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मंद-मकोड पाइअसहमहण्णवो
६६५ मंद पु [मन्द] १ ग्रह-विशेष, शनिश्चर (सुर मंदाय न [मन्दाय] गेय-विशेष (जं १)। मंसचक्षुणा' (सम ६०४ सण वि[शन] १०, २२४)। २ हाथी की एक जाति (ठा मंदार पु[मन्दार] १ कल्पवृक्ष-विशेष (सुपा मांस-भक्षक (कुमा) "सि, सिण वि ४, २–पत्र २०८)। ३ वि. अलस, धीमा, १)। २ पारिभद्र वृक्ष । ३ न. मन्दार वृक्ष [शिन] वही अर्थ (पउम १०५, ४४ मृदु (पात्र; प्रासू १३२)। ४ अल्प, थोड़ा | का फूल; 'मंदारदामरमणिजभूय' (कप्पा महा), 'मंसासिरणरस (पउम २६, ३७)। (प्रासू ७१)। ५ मूर्ख, जड़, अज्ञानी (सूम गउड) । ४ परिभद्र वृक्ष का फूल (वजा मंस न मांस फल का गर्भ, फल का गुद्दा १, ४, १, ३१ पाप)। ६ नोच, खल,
(प्राचा २, १, १०, ५, ६)। 'मुहमेव अहीणं तह य मंदस्स' (प्रासू १९)। मंदिअ वि [मान्दिक] मन्दता वाला, मन्द मंसल वि [मांसल ] पीन, पुष्ट, उपचित ७ रोग ग्रस्त, रोगी (उत्त८,७)। उणिया | 'बाले य मंदिए मूढे' (उत्त ८, ५)! (पान हे १, २६७ पण्ह १, ४)। स्त्री [पुण्यका] देवी-विशेष (पंचा १६, | मंदिर न [मन्दिर] १ गृह, घर (गउडा भवि)। मंसी स्त्री [मांसी गन्ध-द्रव्य-विशेष जटामांसी २४)। भग्ग वि [भाग्य] कमनसीब | २ नगर-विशेष (इक प्राचू १)।. (पएह २, ५-पत्र १५०)।(सपा ३७६; महा)। भाअ वि [भाग, | मंदिर वि [मान्दिर] मन्दिर-नगर का: 'सीह- मंस पंन [उम1 टाटी-मॅट-पट के
भाग्य वही अर्थ (स्वप्न २२, कुमा)। पुरा सोहा वि य गीयपुरा मंदिरा य बहुरणाया पर का बाल (सम ६० प्रौपः दुमा), 'मंसू 'भाइ वि [ भागिन्] वही अर्थ (स ७५६; (पउम ५५, ५३)
(हे १, २६, प्राप्र), मंसूई' (उवा)। सुपा २२९)। भाग देखो भाअ (सुर मंदीर न [दे] १ शृंखल, साँकल ।२ मन्थान- मंसु देखो मंस मंसूणि क्षिन्नपुत्वाई' (प्राचा)। १०, ३८)। दण्ड (दे ६, १४१)।
मंसुडग न [दे, मांसोन्दुक] मांस-खण्ड मंद न [मान्द्य] १ बीमारी, रोग; 'नय मंदुय पु[दे.मन्दुक] जलजन्तु-विशेष (पराह
| (पिंड ५८६)। मंदेणं मरई कोइ तिरिमो अहव मणप्रो वा'.
