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भव-भा पाइअसहमहण्णवो
६४७ वि ["जिन] रागादि को जीतनेवाला; सासणं भवाणी स्त्री [भवानी] शिव-पत्नी, पार्वतो 'पज्जत्तापज्जत्ता सुहमा किचहिया भव्यजिणाणं भवजिणाणं (सम्म १). "ट्ठिइ | (पाभ; समु १५७)। कंत पुं[कान्त] सिद्धीया' (पंच २, ७८)। स्त्री [स्थिति] १ देव भादि योनि में उत्पत्ति महादेव (पिंग)।
भव्व पु [दे] भागिनेय, भानजा (दे ६, की काल-मर्यादा (ठा २, ३)। २ संसार में भवारिस वि [भवादृश] तुम्हारे जैसा, | १००)। अवस्थान (पंचा १)। थ वि [स्थ | मापके तुल्य (हे १, १४२; चंड; सुपा | भस सक [भष् ] भूकना, श्वान का बोलना । संसार में स्थित (ठा २, १)। थकेवलि | २७३)
भसइ (हे ४, १८६; षड्-पत्र २२२), वि [स्थकेवलिन जीवन्मुक्त (सम्म ८९)- भवि [भविन] भव्य जीव, मुक्ति-गामी | भसंति (सिरि ६२२)। धारणिज्ज न [धारणीय] जीवन-पर्यन्त | प्राणी (भवि) ।
भसग पुं[भसक] एक राज-कुमार, श्रीकृष्ण संसार में धारण करने योग्य शरीर (भगः भविअ देखो भव = भू ।
के बड़े भाई जरत्कुमार का एक पौत्र (उव) । इक) पञ्चइय वि [ प्रत्ययिक] १ | भविअ वि [भव्य] १ सुन्दर (कुमा)। २ भसण देखो भिसण । भसणेमि (पि ५५६) नरकादि-योनि-हेतुक । २ न. अवधिज्ञान का श्रेष्ठ, उत्तम (संबोध १)। ३ मुक्ति-योग्य, | भसण न [भषण] १ कुत्ते का शब्द (श्रा एक भेद (ठा २, १; सम १४५), 'भूइ मुक्ति-गामी (पएण १; उव)। ४ भावी, | २७)। २ पुं. श्वान, कुत्ता (पाय; सिरि पुं[भूति] संस्कृत का एक प्रसिद्ध कवि होनेवाला (हे २, १०७, षड्)। देखो ६२२)। ( गउड)। सिद्धिय, 'सिद्धीय वि भव्य = भव्य ।
भसणअ (अप) वि [भषित] भूकनेवाला, [सिद्धिक] उसी जन्म में या बाद के किसी भविअ वि [भविक] १ मुक्ति-योग्य, मुक्ति- 'सुणउ भसराउ' (हे ४, ४४३)। जन्म में मुक्त होनेवाला, मुक्ति-गामी (सम २; गामो । २ संसारी, संसार में रहनेवाला (सुर भसम [भस्मन्] १ ग्रह-विशेष, 'भसपएण १८ भग; विसे १२३०; जीवस ७५ | ४,८०) ।
मग्गहपीडियं इमं तित्य (सट्ठि ४२ टी)। श्रावक ७३, ठा , विसे १२२६)। °भविअ वि [भविक] भव-संबन्धी (सण)। २ राख, भभूत; 'भसमुधुलियगत्तो (महाः भिणंदि, भिनंदि, हिनंदि वि
भवित्ती स्त्री [भवित्री] होनेवाली (पिंग)। सम्मत ७६)। देखो भास-भस्मन् । [भिनन्दिन] संसार को पसंद करनेवाला, भवियव्व देखो भव = भू।
भसल देखो भमर (हे, १, २४४, २५४; संसार को अच्छा माननेवाला (राज; संबोध ८५३) क्ग्गाहि न [ोपमाहिन] भवियव्वया स्त्री [भवितव्यता] नियति, |
कुमाः सुपा ४, (पिंग)। अवश्यंभावी, होनी (महा)। कर्म-विशेष (धर्मसं १२६१)।
| भसुआ स्त्री [दे] शिवा, शृगाली, सियारिन
(द ६, १०१ पास)। भव देखो भव्य (कम्म ४, ६)।भविल वि [भविल] निष्ठुर (दश० अगस्त्य
भसुम देखो भसम (प्राकृ ३७)। भव पुं[भवत् ] तुम, आप (कुमा; चू० पत्र० १६८, सूत्र३२६) । भवंत हे २, १७४) -
भसेल्ल पुन [दे] धान्य आदि का तीक्ष्ण अग्र भविस (अप) देखो भवीस । त्त, यत्त पुं भवंत देखो भव = भू ।
भाग, ‘सालिभसेल्लसरिसा से केसा' (उवा)।| [ दत्त] एक कथा-नायक (भवि)।भव (अप) भम = भ्रम् । भवंइ (सण)। भविस्स पु [भविष्य] १ भविष्य काल,
भसोल न [दे. भसोल] एक नास्य-विधि वकृ. भक्त (भवि) । संकृ. भवित्तु (सण)
(राज)। मागामी समय (पउम ३५, ५६; पि ५६०)।
भस्थ (मा) देखो भट्ट ( षड् )।भवण (अप) देखो भमण (भवि)। २ वि. भविष्य काल में होनेवाला, भावी
भस्थालय (मा) देखो भट्टारय (षड्)। भमण न [भवन] १ उत्पत्ति, जन्म (धर्मस (णाया १,१६-पत्र २१४, पउम ३५,
भस्स देखो भंस = भ्रश् । भस्सइ (प्राकृ १७२)। २ गृह, मकान, वसति (पात्र; ५६; सुर १, १३५, कप्पू)।
७६)। वकृ. भस्संत (काल)। कुमा)। ३ असुरकुमार आदि देवों का भवीस (अप) ऊपर देखो (भवि)
| भस्स पुं[भस्मन्] १ ग्रह-विशेष । २ राख विमान (परण २)। ४ सत्ता (विसे ६६) भव्व वि [भव्य] १ सुन्दर, 'सव्वं भव्वं (हे २,५१) वइ पुं [पति] एक देव-जाति (भग)। करिस्सामि' (सुपा ३३६)। २ उचित, योग्य भस्सिअ वि [भस्मित] जलाकर राख किया वासि पुं [वासिन्] वही पूर्वोक्त प्रर्थ (विसे २८; ४४)। ३ श्रेष्ठ, उत्तम (वज्जा हुआ, भस्म किया हुपा (कुमा)। (ठा १०, औप) वासिणी स्त्री [°वासिनी] १८)। ४ होता, वर्तमानः ‘एवं भूयं वा भा अक [भा] चमकना, दीपना, प्रकाशनाः देवी विशेष (पएण १७; महा ६८, १२) भगवं वा भविस्सं वा' (णाया १, १६-पत्र | 'भा भाजो वा दित्तीए' (विसे ३४४७)। हिव पुं[धिप] एक देव-जाति (सुपा २१४, कप्पा विसे १३४२)। ५ भावी, | भाइ (कप्पू), भासि (गउड)। वकृ. देखो ६२०)
होनेवाला (विसे ५८ पंच २, ८)। ६ भंत = भात् । भवमाण देखो भव = भू
मुक्ति-योग्य, मुक्ति-गामी (विसे १८२२ ३ | भा श्री [भा] दीप्ति, प्रभा, कान्ति, तेज भवर देखो भमर (चंड)
४५.दं १)। सिद्धीय देखो भव-सिद्धीय; (कुमा)। मंडल पू[मण्डल] राजा जनक
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