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६३४ पाइअसद्दमहण्णवो
बाल-बाहुलेय बाल [बाल] १ बाल, केश (उप ८३४)। बालाटुंबी स्त्री [दे] तिरस्कार, अवहेलना बाहा स्त्री [ दे. बाहा] नरकावास-श्रेणो २ बालक, शिशु (कुमाः प्रासू ११६)। ३ । (सुपा १४)।
(देवेन्द्र ७७)। वि. मूर्ख, प्रज्ञानी (पान)। ४ नया, नूनन बालि वि [बालिन् बाल-प्रधान, सुन्दर केश- बाहि । [बहिस् ] बाहर (सुज्ज १९(कप्पू) । ५. स्वनाम-ख्यात एक विद्याधर वाला (अणु बृह १)।
बाहिं पत्र २७१; महा: प्राचाः कुमा; हे २, राजा (पउम १०, २१)। ६ वि. असंयत, बालिआ स्त्री [बालिका ] बाला, कुमारी,
१४० पि ४८१)। संयम-रहित (ठा ४, ३) कइ j[कवि]। लड़को (प्रासू ५१; महा) ।
बाहिज न [बाधिर्य बधिरता, बहरापन तरुण कवि, नया कवि (कप्पू) क पुं बालिआ स्त्री [बालता] १ बालकपन, शिशुता
(विसे २०८)। [क] उदित होता सूर्य (कुमा)। "ग्गाह | (भग) । २ मूर्खता, बेवकूफी, 'बिइया मंदस्सा
देवकी जिदयामा बाहिर प्र[बहिस] बाहर (हे २, १४०%; पुं[ग्राह] बालक की सार-सम्हाल करने- बालिया' (याचा)
पान प्राचा; उव)। ओ [तस् ] वाला नौकर (सुर १, १६२)"ग्गाहि पुं बालिस वि [बालिश] मूर्ख, बेवकूफ (पामः
बाहर से (कप्प)। [ग्राहिन्] वही पूर्वोक्त अर्थ (णाया १, (घण २३) ।
बाहिर वि [बाह्य] बाहर का (प्राचा; ठा २–पत्र ८४) घाय वि [°घात] बाल- बाह सक [बाध्] १ विरोध करना। २
२,१-पत्र ५५, भग २, ८ टी)। उद्धि हत्या करनेवाला (णाया १, २,१८) व रोकना । ३ पीड़ा करना । ४ विनाश करना।
पुं[ ऊर्विन् ] कायोत्सर्ग का एक दोष, पुंन [ तपस] १ अज्ञानी की तपश्चर्या बाहइ, बाहए (पंचा ५, १५; हे १, १८७)
दोनों पाष्णि मिलाकर और पैर को फैलाकर (भग औप) । २ वि. अज्ञान पूर्वक तप करने- उव), बाहंति (कुप्र६८) । कवकृ.बाहिज्जत,
किया जाता कायोत्सर्ग (चेइय ४८६) । वाला (कम्म १, ५६) तवस्सि वि बाहीअमाण (पउम १८, १६; सुपा ६४५; बाहिरंग वि [बहिरङ्ग] बाहर का, बाह्य ['तपस्विन् ] अज्ञान-पूर्वक तप करनेवाला, | अभि २४४) कृ. बाणिज (कप्पू)।- (सूम २, १, ४२) मुर्ख तपस्वी (पि ४०५)। पंडिअ वि बाह पुं[बाष्प] प्रश्रु, माँसू (हे २, ७० बाहिरिय वि [बाहिरिक, बाह्य] बाहर का, [पण्डित] आंशिक त्याग करनेवाला, कुछ पाना कुमा)
बाहर से संबन्ध रखनेवाला (सम ८३ पाया अंशों में त्यागी और कुछ में प्रत्यागी (भग)Mबाह पुं[बाध] विरोध (भास ३४)। १, १; पिंड ६३६; प्रौपः कप्प)! 'बद्धि वि 'बद्धि] अनभिज्ञ (धरण ५०)Mबाह देखो बाढ (प्रयौ ३७)।