मंसुल्ल वि [मांसवत् ] मांसवाला (हे २, (सुपा २२६) । २ मूर्खता, बेवकूफी; 'बालस्स मंदुरा स्त्री [ मन्दुरा] प्रश्व-शाला (मुपा
१५६) मंदयं बीय' (सूम १, ४, १, २६)।
मकंडेअ ' [मार्कण्डेय ऋषि-विशेष (अभि मंदक्ख न [मन्दाक्ष] लज्जा, शरम (राज)। मंदोदरी। स्त्री [मन्दोदरी] १ रावण-पत्नी
२४३)। | मंदोयरी (से १३, ६७)। २ एक वणिक्मंदग) न [मन्दक] गेय-विशेष; एक प्रकार
मक्कड पुंमिर्कट] १ वानर, बनरा, बन्दर (गा
पत्नी (उप ५९७ टी)। मंदय का गान (राज; ठा ४, ४-पत्र
१७१, उप पृ१८८० सुपा ६०६: दै २, २८५)IV मंदोशण (मा)। वि मन्दोष्ण अल्प गरम
७२, कुप्र ६०; कुमा)। २ मकड़ा, जाल मंदर [मन्दर] १ पर्वत-विशेष, मेरु पर्वत (प्राक १०२)।
बनानेवाला क्रीड़ा (प्राचा; कसा गा ६३; दे (सुज्ज ५, सम १२, हे २, १७४, कप्प;
मंधाउ पुं [मान्धात] हरिवंश का एक राजा ६, ११६) । ३ छन्द का एक भेद (पिंग)। सुपा ४७)। २ भगवान् विमलनाथ का प्रथम (पउम २२, ६७)।
बंध पुं[°बन्ध] बन्ध-विशेष, नाराच-बन्ध गणधर (सम १५२)। ३ वानरद्वीप का
मंधादण पुं[मन्धादन] मेष, गाडर 'जहा (कम्म १, ३६). "संताण पुं[संतान एक राजा, मरुयकुमार का पुत्र (पउम ६,
मंधादए (?णे) नाम थिमिमं भुंजती दर्ग' मकड़ा का जाल (पडि)। ६७)। ४ छन्द का एक भेद (पिंग)। ५ (सूत्र १, ३, ४, ११)।
मक्कडबंध न [दे] शृंखलाकार ग्रीवा-भूषण मन्दर-पर्वत का अधिष्ठायक देव (जं ४)।- मधाय पुं[दे]मान्य, श्रीमंत (दे ६, ११६) (दे ६, १२७) 'पुर न [पुर] नगर-विशेष, (इक)। मंभीस (अप)। सक [मा+भी डरने का मकडी स्त्री [मकेटी] वानरी बनरी (कप्र मंदा स्त्री [मन्दा] १ मन्द-स्त्री (वज्जा १०६)।
निषेध करना, अभय देना । संकृ. मभीसिवि | ३०३)। २ मनुष्य की दश अवस्थानों में तीसरी
मकल (अप) देखो मक्कड (पिग)। (भवि) अवस्था २१ से ३० वर्ष तक की दशा मंभीसिय देखो माभीसिअ (भवि):
मक्कार पुं [माकार १ 'मा' वर्ण। २ 'मा'
के प्रयोगवाली दण्डनीति, निषेध-सूचक एक (तंदु १६)
मंस पुंन [मांस] मांस, गोश्त, पिशितः | 'प्रयमाउसो मंसे अयं अट्ठी' (सूम २, १, १६
प्राचीन दण्ड-नीति (ठा ७-पत्र ३६८) ।। मंदाइणी स्त्री [मन्दाकिनी] १ गंगा नदी, भागीरथी (पउम १०, ५०; पात्र)। २
प्राचा; ओघभा २४६; कुमा; हे १, २६) मकुण देखो मंकुण (पव २६२; दे १,६६)
"इत्त वि [वत् ] मांस-सोलुप (सुख १, मक्कोड पुं[दे] १ यन्त्र-गुम्फनार्थ राशि, जन्तर रामचन्द्र के पुत्र लव की स्त्री का नाम (पउम
१५)। °खल न [खल] मांस सुखाने का गठने के लिए बनाई जाती राशि (दे ६, १०६, १२)
स्थान (पाचा २,१,४,१)। चक्खु पुन १४२)। २ पुत्री. कीट-विशेषः चींटा, गुजमंदाय क्रिवि [मन्द] शनैः, धीमे से; 'मंदार्य
| [चक्षुस् ] १ मांस-मय चक्षु । २ वि. | राती में 'मकोडो', 'मंकोडों (निचू १, मैदायं पव्वइयाए' (जीव ३)।
मांस-मय चक्षुवाला, ज्ञान-चक्षु-रहित; 'महिस्से । प्रावमः जी १६) । श्री. "डा (द ६,१४२)
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