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धीश
(भवि)
समय का
मंठ-मंडुक्की
पाइअसहमहण्णवो मंठ वि[दे] १ शठ, लुच्चा, बदमाश । २ पुं. (सुज्ज १, ७) हिव पुं [धिप] | मंडव न [माण्डव्य] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री. बन्ध (दे ६, १११)
मण्डलाधीश (भवि)। हिवइ पुं| उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७–पत्र ३६०)। मंड सक [ मण्ड् ] भूषित करना, सजाना। [धिपति] वही अर्थ (भवि)।
मंडविआ स्त्री [मण्डपिका] छोटा मण्डप मंडइ ( षड ), मंडंति (पि ५५७)। मंडल पुन [मण्डल ] योद्धा का युद्ध समय का मंड सक[दे] १ आगे धरना। २ प्रारम्भ | प्रासन (वव १) पवेस पुं [प्रवेश]
मंडव्यायण न [माण्डव्यायन] गोत्र-विशेष करना, गुजराती में 'मांडवु"; 'जो मंडइ रण- एक प्राचीन जैन शास्त्र (णाद २०२) । (सुज १०, १६, इक)। भरधुरहो खंधु' (भवि) । मंडलग्ग पुंन [मण्डलाय] तलवार, खड्ग
मंडावण न [मण्डन] सजाना, विभूषित मंड पुंन [मण्ड] रसः 'तयाणंतरं च णं (हे ३, ३४. भवि)।.
कराना । धाई स्त्री [धात्री] सजानेवालो घयविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्थ सारइएणं | मंडलय पुं [मण्डलक] एक माप, बारह
दासी (प्राचा २, १५, ११)।गोघयमंडेणं (उवा)। कर्म-माषकों का एक बॉट (अणु १५५)।
मंडावय वि [मण्डक] सजानेवाला (निचूह)मंडअ देखो मंडव = मण्डप (नाट-शकु मंडलि पुं[मण्डलिन्] १ मण्डलाकार चलता ६८)।
मंडि वि [मण्डित] १ भूषित (कप्प;
वायु, चक्र-वात, बवंडर (जो ७)। २ माण्डमंडअ, पुं [मण्डक] खाद्य-विशेष, मांडा, लिक राजा; तेवीसं तित्थंकरा पुत्वभवे
मंडिअ कुमा)।२ पुं. भगवान् महावीर के मडग एक प्रकार की रोटी (उप पृ ११५, मंडलिरायाणो हात्था' (सम ४२)। ३ सर्प
षष्ठ गणधर का नाम (सम १६, विसे पव ४ टी कुप्र ४३, धर्मवि ११६)। की एक जाति (पण्ह १-पत्र ५१)। ४
१८०२)। ३ एक चोर का नाम (धर्मवि न. गोत्र-विशेष, जो कौत्स गोत्र की एक
७२, ७३) । कुच्छि पुन [कुक्षि मंडग वि [मण्ड क] विभूषक, शोभा बढ़ाने
] चैत्य
विशेष (उत २०, २)। पुत्त पुं[पुत्र] वालाः 'ससि च..........'जोइसमुहमंडगं । शाखा है। ५ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा
भगवान महावीर का छठवाँ गणधर (कप्प)। (कप्प)
७-पत्र ३६०), "पुरी स्त्री ['पुरी] नगरमंडग न [मण्डन] १ भूषण, भूषा (गउड विशेष, गुजरात का एक नगर, जो आजकल मंडिअ वि [दे] रचित बनाया हुआ। २ प्रासू १३२) । २ वि. विभूषक, शोभा बढ़ाने- भी मांडल' नाम से प्रसिद्ध है (सुपा ६५९)ल बिछाया हुआ । वाला (गउडः कुमा)। स्त्री.णी (प्रासू १४) मंडलिअ वि [मण्डलित] मण्डलाकार बना 'संसारे हयविहिणा महिलारूवेण मंडिए पासे । धाई स्त्री [ धात्री] आभूषण पहनानेवाली हुमाः मंडलियचंडकोदंडमुक्कंडोलिखंडिय- बझंति जाणमाणा अयाणमारणावि बज्झति ॥' दासी (गाया १,१-पत्र ३७)।- सिरेहि (सुपा ४; वज्जा ६२; गउड)।
