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६३८ पाइअसहमहण्णवो
बुल-बोड बुल वि [दे] बोड, भदन्त, धर्मिष्ठ (पिंग णालिया, नालिआ नी [नालिका] बूर बेसक्खिज्ज न [दे] द्वेष्यत्व, रिपुता, दुश्मनाई १९८) से भरी हुई नली (राज; भग)।
(दे ७, ७६ टी)। बुलंबुला स्त्री [दे] बुलबुला, बुख़ुद (दे ६, बूल वि [दे] मूक, वाचा-शक्ति से रहित बेसण न [दे] वचनीय, लोकापवाद, लोक(पिंग १९८ टी)
निन्दा (दे ७, ७५ टी)बुलबुल पुं[दे] ऊपर देखो ( षड् )।- बूह सक [ बृह.] पुष्ट करना । बूहए (सूध बेहिम वि [दे. द्वैधिक] दो टुकड़े करने बुल्ल देखो बोल्ल । बुल्लइ (कुप्र २६, श्रा
योग्य, खण्डनीय (दस ७, ३२) १४); बुलंति (प्रासू ४)। प्रयो. बुल्लावेइ,
बे देखो बि (वजा १०; हे ३, ११६; १२० बोंगिल्ल पि दे] १ भूषित, अलंकृत। २ बुलावेमि, बुल्लावए (कुप्र १२७; सिरि
पिंग), 'आसी (अप) स्त्री [अशीति]| पुं. पाटोप, आडम्बर (दे ६, ६६) ४४०)
बयासी, ८२ (पिंग), इंदिय वि [इन्द्रिय] बोटण न [दे] चूचुक, स्तन का अग्र भाग बुव सक [5] बोलना। बुवइ (षड् ;
त्वचा और जीभ ये दो ही इन्द्रियवाला प्राणी (दे ६, ९६)। कुमा)। वकृ. बुवंत, बुयाण, बुवाण (उत्त
| (ठा १; भगः स ८३; जी १५)। हिय | बोंड न [६] १ चूचुक, स्तन-वृन्त (दे ६, २३, २१ सूम १,७,१०० उत्त २३, ३१)।
[द्वयाहिक] दो दिन का (जीवस ११६) 1-
द्वयाहिक दो दिन का (जीवस ११६) ९६)। २ फल-विशेष, कपास का फल (प्रौपः देखो बू । बेंट देखो बिंट (महा)
तंदु २०)। य न [ज] सूती वस्त्र, सूती बुस न [बुस] १ भूसा, यव प्रादि का कडंगर, | बेंत देखो बू।।
कपड़ा (सूत्र २, २, ७३; भोप)नाज का छिलका (ठा ८-पत्र ४१७)। २
बोंद न [दे] मुख, मुंह (दे ६,६६) दि देखो बे-इंदिय (पंच ५, ५६)। तुच्छ धान्य, फल-रहित धान्य (गउड)।
बोंदि स्त्री [दे] १ रूप । २ मुख, मुंह (दे ६, बेटू देखो बिट्ठ (मोघभा १७४) । बुसि स्त्री [वृषि, सि] मुनि का प्रासन ।
९६)। ३ शरीर, देह (दे ६, १६ पएह १, 'म, मंत वि [°मत् ] संयमी, व्रती, मुनि
बेड [दे] नौका, जहाज (दे ६, ६५, १ कप्पः प्रौप; उत्त ३५, २०, स ७१२,
बेडय (सूम २, ६, १४ प्राचा) -
विसे ३१६१, पव ५५ पंचा १०, ४)
सुर १३, ५०) बुसिआ स्त्री [बुसिका यव आदि का कडंगर,
बेडा । स्त्री [दे] नौका, जहाज (उप बोंदिया स्त्री [दे] शाखा (सूत्र २, २, ४६)। भूसा (दे २, १०३)।
बेडिया ७२८ टी; सिरि ३८२, ४०७, बोकड) पुं [दे] छाग, बकराः गुजराती में बुह पुं[बुध] १ ग्रह-विशेष, एक ज्योतिष्क
बेडी Jश्रा १२; धम्म १२ टी); 'पाणीहि | बोक्कड ) 'बोकडो (ती २; दै ६, ६६)। देव (सुर ३, ५३, धर्मवि २४)। २ वि.
