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बहुला-बारबई
पाइअसहमहण्णवो बहुला स्त्री [बहुला] १ गौ, गैया (पाप)। १५)। रसवरिसिय वि [दशवार्षिक] बाइया स्त्री [दे] माँ, माता; गुजराती में 'बाई २ इस नाम की एक स्त्री (उवा) वण न बारह बर्ष का (मोह १०२; कुप्र ६०)। (कुप्र ८७) [वन मथुरा नगरी का एक प्राचीन वन रसविह विदिशविध बारह प्रकार का बाउल्लया। स्त्री [दे] पञ्चालिका, पुतली%3B (तो ७) (नव ३०) ५
बाउल्लिआ 'आलियिभित्तिबाउल्लयं व न हु रसाह न [दशाह,
बाउल्ली ) मुजिउं तरइ' (वज्जा ११८ बहुलि पुं [बहुलिन्] स्वनाम-ख्यात एक दशाख्य] १ बारहवाँ दिन । २ जन्म के बार
कप्पू: दे ६, ६२) राज-पुत्र (उप ६३७)।। हवें दिन किया जाता उत्सव, बरही (गाया
बाउस देखो बउस (पिंड २४; ओघ ३४८)
१, १; कप्प; प्रौपः सुर ३,२५) ५ रसी स्त्री बहुली स्त्री [दे] माया, कपट, दम्भ (सुपा
बाउसिय वि [बाकुशिक] 'बकुश' चारित्र६३०)।
[दशी] बारहवीं तिथि, द्वादशी (सम २६; पउम ११७, ३२; ती ७) रसुत्तरसय वि
वाला (सुख ६, १) । बहुलिआ स्त्री [दे] बड़े भाई की स्त्री (षड् )
बाउसिया स्त्री [बकुशिका] 'बश' पारित्र[दशोत्तरशत] एक सौ बारहवाँ (पउम बहुल्ली स्त्री दे] कीड़ोचित शालभजिका, खेलने
वाली (गाया १, १६-पत्र २.६)। ११२, २३) ५ °रह देखो रस = दशन् (हे की पुतलो (षड्)।
बाढ क्रिवि बाढ] १ अतिशय, नापन्त, धना १, २१९) । वट्ठि स्त्री [पष्टि] बासठ, (उप ३२०; पानः महा) । बहुवी देखो बहुई (हे २, ११३)।
कार पुं ६२ (सम ७५; पंच ५, १८, सुर १३, [कार स्वीकार-सूचक उक्ति (तिसे ५६५)। बहुवाहि पुं [बहुव्रीहि] व्याकरण-प्रसिद्ध
२३८, देवेन्द्र १३७)+वण (अप)। देखो |
| बाण पुं [दे] १ पनस वृक्ष, कटहर का पेड़। एक समास (अणु १४७) । वन्न (पिंग)५वण्ण देखो वन्न (कुमा)
२ वि. सुभग (दे ६, ६७)। बहूअ वि [प्रभूत] बहुत, प्रचुर (गउड)। "वत्तर वि [°सप्तत] बहत्तरवा, ७२ वाँ
बाण पुंस्त्री बाण] १ वुश-विशेष, कटसरैया बहेडय ' [बिभीतक] १ बहेड़ा का पेड़ (पउम ७२, ३८) * °वत्तरि स्त्री [सप्तति]
का गाछ (पराण १७-पत्र ५२६; कुमा)। (हे १, ८८ १०५; २०६)।, २ न. बहेड़ा बहत्तर, ७२ (सम ८३; भगः प्रौप, प्रासू
२ पुं. शर, बाण (कुमा; गउड)। ३ पाच की का फल (कुमा)। १२६) वन्न स्त्रीन [पञ्चाशत् बावन,
संख्या (सुर १६, २४६) । वत्त न [पात्र] बा' वि. ब. [द्वा, द्वि] दो, दो की संख्या- पचास और दो, ५२ (सम ७१; महा);
तूणीर, शरधि (से १, १८)। वाला। इस (अप) देखो वीस (पिंग) 'बावन्न होंति जिणभवरणा' (सुख ६, १)
