोह करना । २ घी, तेल आदि स्निग्ध द्रव्य से विशेष (महा)। देखो मगह ।
(एंदि १७५) मालिश करना। मक्खइ (षड्), मक्खंति मगा अद] पश्चात्, पीछे, मराठी में 'मग' मग्गणिर वि [दे] अतुममन करने की ( उप १४७ टी), मक्खिज्ज, मक्खेज्जा दि १, ४, टी)
आदतवाला (दे ६, १२४)। (पाचा २, १३, २, ३)। हेकृ. मक्खेत्तए मगुंद देखो मउंद = मुकुन्द (उत्तनि ३) मग्गसिर पु [मार्गशिर] मास-विशेष, (कस) । कृ. मक्खिथव्व (प्रोध ३८५ टी)। मग सक [ मार्गय ] १ मागना। २ मगसिर मास, अगहन (कप्पः हे ४, ३५७) । मक्खण न [म्रक्षण] १ मक्खन, नवनीत खोजना । मग्गइ, मग्गति (उवः षड्, हे १, मग्गसिरी स्त्री [मार्गशिरी] १ मगसिर मास (स २५८ पभा २२)। २ मालिश, अभ्यंग ३४) । वकृ. मगंत, मग्गमाण (गा २०२, की पूर्णिमा । २ मगसिर की अमावस (सुज्ज (निचू ३) ।
उप ६४८ टी. महासुपा ३०८)। संकृ. १०,६)मक्खर महार] १ गति । २ ज्ञान । ३ मग्गेविणु (अप) (भवि)। हेकृ. मग्गिउं मग्गिअ वि [मार्गित] १ अन्वेषित, गवेषित वंश बांस। ४ छिद्रवाला बाँस (संक्षि १५; (महा)। कृ. मग्गिअञ्च मग्गेयव्व (से (से ६, ३६)। २ मांगा हुआ, याचित १४, २७सुपा ५१८)।
(महा)। मक्खिअ वि [म्रक्षित] 'चुपड़ा हुआ (पान मग्ग सक [ मग्] गमन करना, चलना। मग्गिर त्रि [मार्गयित] खोज करनेवाला दे ८, ६२, प्रोघ ३८५ टी)। मग्गइ (हे ४, २३०)।
(सुपा ५८)। मक्खिअ न [माक्षिक] मक्षिका-संचित मधु मग्ग पुं[मार्ग] १ रास्ता, पथ (प्रोघ ३४; मग्गिल्ल वि [दे] पाश्चात्य, पाछे का (विसे
कुमाः प्रासू ५०, ११७; भग) । २ अन्वेषण, १३२६) । मक्खिआ स्त्री [मक्षिका] मक्खी (दे ६, खोज (विसे १३८१) । "ओ तस] मग्गु पु [मद्गु] पक्षि-विशेष, जल-काक १२३)।
रास्ते से (हे १, ३७)। ण्णु वि [] (सून १,७, १५; हे २,७७) . मगइअ वि [दे] हस्त-पाशित, हाथ में बाँधा | मार्ग का जानकार (उप ६४४) । 'त्य वि मघ पु[मघ] मेष (भग ३, २; परण २)
हुमा (विपा १,३-पत्र ४८ ४६)। [स्थ] १ मार्ग में स्थित । २ सोलह से | मघमघ अक [प्र+सृ] फैलना, गन्ध का मगण मगग] छन्दःशास्त्र-प्रसिद्ध तीन
ज्यादा वर्ष की उम्रवाला (सूप २, १, ६)। पसरना गुजराती में 'मघमघवु", मराठी में गुरु अक्षरों को संज्ञा (पिंग)।
दय वि [°दय] मार्ग-दर्शक (भगः पडि)। 'मघमणे' । वकृ. मघमपंत, मघमति ,
विउ वि [वित ] मार्ग का जानकार मगदंतिआ स्त्री [दे] १ मालती का फूल ।
मघमघेत (सम १३७; कप्प; प्रौप) । (अोघ ८०२) । "ह वि [व] मार्ग-नाशक २ मोगरा का फूल; 'कुमुनं वा मगदंतिभं'
मघव पु[मघवन्] १ इन्द्र, देव-राज (कप्पा (श्रु ७४)। णुसारि वि [नुसारिन्] (दस ५, २, १४, १६)।
कुमा ७,६४)। २ तृतीय चक्रवर्ती राजा मार्ग का अनुयायी (धर्म २)। मगदंतिआ स्त्री [दे. मगदन्तिका] १ मेंदी
(सम १५२: पउम २०, १११)। मग्ग मार्ग] १ आकाश (भग २०, २या मेहँदी का गाछ । २ मेंदी की पत्ती (दस
मघवा स्त्री [ मघवा ] छठवीं नरक-भूमि, पत्र ७७५) । २ आवश्यक-कर्म, सामयिक ५, २, १४, १६)।
___ 'मघव त्ति माधवत्ति य पुढवीणं नामधेयाई'
आदि षट्-कर्म (अणु ३१)। मगर ' [मकर] १ मगर-मच्छ, जलजन्तु
(जीवस १२)। मग [दे] पश्चात, पीछे (दे ६, विशेष (पराह १,२; प्रौपः उवः सुर १३, मग्गअ१११ से १,५१, सुर २,५६ !
मघा स्त्री [मघा] १ ऊपर देखो (ठा ७४२; रणाया १, ४) । २ राहु (सुज्ज २०)।
पत्र ३८८ इक)। २ देखो महा = मघा । पान; भग)। देखो मगर । | मग्गअ वि [मार्गक] मांगनेवाला (पउम
(राज)। मगरिया स्त्री [मकरिका] वाद्य-विशेष (राय
मघोण पु[दे. मघवन् देखो मघव (षड्ः ४६)।
पि ४०३)।मग्गण पुं [मार्गण] १ याचक (सुपा २४)। मगातर स्त्रीन [ मृगशिरस् नक्षत्र विशेष
मञ्च अक [मद्] गवं करना। मच्चइ (षडा २ बाण, शर (पान)। ३ न. अन्वेषण, 'कत्तिय रोहिणी मगसिर प्रद्दा य' (ठा २,
हे ४, २२५)। खोज (विसे १३८१)। ४ मार्गणा, विचारणा, ३-पत्र ७७)। स्त्री. राः 'दो मगसिरानो'
मञ्च (अप) देखो मंच: 'मंकुमश्चइ सुत्त पर्यालोचन (प्रौप विसे १८०)। (ठा २, ३-पत्र ७७)। मग्गण
बराई (भवि) ।।
स्त्री [मार्गणा] १ अन्वेषण, मगह देखो मागह । 'तित्थ न [°तीर्थ] मग्गणया खोज (उप पृ २७६; उप ६६२ | मञ्च न [दे] मल, मैल (दे ६, १११)। तीर्थ-विशेष (इक)।
मग्गणा ! प्रोघ ३)। २ अन्वय-धर्म के मञ्च पु' मिय] मनुष्य, मानुष (स मगह पू.ब.मिगधादेश-विशेष (कुमा)। पोलोचन द्वारा अन्वेषण, विचारणा, पर्या- | मश्चिअ २०८ रंभा: पामः सूत्र १, ८, मगग वरच्छ[°वराक्ष आभरण-विशेष । लोचना (कम्म ४, १, २३; जीवस २)।। २ प्राचा)। लोअ पु[लोक] मनुष्य
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