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पाइअसद्दमहण्णवो
मंखलि-मंजूसा
मंखलि पु[मङ्खलि] एक मंख-भिक्षु, गोशा- मंगला स्त्री [मङ्गला] भगवान् श्रीसुमतिनाथ रहते हैं (सुज १२-पत्र २३३)। इमंच लक का पिता पुत्त पुं[पुत्र] गोशालक, | की माता का नाम (सम १५१)।
पुं[तिमञ्च] १ मचान के ऊपर का मञ्च, प्राजीवक मत का प्रवर्तक एक भिक्षु जो पहले मंगलालया स्त्री [मङ्गलालया] एक नगरी ऊपर ऊपर रखा हुआ मंच (प्रौप)। २ भगवान महावीर का शिष्य था (ठा १० का नाम (पाचू १)।
गणित-प्रसिद्ध एक योग जिसमें चन्द्र, सूर्य उवा) ।
मंगलावइ ई [मङ्गलापातिन] सौमनस-पर्वत आदि नक्षत्र एक दूसरे के ऊपर रखे हुए मंग सक [ मग १ जाना। २ साधना। का एक कूट (इक ज ४)।
मंचों के माकार से अपस्थित होते हैं (सुज ३ जानना । कर्म. मंगिजए (विसे २२)। मंगलावई स्त्री [मङ्गलावती] महाविदेह वर्ष | १२)। का एक विजय, प्रान्त-विशेष (ठा २, ३; |
मंची स्त्री [मश्चा] खटिया, खाटः 'ता पारुह मंग पुं [मङ्ग] १ धर्म (विसे २२)। २ रंजन
इक)
मंचीए' (सुर १०,१६८१६९)। द्रव्य-विशेष, रंग के काम में प्राता एक द्रव्य
| मंगलावत्त पुं [मङ्गलावर्त] १ महाविदेह मंछुडु (अप) प्र [मङक्षु] शीघ्र, जल्दी (सिरि १०५७)।
वर्ष का एक विजय, प्रान्त-विशेष (ठा २,३; (भवि)। मंगइय देखो मगइय (निर १, १)।
इन)। २ देव-विशेष (जं ४)। ३ न. एक मंजर पुं[माजोर] मंजार, बिल्ला, बिलाव मंगरिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राय)।
देव-विमान (सम १७)। ४ पर्वत-विशेष का (हे २,१३२ कुमा) । देखो मज्जर, मज्जार। मंगल पूं [मङ्गल] १ ग्रह-विशेष, अंगारक | एक शिखर (इक)।"
मंजरि स्त्री [मञ्जरि] देखो मंजरी (ौप)। ग्रह (इक) । २ न. कल्याण, शुभ, क्षेम, श्रेय | मंगलिअ) वि [माङ्गलिका १ मंगल- मंजरिअ वि[मञ्जरित मञ्जरी-युक्त 'मंजरियो (कुमा)। ३ विवाह सूत्र-बन्धन (स्वप्न ४६)। मंगलीअ ) जनक 'समलजीवलोअमंगलिन- चूयनिकरो' (स ७१६)। ४ विघ्न-क्षय (ठा ३, १)। ५ विघ्न-क्षय के जम्मलाहस्स' (उत्तर ९० अच्चु ३६; सुपा मंजरिआ। स्त्री [मञ्जरिका, री] नवोत्पन्न लिए किया जाता इष्टदेव-नमस्कार प्रादि शुभ ७८) । २ प्रशंसा-वाक्य बोलनेवाला; 'सुहम- मंजरी । सुकुमार पल्लवाकार लता, बौर कार्य । ६ विघ्न-क्षय का कारण, दुरित- गलीए (सूम १, ७, २५)।
(कुमा, गउड़)। गुंडी स्त्री [गुण्डी] वल्लीनाश का निमित्त (विसे १२, १३, २२, २३ मंगल्ल वि [मङ्गल्य, माङ्गल्य मंगल-कारी, विशेष: 'तोमरिगुंडी य मंजरीगुंडी' (पाप) । २४; प्रौपः कुमा)। ७ प्रशंसावाक्य, खुशामद मंगल-जनक, मांगलिक; 'पढमाणो जिणगुण