| स्त्री. °डी (दे ६, ६६ टी)।
जलं दारइ परित्तदंडेहि बेडिव्व' (धर्मवि पण्डित, विद्वान् (ठा ४, ४; सुर ३, ५३; १३२) ।।
बोक्कस पुं[बोक्कस] १ अनार्य देश-विशेष धर्मवि २४; कुमा; पाप्र)।
बेड्डा स्त्री [दे] श्मश्रु, दाढ़ी-मूंछ के बाल (दे (पव २७४) । २ वर्णसंकर जाति-विशेष, ६,६५)
निषाद से अंबष्ठी की कुक्षि में उत्पन्न (सुख बुहप्प देखो बहस्सइ (हे २,५३, १३७ बुहप्फइ
| बेदोणिय वि [वैद्रोणिक] दो द्रोण का,
द्रोण-द्वय-परिमित; 'कप्पइ मे बेदोरिणयाए बोकसालिय पुं[दे] तन्तुवाय, 'कोट्टागकुलाणि बुहुक्ख सक [बुभुक्ष ] खाने की इच्छा कंसपाईए हिरएणभरियाए संबवहरित्तए', वा गामरक्खकुलाणि वा बोकसालियकुलारिण करना । बुहुक्खइ (हे ४, ५ षड्)। (उवा)
वा' (प्राचा २, १, २, ३) बुहुक्खा देखो बुभुक्खा (राज)।
बेभेल [बेभेल] विन्ध्याचल के नीचे का बोक्कार देखो बुक्कार (सुर १०, २२१) बुहुक्खिअ वि [बुभुक्षित] भूखा (कुमा)।
एक संनिवेश (भाग ३, २-पत्र १७१) बोक्किय न [बूत्कृत] गर्जन, गर्जना (पउम बू सक [ ] बोलना, कहना। बूम, बूया,
बेमासिय वि [द्वैमासिक दो मास का, दो ५६, ५४) । बूहि (उत्त २५, २६; सूत्र १, १, ३, ६
महीने का संबन्ध रखनेवाला (पउम २२, बोगिल्ल वि[दे चितकबरा, 'फसलं सबल १,१,१,२) । बिति, बेंति, बेमि, बुआ (कम्म २८)
सारं किम्मीरं चित्तलं च बोगिल्लं' (पान)। बेलि स्त्री दे] स्थूणा, खूटा (दे ६, ६५ | बोट सक[] उच्छिष्ट करना, जूठा करना। ३, १२: महाः कप्प)। भूका. अब्बवी (उत्त २३, २१, २२, २५, ३१; ठा ३, २)। । पात्र)
गुजराती में 'बोटबुं; 'रयणीए रयरिणचरा वकृ. बिंत, बेंत (उप ७२८ टी; सुपा ३६०; बेल्ल देखो बिल्ल (प्राकृ ५)।
चरंति बोट्टति अन्नमाईयं' (सुपा ४६१)।विसे ११६) । संकृ. बूइत्ता (ठा ३, २) देखो बेल्लग ([दे] बैल, बलीवदं (भावम)। बोड वि[]१ धार्मिक, धर्मिष्ठ । २ तरुण, बव, बुव ।।
बेस प्रक [विश, स्था] बैठना, 'अंततं युवा (दे ६, ६६)। ३ मुण्डित-मस्तका बूर [बूर] वनस्पति-विशेष (णाया १, भोक्खामि त्ति बेसए भुंजए य तह चेव' (प्रोध | 'एमेव अडइ बोडो', गुजराती में 'बोडो' (पिंड १-पत्र ६; उत्त ३४, १६ कप्पा पोप) ५७१)
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बुहस्सइप कुमा)
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