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बाहुलेर-बिब्बोयण
पाइअसहमहण्णवो बाहुलेर पुं [बाहुलेय] काली गाय का बछड़ा | विउण सक [द्विगुणय् ] दुगुना करना। बिंह सक [बृंह ] पोषण करना। कृ. देखो (अणु २१७) बिउणेइ (पि ५५६)
बिहणिज्ज। बाहुल्ल न [बाहुल्य] बहुलता, प्रचुरता बिंट न [वृन्त] फलादि का बन्धन; 'बघणं बिहणिज्ज वि बृहणीय] पुष्टि-जनक (ठा
मराबीसरा मदिरा
बिट' (पाम)। 'सुरा स्त्री [सुरा] मदिरा, | (पिंड ५६, भगः सुपा २७ उप ६०७)।
६-पत्र ३७५ णाया १,१-पत्र १९) बाहुल्ल वि [बाष्पवत् ] अश्रुवाला (कुमाः | दारू; "बिटसुरा पिट्ठखउरिया मइरा' (पास)। बिहिअ वि [बृहित] पृष्ट, उपचित (हे १,
१२८)सुपा ४६०) बिंत देखो बू = ब्र।
बिग्गाइआ। स्त्री [दे] कीट-विशेष, संलग्न बि वि. ब. [द्वि] दो, २; 'बिलि' (हे ४, बिंदिय वि [द्वीन्द्रिय जिसको त्वचा और
बिग्गाई , रहता कोट-युग्म, गुजराती में ४१८ नव ४; टा २, २; कम्म ४,२; १० जीभ ये दो ही इन्द्रियाँ हो वह (प्रौप) ।
'बगाई' (दे ६,६३) सुख १, १४) जडि पुं[जटिन एक | बिंदुः पुंन [बिन्दु] १ अल्प अंश । २ बिन्दी, |
बिज देखो बीज; 'बिज्ज पिव वड्डिया बहवें महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (सुज्ज २०)M शून्य, अनुस्वार। ३ दोनों 5 का मध्य (पउम ११, १६)।'दल न [दल] चना आदि वह घान्य भाग। ४ रेखागणित का एक चिन्ह; 'बिंदुणो, बिजउरन बीजपर फल-विशेष, एक तरह जिसके दो टुकड़े बराबर के होते हैं, 'जह बिंदूई (हे १. ३४ कप्प, उप १०२२; स्वप्न का नीबू, 'बिज्जउरचिन्भिडेहिं कुणइ पिहाविदल सूलीणं' (वि ३) याल देखो ३९; कसः कुमा)। कला स्त्री ["कला] णाई सम्वत्थ' (सपा ६३०) बा-याल (कम्म ६, २८) यालसय पुन अनुस्वार, बिन्दी (सिरि १९६), सार न | बिजय (अप) देखो बिइज्ज (भवि) । ['चत्वारिंशच्छत] एक सौ बेपालीस, [सार] १ चौदहवाँ पूर्व, जैन ग्रन्थांश
बिट्ट ' [दे] बेटा, लड़का, पुत्र (चंड) १४२ (कम्म २,२६), "विह वि [विध] विशेष (सम २६; विसे ११२६)। २ पुं. बिटी स्त्रीदे] बेटो, पूत्री, लड़की (चंड हे दो प्रकार का (पिंग) । लट्ठि स्त्री [ षष्टि] मौर्य वंश का एक राजा, राजा चन्द्रगुप्त का ४,३३०)। बासठ, ६२ (सुज्ज १०, ६ टो)। सत्तरि, पुत्र (विसे ८६२)।।
बिटु वि [दे. विष्ट] बैठा हुआ, उपविष्ट 'सयरि स्त्री [सप्तति] बहत्तर, ७२ (पव बिंदुइ वि [बिन्दुकित बिन्दु-युक्त, बिन्दु- (मोघ ४७१) १६ जीवस २०६; कम्म ३, ५) विलिप्त (पान; गउड)।
