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पाइअसहमहण्णवो
पूइ-पूस
पूइकरणी' (उत्त १, ४)। ८ वृक्ष-विशेष, पूजा देखो पूआ पूजा (उप १०१६) पूरय देखो पूरगः 'बत्तीसं किर कवला आहारो एकास्थिक वृक्ष की एक जाति: 'पूई य निब- पूजिय देखो पूइय = पूजित (मौप)। कुच्छिपूरमो भरिणमो' (पिंड ६४२) करए' (पएण १-पत्र ३१)। कम्म पुन पूर्ण पुं[] हस्ती, हाथी (दे ६,५६) ।
पूरयंत सोपा [कर्मन् मुनि-भिक्षा का एक दोष, पवित्र पूणिआ। स्त्री [दे] पूणी, पूनी, रुई की
देख वस्तु में अपवित्र वस्तु को मिलाकर दी जाती पूी पहल (दे ६, ७८, ६,५६)।
पूरिगा स्त्री [पूरिका] मोटा कपड़ा (राज)। मिक्षा का ग्रहण (ठा ३, ४ टी; औप: पंचा पूप देखो पूअल (पिंड ५५७)। १३, ५), म वि [मत 12 दुर्गन्धी। पूयइ पुं[पूपकिन् हलवाई (णंदि १९४) पूरिम वि [ परिम ] पूरने से-भरने से
होनेवाला (गाया १, १३, परह २,५; २ अपवित्र (तंदु ३८)। पूयंत देखो पूअ = पजय ।।
प्रौप)। पइ वि [पूति कुथित, सड़ा हुआ (प्राचा पयली स्त्री [दे] रोटी (प्राचा २, १, ८, ६) २, १, ८, ४) । पिन्नाग पुन [पिण्याक] पयावणा स्त्री [जना] पूजा कराना (संबोध ।
पूरिमा स्त्री [पुरिमा गान्धार ग्राम को एक सर्षप-खल, सरसों की खली (दस ५, २,
मूर्च्छना (ठा ७----पत्र ३६३) १५) २२)।
पूरिय वि [पूरित] भरा हुआ (गउडा सण पूर सक [ पूरय ] पूर्ति करना, भरना । पूरइ, पूइअ वि [यित] ऊपर देखो (राय १८)
| भवि)।
पूरए (हे ४, १६६, प्रौपः भग; महा पि पृइआलुग न [दे. पत्यालुक] जल में होने
पूरी स्त्री [पूरी] तन्तुवाय का एक उपकरण ४६२) । वकृ. पूरंत, परयंत (कुमा, कप्प; वाली वनस्पति-विशेष (पाचा २, १,८
(दे ६ ५६)।
औप) । कवकृ. पुजंत, पुज्जमाण, पूरिजंत, सूत्र ४७) । पूरंत, पूरमाण (उप पृ १५४: सुपा ६८;
पूरेत देखो पूर = पूरय ।। पूइज्जत देखो पूअ = पूजय ।।
उप १३६ टीः भवि; गा ११६; से ११, पूरोट्टी स्त्री [दे] प्रवकर, कतवार, कूड़ा पूइम वि [पूज्य] पूजा योग्य, सम्माननीयः
६३, ६, ६७) । संकृ पूरित्ता (भग), पूरि 'जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो' (अप), (पिंग)। हेकृ. पूरिइत्तए (पि ५७८)। पल पुन [पूल] पूला, घास की अँटिया (उप (दसचू १, ४) कृ. पूरिअव्य (से ११, ४४)।
३२० टी कुप्र २१५) पइय वि [पृजित] अचित, सेवित (ौपः
पूर पुं[पूर] १ जल-समूह, जल-प्रवाह, जल- पूर्व । देखो पूअल (कसः दे ६, ११७) उव)
धारा (कुमा)। २ खाद्य-विशेषः कप्पूरपुरसहिए पूवल निचू १)। पूइय वि [पूतिक] १ अपवित्र, अशुद्ध, दूषित
तंबोले' (सुर २, ६०)। ३ वि. पूरा, पूर्ण (पएह २, ५, उप पृ २१०) । २ दुर्गन्धी, 'पूराणि य से समं पणइमरणोरहेहिं अज्जेव
पूवलिआ ? देखो पूअलिया (बृह १; निचू दुष्ट गन्धवाला (णाया १, ८ तंदु ४१)। सत्त राईदियाई, भविस्सइ य सुए सामिणी
पूविगा । १६) ३ पूति नामक भिक्षा-दोष से युक्त (पिंड विजासिद्धी' (स ३६३)
पूस अक [ पुष् ] पुष्ट होना । पूसइ (हे ४, २६८)। पूइय देखो पोइय = (दे); 'बलो गनो पूइयापूरइत्तअ (शौ) वि [पूरयित पूर्ण करनेवाला
२३६ प्राकृ६८) (मा ४३)।
पूस देखो पुस्स = पूष्य (णाया १, हे १, वणं (सुख २, २६; उप) पूएअव्व देखो पूअ = पूजय ।।
४३) 'गिरि पु[गिरि] एक जैन मुनि पूरतिया स्त्री [पूरयन्तिका] राजा को एक
(कप्प) फली स्त्री [°फली] वल्ली-विशेष पूंडरिअ न दे कार्य काम, काज, प्रयोजन परिषत् -परिवार (राज)
(पएण १) + °माण, माणग पुं [°माण, पूरग वि [पूरक] पूत्ति करनेवाला (कप्प;
'मानव मागध, मङ्गल-पाठक; -वद्धमाणपूग पु[पूग] १ समूह, संघात (मोह २८)। प्रौपः रयण ७७)।
पूसमाणघंटियगणेहि' (कप्प; प्रौप), माणग २ देखो पूअपूग (स ७०० ७१)। पूरण न [पूरण] शूर्प, सूप, सिरकी का बना
पुं[मानक] ज्योतिर्देवता-विशेष, ग्रहाधिपगी स्त्री पिगी] सुपारी का पेड़ । “फल न एक पात्र जिससे अन्न पछोरा जाता है (दे ६, gायक देव-विशेष (ठा २, ३) माणय [फल] सुपारी, कसैली (रयरण ५५) ५६)
देखो 'माण (ौप) • °मित्त ' [मित्र पूज देखो पूअ = पूजय । कर्म. पूज्जए (उब)। पूरण न [पूरण] १ पूर्ति, 'समरसापूरणं'
१ स्वनाम-प्रसिद्ध जैन मुनि-त्रय-१ धृतवकृ. जयंत (विसे २८८८) । कृ. पूज्ज,
(सिरि ८६८)। २ पालन (प्राचू ५) । ३३ पुष्यमित्र, २ वस्त्रपुष्यमित्र, ३ दुर्बलिकापूज (पउम ११, ६५; सुपा १८०; सुर १, पुं. यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुष्यमित्र, जो आयं रक्षितसूरि के शिष्य थे १७ उवर १९६; उव; उप ५६८)
पत्र (अंत ३)। ४ एक गृह-पति का नाम (विसे २५१०; २२८६)। २ एक राजा पूजग देखो पृअय (पंचा ४, ४४)
(उवा) । ५ वि. पूर्ति करनेवाला (राज) (विचार ४६३) मित्तिय न ["मित्रीय] पूजण देखो पूअण (पंचा ६, ३८) पूरमाण देखो पूर=पूरय ।
. एक जैन मुनि-कुल (कप्प)।
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