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पोग्गलि-पोत्थार
पाइअसहमहण्णवो ५, ३, ८), 'पोग्गलाई' (सुज्ज 5 पंच ३, पोट्टलिय वि [दे] पोटली उठानेवाला, | पोत देखो पोअ = पोत (प्रौपः बृह १; णाया ४६) । २ न. मांस (पव २६८, हे १, गठरी-वाहक (निचू १६) ११६)। स्थिआय पं [स्तिकाय] पोट्रलिया [दे देखो पोलिगा (उप पू | पोतणया देखो पोअणा (उप पू ४१२) । पुद्गल-स्कन्ध, पुद्गल-राशि (गग; ठा ५, । ३८७ सुर १२, ११; सुख २, १७) पोत पौन] पुत्र का पुन, पोटा (दे २, ३) 4 °परट्ट, परियट्ट पं [परिवर्त] १ पोट्टि स्त्री [दे] उदर-पेशी (मृच्छ २००) ७२; श्रा १४) समस्त पुद्गल-द्रव्यों के साथ एक-एक परमाणु पोट्टिल पुपोट्टिल] १ भारतवर्ष का भावी | पोत्त न [पोत्र] प्रवहण, नौका: वेलाउलम्मि का संयोग-वियोग । २ समय का उत्कृष्टतम नववाँ तीर्थंकर--जिन-देव (सम १५३)। प्रोयारियाणि सव्वाणि तेण पोत्ताणि' (उप परिमारण-विशेष, अनन्त कालचक्र-परिमित २ भारतवर्ष के चौथे भावी जिन-देव का | ५६७ टी) समय (कम्म ५, ८६, भग १२, ४, ठा ३,
पवंभवीय नाम (सम १५४) । ३ भगवान | पोत्त न पोत१ वस्त्र, कपड़ा (श्रा महावीर का व्युरफम से छठवें भव का नाम
पोना १२, मोष १६८ कापूस ३३२)। पोग्गलि वि [पुद्गलिन] पुद्गलवाला, पुद्गल- (सम १०५)। ४ एक जैन मुनि, जिसने २ धोती, कटी-वस्त्र (गच्छ ३, १८ कसा
युक्त (भग ८, १०-पत्र ४२३)। भगवान महावीर के समय में तीर्थकर-नाम- वव ८४ श्रावक ६३ टी; महा)। ३ वनपोग्गलिय वि [पौद्गलिक]पुद्गल-मय, पुटूल- कर्म बंधा था (ठा)। ५ एक जैन मुनि खएड (पिंड ३०८) संबन्धी, पुद्गल का (पिंडभा ३२४)। (पउम २०, २१)। ६ देव-विशेष (णाया १,
पोत्तय पुं [दे] फोता, वृषण, अण्डकोश पोच्च वि[दे] सुकुमार, कोमल: गुजराती में १४)। ७ देखो पोट्ठिल (राज)।
(दे ६, ६२)। पोट्टिला स्त्री [पोट्टिला] व्यक्ति-वाचक नाम,
पोत्तिअ न [पौतिक वस्त्र, सूती कपड़ा (ठा 'पोचु (दे ६,६०) पोच्चड वि [दे] १ असार, निस्सार (णाया १, एक स्त्री का नाम (णाया १, १४)।
५, ३-पत्र ३३८; कस २, २६ टि)। ३-पत्र १४)। २ प्रतिनिबिड (पएह १, पोट्टिस [पोट्टिस एक कवि का नाम | पोत्तिअ वि [पोतिक] १ वस्न-धारी। २ १-पत्र १४) । ३ मलिन (निच ११) (कप्प)
पुं. वानप्रस्थों का एक भेद (प्रौप) ।। पोच्छल प्रक [प्रोत् + शल्] उछलना,
पोट्रवई स्त्री [प्रौष्टपदी] १ भाद्रपद मास की पोत्तिआ स्त्री पौत्रिका पुत्र की लड़की ऊँचा जाना । वकृ. पोच्छलंत (सुर १३, । पूणिमा। २ भादों की अमावस्या (सुज्ज
(रंभा)।
पोत्तिआ स्त्री [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की पोटिल पु [पुष्टिल] भगवान महावीर के पोच्छाहण न [प्रोत्साहन] उत्तेजन (वेणी
एक जाति (उत्त ३६, १४७)। पास दीक्षा लेकर अनुत्तर-विमान में उत्पन्न
पोत्तिआत्री [पोतिका, पोती] १ धोती, पोच्छाहिअ वि [प्रोत्साहित] विशेष उत्सा- .
