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पाइअसहमहण्णवो
भ-भंजणा
भइअ
। देखो भय - भज् ।
भ [भ] १ प्रोष्ठ-स्थानीय व्यजन वर्ण-1 भएयव्व देखो भय = भज ।
भंगी स्त्री [भङ्गी] देखो भंगि (हे ४, ३३६ विशेष (प्रापः प्रामा)। २ पिंगल-प्रसिद्ध | भंकार पुं[भङ्कार] भनकार, अव्यक्त प्रावाज गा ६१३; विचार ४६) आदि-गुरु और दो ह्रस्व अक्षरों की संज्ञा, विशेष (उप पृ८६)।
भंगी स्त्री [भृङ्गी] वनस्पति-विशेष;-१ भगण (पिंग)। ३ न. नक्षत्र (सुर १६, भंकारि वि [भङ्गारिन्] भनकार करनेवाला
भाग, विजया । २ अतिविषा, अतिस का ४३) • °आर पुं[कार] १ 'म अक्षर। (सण)।
गाछ (पएण १-पत्र ३६; परण १७२ भगण (पिंग), गण पुं[गण] भगण भंग पुं[भङ्ग] १ भांगना, खण्ड, खण्डन |
पत्र ५३१) (पिंग)।
(ोघ ७८८ प्रासू १७०% जी १२; कुमा)। भंगुर वि [भङ्गर] १ स्वयं भागनेवाला, भइ देखो भव = भू
२ प्रकार, भेद, विकल्प (भगः कम्म ३, ५)। विनश्वर, विनाश-शील: 'तडिदंडाईबरभंगुराई भइ स्त्री [भृति] वेतन, तनखाह (गाया १, ३ विनाश (कुमाः प्रासू २१)। ४ रचना- हो विसयसोक्खाई' (उप ६ टी; पण्ह १, ८-पत्र १५० विपा १, ४, उवा)। देखो विशेष; तरंगरंगंतभंग-' (कप्प)। ५ परा
४ सुर १०,१८ स ११४, धर्मसं ११७१ जय । ६ पलायन (पिंग)। "रय न [रत]
विवे ११४) । २ कुटिल, वक्र, 'कुडिलं वंक भइअ वि [भक्त] १ विभक्त (श्रावक १८५; मैथुन-विशेष (बज्जा १०८)।
भंगुरं' (पाप)। सम ७६)।२ खरिडतः 'अंगुलसखासंखप्प- भंग पुं [भृङ्ग] आर्य देश-विशेष, जिसकी
भंछा देखो भत्था (राज)। एसभइयं पुढो पयर' (पंच २, १२, औप)। राजधारी प्राचीन काल में पावापुरी थी ३ विकल्पित (वव ६) (इक)
भंज सक [भ] १ भाँगना, तोड़ना। २ भंग (अप) देखो भग्ग = भग्न (पिंग)।
पलायन कराना, भगाना । ३ पराजय करना । भइअ न [भक्त] भागाकार (वव १) ।। भंगरय पुंभृङ्गरज, भृङ्गारक] १ पौधा
४ विनाश करना। भंजइ, भंजए (हे ४, भइअव्व। क्षा मय: भज् ।
१०६ षड् ; पि ५०६)। भवि, भंजिस्सइ विशेष, भृङ्गराज, भँगरा, भंगरैया। २ न. भइअ) वि [भृतिक] कर्मकर, नौकर, | भंगरा का फूल (वज्जा १०८ सुपा ३२४)
(पि ५३२)। कर्म. भज्जइ (भगः महा)। भइग, चाकर (राय २१) भंगा स्त्री [भङ्गा] १ वनस्पति-विशेष, पाट,
वकृ. मंजंत (गा १६७; सुपा ५६०)। भइगि , स्त्री [भगिनी] बहिन, स्वसा कुष्टाः 'कप्पइ रिणग्गंधारण वा रिणग्गंधीण वा
कवकृ. भजंत, भज्जमाण (से ६, ४४० भइणिआ(सुपा १५, स्वप्न १५, १७, पंच वत्थाई धारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं
सुर १०, २१७; स ६३)। संकृ. भंजिअ, भइणी । विपा १, ४, प्रासू ७८ कुल जहा-जंगिए भंगिए सारणए पोत्तिए तिरोड
भंजिउ, भंजिऊण, भंजिऊणं, भंजेऊण २३५; कुमा) व [पति] बहनोई पट्टए णामं पंचमए' (ठा ५, ३-पत्र
(नाट; पि ५७६; महा; पि ५८५; महा), (सुपा १५, ५३२), सुअ पुं[सुत] ३३८) । २ वाद्य-विशेषः '-पडहहुडकुडंडु.
भजिउ (अप) (हे ४,३६५)। हेकू. भागिनेय, भानजा (मुपा १७)। देखो क्काभेरीभंगापहुदिभूरिवज्जभंडतुमुल-(विक्र
भंजित्तए (णाया १,८), भंजणहं (अप) बहिणी।
(हे ४, ४४१ टि) भइरव वि [भैरव १ भयंकर, भीषण, भय- | भंगि स्त्री [भनि] १ प्रकार, भेद (हे ४, | भंजवि [भक] भाँगनेवाला, भंग जनक (पान; सुपा १८२)। २ पृ. नास्यादि
३३६ ४११)। २ व्याज, छल, बहानाः भंजग करनेवाला (गा ५५२, परह १, प्रसिद्ध एक रस, भयानक रस । ३ महादेव, सहि गिभगिसब्भाविनावराहाएं (गा। ४)। २. वृक्ष, पड़; भजगा इच सोनवस शिव । ४ महादेव का एक अवतार । ५ राग- ६१३)। ३ विच्छित्ति, विच्छेद (राज)। नो चयंति' (प्राचा)। विशेष, भैरव राग । ६ नद-विशेष (हे १, ४ स्त्री. देश विशेष; 'पावा भंगी य (पद | भंजण न [भञ्जन] १ भंग, खण्डन (पव १५१ प्राप्र)। देखो भेरव ।। २७५; विचार ४६)
३८; सुर १०, ६१)। २ विनाश (सुपा भइरवी स्त्री [भैरवी] शिव-पत्नी, पार्वती | भंगिअ न [भङ्गिक, भाङ्गिक] १ भंगा-मय, ३७६; पण्ह १,१)। ३ वि. भंजन करने(गउड)।
एक तरह का वस्त्र, पाट का बना हुआ कपड़ा वाला, तोड़नेवाला, विनाशक; 'भवभंजण' भइरहि पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्ती का (ठा ३, ३, ५, ३-पत्र १३८, कस)। २ (सिरि ५४६), 'रिउसंगभंजणेण (कुमा)।
एक पुत्र, भगीरथ (पउम ५, १७५) 10 शान-विशेषः 'जोगतिगस्सवि भंगियसुत्ते | स्त्री. °णी (गा ७४५)।भइल वि [दे] भया, जात (रंभा ११) किरिया जो भरिणया' (चेइय २४५)। भंजणा स्त्री [भञ्जना] ऊपर देखो, 'विणयोभउम्हा (शौ) देखो भमुहा (पि २५१)। भंगिल्ल वि [भङ्गवत् ] प्रकारवाला, भेद- वयारम-(?र मा-) णस्स भंजणा पूयणा भउहा (अप) देखो भमुहा (पिंग)। पतित; 'पढमभंगिल्ला' (संबोध ३२)
गुरुजणस्स' (विसे ३४६६ निचू १).
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