| बाहिरिया स्त्री [बाहिरिका] किले के बाहर "मरण न [ मरण] अविरत दशा का मरण,
बाह पुं[बाहु] हाथ, भुजा (संक्षि २) की गृह-पंक्ति, नगर के बाहर का मुहल्ला असंयमी की मौत (भगः सुपा ३५७)*"वियण, °वीयण पुंस्त्री [व्यजन] चामर, चंवर
| बाहग वि [बाधक १ रोकनेवाला (पंचा १, (सूम २, ७, १; स ६६)। (णाया १, ३), स्त्री. “उवणहामो बालवी
४६) । २ विरोधीः 'अब्भुवगयबाहगा नियमा' | बाहिरिल्ल वि [बाह्य] बाहर का (भगः पि प्रणी (ठा ५,१-पत्र ३०३) हार पुं
(श्रावक १६२)। [ धार] बालक का सार-सम्हाल करनेवाला
बाहडपसबाहड, वाग्भट राजा कमारपाल बाहु पुंस्त्री [बाहु] १ हाथ, भुजा (हे १, नौकर (सुपा ४५८) का स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री (कुप्र ६)।
३६, प्राचा: कुमा)। २ पुं. भगवान् ऋषभदेव बाल देखो बल । ण्ण, न वि [s] बल
बलि बाहण न [बाधन] १ बाधा, विरोध (धर्मसं
का पुत्र, बाहुबलि (कुप्र ३१०)
पुं[बलि] १ भगवान् प्रादिनाथ का एक को जाननेवाला (प्राचा १, २, ५, ५ १२७६)। २ विराधन (पंचा १६, ५)।
पुत्र, तक्षशिला का एक राजा (सम ६०; बाहणा स्त्री [बाधना] ऊपर देखो (धर्मसं
पउम ४, ५२, उव)। २ बाहुबलि के प्रपौत्र आलमबाल्य] बालत्व, बचपन, लड़कपन, १११) लपन, मूर्खता (उत्त ७, ३०) । देखो बल्ल । बाहर देखो बाहिर (प्राचा) ।
का पुत्र (पउम ५, ११)। मूल न [ मूल]
कक्षा, बगल (कप्पू)। बालअ देखो बाल = बाल (गा १२६) बाहल बाहल] देश-विशेष (प्रावम)।
| बाहुअ 'बाहुक] स्वनाम-ख्यात एक ऋषि बालअ [दे] वणिक-पुत्र (दे ६, १२)।
बाहल्लन [बाहल्य] स्थूलता, मोटाई (सम बालग्गपोइआ श्री [दे] १ जल-मन्दिर, ३५; 87 ८-पत्र ४४०; प्रौप) बाहुाडअ वि [दे] लज्जित, शरमिंदा (सुपा तलाव आदि में बनवाया जाता छोटा प्रासाद। बाहा स्त्री [बाधा] १ हरकत, हरज। २ २ वलभी, अट्टालिका (उत्त ६, २४)। विरोध (सुपा १२६)। ३ पीड़ा, परस्पर बाहुया स्त्री [बाहुका] श्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष बाला श्री [बाला] १ कुमारी, लड़की । संश्लेष से होनेवाली पीड़ा (जं १, भग (राज)(कुमा)। २ मनुष्य की दस अवस्थामों में
बाहुलग देखो बाहु (तंदु ३९)। पहली दशा, दस वर्ष तक की अवस्था (तंदु बाहा स्त्री [बाहु] हाथ, भुजा (हे १, ३६, बाहुलेय पुं[बाहुलेय] गो-वत्स, बैल, वृषभ १६) । ३ छन्द विशेष (पिंग)। कुमाः महाः उवा प्रौप)
(माधम) -
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