बिडाल ([बिडाल] मार्जार, बिलाव, बिलार, बि । वि [द्वितीय] दूसरा (कम्म ३, १६; | बिंदुइज्जंत वि [बिन्दूयमान] बिन्दुओं से
बिल्ला (पि २४१) बिअपिंग)। कसाय [कषाय ] व्याप्त होता (से ११, १२५)
बिडालिआ। स्त्री [ बिडालिका, ली] मप्रत्याख्यानावरण नामक कषाय (कम्म बिंद्रावण न [वृन्दावन] मथुरा के पास
बिडाली बिल्ली, मार्जारी, बिलारी, | का एक वैष्णव-तीर्थ (प्राकृ १७)।।
बिलैया (सम्मत्त १२२; पि २४१)। देखो बिअन [द्विक] दो का समुदाय, युग्म, युगल बिंब सक[बिम्ब.] प्रतिबिम्बित करना। कर्म. | बिरालिआ। (भगः कम्म १, ३३, प्रासू १९) बिबिज्जइ (सूक्त ४६)।
बिडिस देखो बडिस (उप १४२ टी)। बिआया स्त्री [दे] कीट-विशेष, संलग्न रहने- बिंबन [बिम्ब] १ प्रतिमा, मूत्ति (कुमा)। बिदिय देखो बिइअ (उप २७६) । वाला कीट-द्वय (दे ६, ६३)।
२ छन्द-विशेष (पिंग)। ३ न. बिम्बीफल, बिन्ना स्त्री [बेन्ना] भारत की एक नदी बिइअ देखो बिइज्ज (हे १, ५पव १६४) कुन्दरुन का फल (णाया १, ८–पत्र १२६ (पिंड ५०३)। बिइआ देखो बीआ (राज)
पामा कुमाः दे २, ३९)। ४ प्रतिबिम्ब, बिब्बोअ पुं[विव्वोक] १ स्त्री की शृगारबिइज्ज वि [द्वितीय] १ दूसरा (हे १,
प्रतिच्छाया। ५ अर्थ-शून्य आकार, 'पएणं चेष्टा-विशेष, इष्ट अर्थ की प्राप्ति होने पर २४८; प्रासू ५६)। २ सहाय, मदद करने
जणं पस्सति बिंबभूयं' (सूत्र १, १३, ८)। गर्व से उत्पन्न अनादर-क्रिया (पएह २, ४वाला (पाम सुर ३, १४);
६ सूर्य तथा चन्द्र का मण्डल (गउडः कप्पू) पत्र १३१; णाया १, ८-पत्र १४२; भत्त 'जे दुहियम्मि न दुहिया,
बिंबवय न [दे] फल-विशेष, भिलावाँ: १०१)। २ न. उपधान, तकिया, प्रोसीसा) आवइपत्ते बिइज्जया नेव। "बिंबवयं भल्लाय' (पान)
_ 'सयरणोअं तूलिभं सबिब्बो' (गच्छ ३, ८)।पहुणो न ते उ भिच्चा,
बिंबिसार देखो भिभिसार (अंत)।- बिब्बोअ [विवोक] काम-विकार (अणु धुत्ता परमत्थरो ऐया' बिंबी स्त्री [बिम्बी] लता-विशेष, कुन्दरुन का १३६)
(सुर ७, १४५) गाछ (कुमा)°फल न [फल] कुन्दरुन का | बिब्बोइअ न [विव्वोकित] स्त्री की शृंगारबिउण वि [द्विगुण] दुगुना (हे १, ६४ फल (सुपा २६३)।
चेष्टा का एक भेद (पएह २, ४–पत्र १३१) २, ७६; गा २८६) रय वि [कारक] बिंबोवणय न [दे] १ क्षोभ । २ विकार। बिब्बोयण न [दे] उपधान, तकिया, प्रोसीसा दुगुना करनेवाला (भवि)।
३ प्रोसीसा, उच्छीर्षक (दे ६,६८)। (णाया १,१-पत्र १३)
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