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भगः प्रौप) , भाषण, भंडागली [दे] १ मंत्री,
भंजाविअ-भक्ख पाइअसहमहण्णवो
६४१ भंजावि विभिञ्जित] १ भंगाया हुमा, | भंडाआर [भाण्डागार] भंडार, कोठा | भंत वि [भात् , भ्राजत् ] चमकता, भंजिअ तुड़वाया हुमाः (स ५४०)। २ | भंडागार या कोठार, बखार (मुद्रा १४१: स प्रकाशता (विसे ३४ भगाया हुमा (पिंग)। ३ प्राकान्त (तंदु ३८) १७२ सुपा २२१, २६)।
भंत वि [भवान्त] भव का-संसार का भंजिअ देखो भग्ग= भग्न (कुमा ६, ७० भंडागारि पुंस्त्री [भाण्डागारिन्, क] अन्त करनेवाला, मुक्ति का कारण (बिसे पिंगः भवि) भंडागारिअ भंडारी, भंडार का अध्यक्ष
३४४६) भंड सक [भाण्डय ] भंडारा करना, संग्रह (णाया १,८; कुप्र १०८)। स्त्री. "रिणी
भंत वि[भयान्त भय-नाशक (विसे ३४४६)। करना, इकट्ठा करना । भंडे (सुख २, ४५)M (णाया १,८)। भंड सक [भण्ड] भाँड़ना, भत्सना भंडार देखो भंडागार (महा)।
भंति स्त्री [भ्रान्ति भ्रम, मिथ्या ज्ञान (धर्मस करना, गाली देना। भंडइ (सण)। वकृ. भंडार [भाण्डकार] बर्तन बनानेवाला ७२०७२३, सुपा ३१२ भाव) । भंडंत (गा ३७६)। संकृ. भंडिउं (वव १) शिल्पी (राज)
भंति (अप) स्त्री [भक्ति] भक्ति, प्रकार भंड ([भण्ड] १ विट, भड़ आ (पव ३८)। भंडारि देखो भंडागारि (स २०७; सुर (पिंग) । २ भाँड़, बहुरूपिया, मुख आदि के विकार से भंडारिअ ४, ६०)।
भंभल वि[दे] १ अप्रिय, अनिष्ट (दे ६, करनेवाला निर्लज्ज भंडिअ [भाण्डिक] भंडारी, भंडार का । ११०)। २ मूर्ख, प्रज्ञान, पागल, बेवकूफ (आव ६) अध्यक्ष (सुख २, ४५)
(दे ६, ११०; सुर ८, १९६) भंड न [दे] १ वृन्ताक, बैंगन, भंटा (दे ६, भंडिआ स्त्री [भाण्डिका] स्थाली, थलिया
भंभसार पुंभम्भसार] भगवान महावीर १००)। २ पुं. मागध, स्तुति-पाठक । ३ | (ठा ८-पत्र ४१७)।
के समकालीन और उनके परम भक्त एक सखा, मित्र। ४ दौहित्र, पुत्री का पुत्र (द भंडिआ। स्त्री [दे] १ गंत्री, गाड़ी (बृह ३ | मगधाधिपति, ये श्रेणिक और बिम्बसार के ६, १०९)। ५ पुंन. मण्डन, आभूषण, | भंडी दे ६, १०६; आवम; निचू ३; नाम से भी प्रसिद्ध थे (णाया १, १३, गहना (दे ६, १०६; भगः प्रौप)। ६ वि. वव ६) । २ शिरीष वृक्ष । ३ अटवी, जंगल । प्रौप) । देखो भिभसार, भिंभिसार ।। छिन्न, मूर्धा, सिर-कटा (दे ६, १०६)। ७ ४ असती, कुलटा (दे ६, १०६)
| भंभा स्त्री [दे. भम्भा] १ वाद्य-विशेष, भेरी न. क्षुर, छुरा । ८ छुरे से मुण्डन (राज)। भंडीर भण्डीर] वृक्ष-विशेष, शिरीष वृक्ष
