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पाइअसहमहण्णवो
भक्ख-भट्टिणी
(पउम ८४,४; सुपा ३७०; णाया १, १०, भगवती-सूत्र, पाँचवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (पंच भज देखो भंज (आचा २, १, १, २) सुर १४, ३४ श्रा २७) ।।
५, १२५), वंत वि[वत् ] ऐश्वर्यादि- भज देखो भय = भज् । भक्ख पु[भक्ष] भक्षण, भोजन; 'भो कीर गुण-सम्पन्न । २ पृ. परमेश्वर, परमात्मा | भजंत देखो मंज। खीरसकरदक्खाभक्खं करहि ताव' (सुपा (कप्पः विसे १०४८ प्रामा)
भजण 1 [भ्रजन १ भुनन, भुनना भगंदर पुं[भगन्दर] रोग-विशेष-गुदा के
भजणय २६७)
(पण्ह १, १ अनु ५)। २ भुनने
का पात्र (सूअनि ८१; विपा १, ३) भीतरी भाग में होनेवाला एक प्रकार का भक्ख देखो भक्ष = भक्षय । फोड़ा (णाया १, १३; विपा १, १)
भन्जमाण देखो भंज । भक्ख पुंन [भक्ष्य खण्ड-खाद्य, चीनी का बना हुआ लाच द्रव्य, मिठाई (सुज्ज २० टी) भगंदरि वि [भगन्दरिन्] भगन्दर रोगवाला
भजा नी [भार्या] पत्नी, स्त्री (कुमा; प्रासू
११६) (श्रा १६ संबोध ४३)। भक्खग वि [भक्षक] भक्षण करनेवाला | भगंदरिअ वि [भगन्दरिक] ऊपर देखो |
भजि स्त्री [भर्जिका] देखो भजिआ। (कुप्र २६)।
भजिअ देखो भग्ग = भग्नः 'तरुरिणयं वा भक्खण न [भक्षण] १ भोजन (पएण २८)। (विपा १, ७)
छिवाडि अभिक्कंतभज्जियं पेहाए' (पाचा २, २ वि. लानेवाला, 'सव्वभक्खरणो' (श्रा २८)
भगंदल देखो भगंदर (राज)।भक्खणया स्त्री [भक्षणा] भक्षण, भोजन | भगिणी देखो बहिणी (णाया १,८; कप्पः
भजिअ वि [भृष्ट, भर्जित] भुना हुआ, (उवा) कुप्र २३६; महा)।
पकाया हुमा (गा ५५७) प्राचा २, १, १, भक्खर पुं [भास्कर] १ सूर्य, रवि (उत्त भगिरहि । [भगीरथि सगर चक्रवर्ती
३ विपा १, २, उवा)। भगीरहि का एक पुत्र, भगीरथ (पउम ५, २३, ७८ लहुन १०)। २ अग्नि, वह्नि ।
जिआ स्त्री [भर्जिका] १ भाजी, शाक-भेद, १७६; २१५।३ अर्क वृक्ष (चंड)
पत्राकार तरकारी (पव २५६)। २ पथ्यदन, भग्ग वि [भन] १ खण्डित, भाँगा हुमा (सुर भक्खराभ न [भास्कराभ] १ गोत्र-विशेष,
मार्ग-भोजन (कल्पभाष्य गा० ३६१८). २, १०२; दं ४६; उवा)। २ पराजित । ३ जो गौतम गोत्र की शाखा है। २ पुंस्त्री. उस
भजिम वि [भ्रजिम भुनने योग्य (प्राचा पलायित, भागा हुआ; 'जइ भग्गा पारकडा' गोत्र में उत्पन्न (ठा ७-पत्र ३६०)।
२, ४, २, १५) (हे ४, ३७६; ३५४; महा, वव २)। इ भक्खावण न [भक्षण] खिलाना (उप पुं[जित् ] क्षत्रिय परिव्राजक-विशेष
भन्जिर वि [भक्त] भाँगनेवाला, 'फारफल१५० टी)।
भारभजिरसाहासयसंकुलो महासाही' (धर्मवि (मोप)। भक्खि वि [भक्षिन] खानेवाला (प्रौप)
५५, सण) भग्ग वि [दे] लिप्त, पोता हुआ (दे ६,६६) भजेत देखो भज = भ्रस्न । भक्खिय वि [भक्षित] खाया हुआ (भवि)।.
भग्ग न [भाग्य] नसीब, दैव (सुर १३, भट्ट [भट्ट] १ मनुष्य-जाति-विशेष, स्तुतिभक्खेय देखो भक्ख = भक्षय । १०५)
पाठक की एक जाति, भाट; 'जयजयसद्दकभग पुंन [भग] १ ऐश्वयं। २ रूप। ३ भग्गव [भार्गव] १ ग्रह-विशेष, शुक्र ग्रह रंतसुभट्ट' (सिरि १५५, सुपा २७१; उप
श्री। ४ यश, कीति । ५ धर्म। ६ प्रयत्न (पउम १७, १०८)। २ ऋषि-विशेष (समु पू१२०)। २ वेदाभिज्ञ पण्डित, ब्राह्मण, 'इस्सरियरूवसिरिजसधम्मपयत्ता मया भगा- १८१)।
वित्र (उप १०३१ टी)। ३ स्वामित्व, भिक्वा' (विसे १०४८ चेइय २८८)। ७ भग्गवेस न [भार्गवेश] गोत्र-विशेष (सुज मालिकपन, मालकियत (प्रति ७)।सूर्य, रवि । ८ माहात्म्य। १ वैराग्य । १० १०, १६ टी; इक)
भट्टारग। पुं[नट्टारक] १ पूज्य, पूजनीय मुक्ति, मोक्ष। ११ वीर्य । १२ इच्छा (कप्प
भग्गिअ (अप) । देखो भग्ग = भग्न (पिंग भट्टारय) (प्राव ३; महा)। २ नाटक की टी)। १३ ज्ञान (प्रामा)। १४ पूर्वाफाल्गुनी |
भाषा में राजा (प्राकृ ६५)।। नक्षत्र (अणु)। १५ स्त्री. योनि, उत्पत्ति-स्थान
भट्टि देखो भत्तु = भतु (ठा ३, १; सम ८६; (पराह १, ४-पत्र ६८; सुज्ज १०, ८)।
भच्छिअ वि [भत्सित] तिरस्कृत (दे १, कप्प; स १४४ प्रति ३; स्वप्न १५)। १६ देव-विशेष, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का ८०; कुमा ३, ८६)।
भट्टि पुं [दे] विष्णु, श्रीकृष्ण (हे २, अधिष्ठाता देव, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, भज देखो भय = भज् । वकृ. भजंत, भजेंत, १७४दे६.१००) ३; सुज्ज १०, १२)। १७ गुदा और अण्ड
भजमाण, भजेमाण ( षड्)।- भट्टिणी स्त्री [भ]] स्वामिनी, मालिकिन कोश के बीच का स्थान (बृह ३) दत्त पुं भन्ज सक [भ्रस् ] पकाना, भुनना। (स १३४)।[दत्त नृप-विशेष (हे ४, २६६) व भज्जति, भज्जेंति (सूअनि ८१; विपा १, भट्टिणी स्त्री [भट्टिनी] नाटक की भाषा में देखो 'वंत (भग, महा)। 'वई स्त्री [°वती] | ३)। वकृ. भज्जत, भज्जेत (पिंड ५७४ वह रानी जिसका अभिषेक न किया गया हो १ ऐश्वर्यादि-सम्पन्ना, पूज्या (पडि)। २ विपा १, ३)।
(प्रति ७)।
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