मंजार देखो मंजर (हे १, २६)।(सूम १,७, २५)। ८ इष्टार्थ-सिद्धि, वाञ्छित- गरणनिबद्धमंगल्लवित्ताई' (चेइय १६०; णाया
मंजिआ स्त्री [दे] तुलसी (दे ६, ११६) । प्राप्ति (कप्प) । ६ तप-विशेष, आयंबिल १,१; सम १२२, कप्पा औपः सुर १, २३८;
मंजिट वि [माअिष्ट] मजीठ रंगवाला, (संबोध ५८)। १० लगातार आठ दिनों का | १५, १७३; सुपा ५५)।
लाल । स्त्री. 'ट्ठी (कप्पू)।उपवास (संबोध ५५)। ११ वि. इशार्थ- मंगी स्त्री मिङ्गी] षड्ज ग्राम की एक मूच्र्छना | माजहा स्त्री [मञ्जिष्टा] मजीठ, रंग-विशेष साधक, मंगल-कारक (आव ४) उभय पु (ठा ७- पत्र ३६३)।
(कप्पू, हे ४, ४३८)। [ध्वज मांगलिक ध्वज (भग)। तूर न मंगु पु[मङ्ग] एक सुप्रसिद्ध जैन प्राचार्य,
मंजीर न [मञ्जीर] १ नूपुरः 'हंसय नेउरं [तूर्य] मंगल-वाद्य (महा) + दीव पुं प्रार्थमंगु (गदिः ती ७; आत्म २३)।
च मंजीर' (पाय, स ७०४; सुपा ६६) । २ [दीप मांगलिक दीप, देव-मन्दिर में आरती
छन्द-विशेष (पिंग)। मंगुल न [दे] १ अनिष्ट (दे ६, १४५; सुपा के बाद किया जाता दीपक (धर्मवि १२३
मंजीर न [दे] शृङ्खलक, साँकल, जंजीर,
३३८ सूक्त ८०) । २ पाप (दे ६, १४५, पंचा ८, २३) । पाढय पुं [पाठक]
सिकड़ (दे ६, ११६)। वजा गउडा सूक्त ८०) । ३ पुं. चार, मंज विमा1१ सुन्दर, मनोहर (पान)। मागध, चारण (पाप) । पाढिया स्त्री
तस्कर (दे ६, १४५) । ४ वि. असुन्दर, [पाठिका] वीणा-विशेष, देवता के आगे
२ कोमल, सुकुमार (प्रौपः कप्प)। ३ प्रिय, खराब (पात्र, ठा ४, ४-पत्र २७१, स सुबह और सन्ध्या में बजाई जाती वीणा
इष्ट (राया जं १)। ७१३; दस ३)। स्त्री. ली; 'मंगुली णं (राज)।
मंजुआ स्त्री [दे] तुलसी (दै ६, ११६; समणस्स भगवनो महावीरस्स धम्मपएणत्ती'
पान)। मंगल वि [दे] १ सदृश, समान (दे ६, (उवा)। ११८)। २ न. अग्नि, प्राग। ३ डोरा बूनने मंगुस पुं[दे] नकुल, न्यौला, भुजपरिसपं
मंजुल वि [मञ्जल] १ सुन्दर, रमणीय, मधुर का एक साधन । ४ बन्दनमाला (विसे २७)।
(सम १५२, कप्पः विपा १,७; पायः पिंग)। विशेष (दे ६, ११८ सूत्र २, ३, २५)।
२ कोमल (णाया १; १)। मंगलग पुन [मङ्गलक] स्वस्तिक आदि पाठ मंच [दे] बन्ध (दे ६, १११)।
मंजुसा । स्त्री [मञ्जूषा] १ विदेह वर्ष की मांगलिक पदार्थ (सुपा ७७)।
मंच पुं [मश्च] १ मचान, उच्चासन (कप्प; मंजूसा । एक नगरी (ठा २, ३–पत्र ८० मंगलसज्झ न [दे] वह खेत जिसमें बीज | गउड) । २ गणितशास्त्र प्रसिद्ध दश योगों में इक)। २ पिटारी, छोटी संदूक (सुपा ३२१; बोना बाकी हो (दे ६, १२६)।
तीसरा योग, जिसमें चन्द्रादि मंचाकार से | कप्पू)।
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