(दे ६ १००; णाया १,१७, विसे ७८ टी; भंड पुन [भाण्ड] १ बरतन, बासन, पात्र (कुमा)। वडिंसय, वडेंसय न [वतंसक] भंडग'दुग्गइदुहभंडे घडइ अक्खंडे' (संवेग
सुर ३, ६६ सम्मत्त १०६ राय; भग ७, मथुरा नगरी का एक उद्यान; 'महुराए १४.दे ३,२१, था २७सुपा १९९)।
६)।२'माँ' 'भा' की मावाज (भग ७,६
यरीए भंडि (? डीर)वडेंसए उज्जाणे २ क्रयाणक, पण्य, बेचने की वस्तु (णाया
पत्र ३०५)।। (राज; णाया २-पत्र २५३), वण न १,१–पत्र ६० प्रौप; पएह १, १, उवा:
भंभी स्त्री [दे] १ असती, कुलटा (दे ६, विन]१ मथुरा का एक वन (ती ७)। )। २ नीति-विशेष (राज) कुमा)। ३ गृह स्थान (जीव ३)। ४ वस्त्र
२ मथुरा का एक चैत्य (प्रावम)। पात्र आदि घर का उपकरण (ठा ३, १९
भंस प्रक[भ्रंश ] १ नीचे गिरना। २ नष्ट भंडु न [दे] मुण्डन (दे ६, १००)। कप्पः ओष ६६६ गाया १,५)।
होना। ३ स्खलित होना। भंसद (हे ४, भंडण न [दे. भण्डन] १ कलह, वाक्| भंडुल्ल देखो भंड = भाण्ड (भवि)।
१७७) कलह, गाली-प्रदान (दे ६, १०१, उक भंत वि [भ्रान्त] १ घुमा हुमाः 'भंतो जसो | भंस पु [भ्रंश] १ स्खलना। २ विनाश महा; रणाया १,१६-पत्र २१३, प्रोष मेईणी (ए)' (पउम ३०,६८)। २ भ्रान्ति- (सुपा ११३; सुर ४, २३०), 'संपाडह २१४० गा ६९६ उप ३३६%, तंदु ५०)। युक्त, भ्रमवाला, भूला हुमा (दै १, २१)। | संपयाभंस' (कुप्र ४१)। .. २ क्रोध, गुस्सा (सम ७१)।
३ अपेत, अनवस्थित (विसे ३४४८)। भंसग वि [भ्रशक] विनाशक (वव १). भंडणा स्त्री [भण्डना] भौड़ना, गाली- ४ पुं. प्रथम नरक का तीसरा नरकेन्द्रक
भंसण न [भ्रशन] ऊपर देखोः 'को ए प्रदान (उप ३३६)।नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ३)।
उवामो जिणधम्म-भंसणे होज्ज एईए' (सुपा भंडय देखो भंड = भएड (हे ४, ४२२)।
भंत वि [ भगवत् ] भगवान्, ऐश्वर्य-शाली | ११३, सुर ४, १५)। भंडय देखो भंडग; 'पायसघयदहियाणं भरि
| (ठा ३, १७ भग, विसे ३४४८-३४५६) भंसणा स्त्री [भ्रशना] ऊपर देखो (पण्ह ऊणं भंडए गरुए (महा ८०, २४. उत्त
भंत वि [भदन्त] १ कल्याण-कारक । २ २, ४ श्रावक ६५) । २६,८)
सुख-कारक । ३ पूज्य (विसे ३४३६ कप्पा भंडवेआलिअ वि [भाण्डवैचारिक] करि
भक्ख सक [ भक्षय्] भक्षण करना, खाना। विपा १, १; कसः विसे ३४७४)। याना बेचनेवाला (मणु १४६)।
भक्खेइ (महा)। कर्म. भक्खिज्जइ (कुमा)।
वकृ. भक्खंत (सं १०२)। हेकृ. भक्खिउं भंडा स्त्री [दे] सम्बोधन-सूचक शब्द (संक्षि | भंत वि [भजत् ] सेवा करता (विसे | | ३४४६)
(महा)। कृ. भक्ख, भक्खेय, भक्खणिज ।
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