एक जैन मुनि (अनु) ।
पोती पहनने का वस्त्र, साड़ी (विसे पोडइल न [दे] तृण-विशेष (पएण १हित किया हुआ, उत्तेजित (सुर १३, २६)
२६०१)। २ छोटा वस्त्र, वन-खण्ड; 'चउपत्र ३३)। पोट्ट [पुत्र लड़का, 'एक्केण चारभड- |
फालयाए पोत्तीए मुहं बंधेत्ता (णाया १, पोढ वि प्रौढ] १ समर्थ (पान) । २ निपुण, पोट्टेण' (वव १, टी)
१-पत्र ५३, पिंडभा ६), 'मुहपोत्तियाए' चतुर । २ प्रगल्भ । ४ प्रवृद्ध, यौवन के बाद
(विपा १,१) पोट्ट न [दे] पेट, उदर, मराठी में 'पोट' (दे
की अवस्थावाला (उप पृ८६; सुपा २२४ ६,६०; रणाया १,१-पत्र ६१ मोघभा रंभा; नाट-मालती १३६)। "वाय पु
पोत्ती स्त्री [दे] काच, शीशा (दे ६,६०) ७६; गा ८३, १७१, २८५; स ११६॥ । [वाद] प्रतिज्ञा-पूर्वक प्रत्याख्यान (गा
पोत्तल्लया देखो पोत्तिआ (गाया १, १८७३८ उवा: सुख २, १५; सुपा ५४३; । ५२२)
पत्र २३५) । प्राकृ ३७; पव १३५, जं २) साल पुं | पोढा स्त्री प्रौढा] १ तीस से पचपन वर्ष तक | पोत्थ पुन [पुस्त, क] १ वस्त्र, कपड़ा [शाल] एक परिव्राजक का नाम (विसे | की स्त्री (कुप्र १८५)। २ नायिका का एक पोत्थग (णाया १, १३-पत्र १७९)। २२४५२, ५५), सारणी स्त्री [°सारणी] | भेद, शृङ्गार रस में काम-कला आदि अच्छी | पोत्थय)३ देखो पुत्थ; 'पोत्थकम्मजक्खा विव प्रतीसार रोग (प्राव ४)। तरह जाननेवाली (प्राकृ १०)
निचिट्ठा' (वसुः श्रा १२; सुपा २८६; विसे पोट्रन[दे] पोटला, गट्ठर, गठरी - पोढिम पुंस्त्री [प्रौढमन्] प्रौढता, प्रौढपन १४२५, बृह ३; प्रापः प्रौप)। पोटलकामिणिनियंबबिंब कंदप्पविलासराय- (मोह २)
| पोत्था स्त्री [प्रोत्था] प्रोत्यान, मूलोत्पत्ति हाणित्ति। न मुणइ अमेझपोट्ट' (सुपा पोदीनी प्रौढी] ऊपर देखो (कुप्र ४०७)M (उत्त २०, १६) ३५५; दे २, २४ स १००)।
पोणिअ वि [दे] पूर्ण (दे ६, २८)- पोत्थार पुं [पुस्तककार] पोथी लिखनेवाला, पोट्टलिगा स्त्री [दें] पोटली, गठरी (सुख पोणिआ स्त्री [दे] सूते से भरा हुआ तकुवा | पोथी बनाने का काम करनेवाला शिल्पी, २, १७)।
दफ्तरी, जिल्दसाज (जीव ३)।७८
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