(रयण ८)। लिथ वि मिण्डलिक. माण्डलिका मंडल पुं [दे. मण्डल] श्वान, कुत्ता (दे ६, मंडलिअ वि [मण्डलिक, माण्डलिक] १ ३ पागे धरा हुआ: 'मह मंडिउ रणभरधुरहो ११४; पाना स ३६८; कुप्र २८० सम्मत्त
मण्डलाकारवाला । २ पुं. मंडल रूप से स्थित खंधु' (भवि)। ४ प्रारब्धः 'रणु मंडिउ १६०)।
पर्वत-विशेष (ठा ३, ४-पत्र १६६; परह कच्छाहिवेण ताम' (भवि, सण)। मंडल न [मण्डल] १ समूह, यूथ (कुमा २, ४)। ३ मण्डलाधीश, सामान्य राजा मंडिल्ल पुंदे] अपूप, पूषा, पक्वान्न-विशेष गउड; सम्मत्त १६०)। २ देश (उप १४२
(णाया १, १: परह १, ४ कुमाः कुप्र (दे६, ११७)। टी कुप्र ४६; २८०)। ३ गोल, वृत्ताकार १२०; महा)।
मंडी स्त्री [दे] १ पिधानिका, ढकनी (दे ६, पदार्थ (कुमाः गउड)। ४ गोल आकार से मंडली स्त्री [मण्डली] १ पंक्ति, श्रेणी, समूह
१११ पास)। २ अन्न का अग्र रस, माड़। वेष्टन (ठा ३, ४–पत्र १६६; गउड)। ५ (से ५, ७६; गच्छ २, ५६)। २ अश्व की
३ माँड़ी, कलप, लेई (भाव ४), 'पाहुडिया चन्द्र-सूर्य आदि का चार-क्षेत्र (सम ६६ एक प्रकार की गति (से १३, ६६ महा)।
स्त्री [प्राभृतिका] एक भिक्षा-दोष, अन्न के गउड)। ६ संसार, जगत् (उत्त ३१, ३; ३ वृत्ताकार मंडल–समूह (संबोध १७
माँड़ अथवा माँड़ी को दूसरे पात्र में रखकर ४०५,६)। ७एक प्रकार का कुष्ठ रोग । उव)।
दी जाती भिक्षा का ग्रहण (प्राव ४)। ८ एक प्रकार की वृत्ताकार दाद-ददु (पिंड
मंडलीअ देखो मंडलिअ = मण्डलिक; 'तह ६००)। ६ विम्ब; 'उज्झइ ससिमंडलकलस- तलवरसेरणाहिवकोसाहिवमंडलीयसामंते (सुपा
मंडक) देखो मंडूअ (श्रा २८ पएह १,१७ दिएणकंठग्गहं मयणो' (गउड)। १० सुभटों ___७३; ठा ३, १-पत्र १२६) ।
मंडुक्क । हे २, ६८ षड् ; पाम)। का स्थान-विशेष (राज)। ११ मण्डलाकार मंडव पुं [मण्डप] १ विश्राम स्थान । २ मंडुक्कलिया, स्त्री [मण्डूकिका, की] १ स्त्री परिभ्रमण (सुज्ज १, ७; स ३४६)। १२ वल्ली आदि से वेष्टित स्थान (जीव ३; स्वप्न मंडुकिया , मेंढक, भेकी, दादुरी (उप १४७ इंगित क्षेत्र (ठा ७-पत्र ३६८)। १३ पुं. | ३६; महा कुमा)। ३ स्नान आदि करने का मंडुक्की । टी; १३७ टी)। २ शाकनरकावास-विशेष (देवेन्द्र २६)। व वि| गृह; 'न्हाणमंडवंसि', 'भोयणमंडवंसि' (कप्पा विशेष, वनस्पति-विशेष (उवा; परण १[वत् ] मण्डल में परिभ्रमण करनेवाला। प्रौप)।
पत्र ३४)
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