बाध देखो बाह = बाध् । कवकृ. बाधीअमाण "ईस देखो वीस (पिंग)। णउइ श्री | धन्न वि [पञ्चाश बावनवाँ (पउम ५२,
(पि ५६३)। ["नवति बानबे, १२ (सम ६६; कम्म ३०) वीस स्त्रीन [°विशति] बाईस, ६, २६)। °णज्य वि ['नवत] १२ वाँ २२ (भगः जी ३४), स्त्री. °सा (पि ४४७)।
| बाधा स्त्री [बाधा] विरोध (धर्मसं ११७)। (पउभ ६२, २६) गुवइ देखो णउइ वीस वि [°विश] बाईसवाँ, २२ वाँ (पउम बाधिय वि [बाधित] विरोधवाला, प्रमाण(रयण ६२)। याल, यालोस स्त्रीन
२०, ८२ पत्र ४६) वीसइ देखो वीस विरुद्ध (धर्मसं २५६) । [°चत्वारिंशत् ] वयालीस, चालीस और विंशति (भगः पव १८६) वीसइम वि | बाह्मण देखो बम्हण (हे १, ६७ षड्)। दो, ४२ (उवः नव २, भग; सम ६६ [विंशतितम] १ बाईसवाँ, २२ वाँ (पउम बाय न बाक] बक-समूह (श्रा २३)। कप्प; प्रौप), स्त्री. याला, 'यालीसा (कम्म २२, ११०; अंत २६)। २ लगातार दस
| बायर वि [बादर] १ स्थूल, मोटा, असूक्ष्म ६, ६; कप्प) । °यालीसम वि [चत्वा- दिन का उपवास (णाया १, १-पत्र ७२)
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पिण्डर
(पएह १,१, पव १६२, दे ४४) । २ नववाँ रिशत्तम] बयालीसवाँ, ४२ वाँ (पउम ४२,
चीसविह वि [विंशतिविध] बाईस प्रकार गुण-स्थानक (कम्म २, ३: ५; ७)। नाम ३७) । र, रस त्रि. ब. [दशन] बारह
का (सम ४०) सट्ठ वि [°षष्ट] बासठवाँ, न[ नागन्] कर्म-विशेष, स्थूलता-हेतु कर्म १२; 'बारभिक्खुपडिमधरों' (संबोध २२;
६२ वा (पउम ६२, ३७) "सट्ठि स्त्री (सम ६७) । कम्म ४, ५, १५; नब २०० दं ७; कप्पा
पष्टि] बासठ, ६२ (सम ७५, पिग) बार न द्विार] दरवाजा (हे १,७६) जी २८ उवा) । रस वि [°दश] बारहवाँ,
'सी, सीइ स्त्री [अशीति] बयासी, ८२. १२ वाँ (सुख २, १७) । 'रसंग श्रीन
बारगा स्त्री [द्वारका] स्वनाम-प्रसिद्ध नगरी, (नव २; सम ८६; कप्प; कम्म ५, १७) दिशाका बारह जैन अंग-ग्रंथ (पि ४११), | सीरम वि
जो आजकल भी काठियावाड़ में 'द्वारका' के
अशीतितम बयासीवाँ, ८२ स्त्री. गी (राज)। "रसम वि [°दश]
ही नाम से प्रसिद्ध है (उत्त २२, २२, २७)।। वाँ (पउम ८२, १२२) हत्तर (अप) देखो बारहवाँ (सूत्र २, २, २१: पब ४६; महा)।
बारवई स्त्री द्वारवती] १ ऊपर देखो (सम
हत्तरि (सण)। हत्तरि स्त्री [°सप्तति] 'रसमासिय वि[दशमासिक] बारह
१५१ णाया १, ५, उप ६४८ टी)। २ बहत्तर, ७२ (कप्पा कुमाः सुपा ३१६) भास का, बारह-मास-संबन्धी (कुप्र १४१)
भगवान् नेमिनाथ की दीक्षा शिविका (विचार "रसय न [ दशक] बारह का समूह (अोधमा बाअ पु[दे] बाल, शिशु (षड् ) । १२६)
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