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बज्भंत
देखो बन्ध बन्ध् ।
बंभद्दीविग-बब्भागम
पाइअसहमहण्णवो धर्म; 'बंभएणकज्जेसु सज्जो' (सम्मत्त १४० बज्झ वि [बद्ध] १ बन्धनाकार व्यवस्थित, फल-युक्त, फल-संपन्न (णाया १, ७-पत्र कप्प; औप; पि २५०)
'मह तं पवेज्ज बज्झ' (सूम १, १, २, ८)। ११६)। बंभद्दीविग वि [ब्रह्मदीपिक] ब्रह्मदीपिका- २ बँधा हुआ (प्रति १५) ।।
बद्धग पुं[बद्धक] तूण-वाद्य विशेष (राय शाखा में उत्पन्न (णंदि ५१). बंभद्दीविगा स्त्री [ब्रह्मदीपिका] एक जैनबज्भमाण
बद्धय बठर पु [बठर] मूर्ख छात्र (कुप्र १९)
[दे] कान का एक आभूषण मुनि-शाखा (णंदि ५१)। बंभलिज न [ब्रह्मलीय] एक जैन मुनि-कुल बड (अप) वि [दे] बड़ा, महान् (पिंग)।
देखो वड्ड ।।
बरेल्लग देखो बद्ध (अणु; महा) ।
बद्धेलय बंभहर न [दे] कमल, पम (दे ६, ६१)। बडबड अक [वि+ लप्] विलाप करना, बंभाण देखो बंभ (पउम ५, १२२)। "गच्छ । बड़बड़ाना । बडबडइ (षड् )
बप्प [दे] १ सुभट, योद्धा (दे ६,८८)।
। २ बाप, पिता (दे ६, ८८ दस ७, १८७ पुं[गच्छ] एक जैन-मुनि गच्छ (ती २८)। बडहिला स्त्री [द] धुरा के मूल में दी जाती
स ५८१, उप ३२० टी; सुर १, २२१, कुप्र बंभित्रो
___ कील, कीलक-विशेष (सट्ठि ११६) । [ब्राह्मी] १ भगवान् ऋषभदेव बंभी की एक पुत्री (कप्पा पउम ५, १२० बडिस देखो बलिस (हे १, २०२)।
४३; जया भवि; पिंग) । ठा ५, २; सम ६०) । २ लिपि-विशेष (सम
बड़ । पुं[बटु, क] लड़का, छोकड़ा (उप | बप्पहट्टि पुं[बप्पभट्टि] एक सुविख्यात जैन ३५; भग)। ३ कल्प-विशेष (सुपा ३२४) । बडुअ) ७१३; सुपा २००)।
प्राचार्य (विचार ५३३; ती ७) ४ सरस्वती देवी (सिरि ७६४)। बंभुत्तर पुं [ब्रह्मोत्तर] एक विमानावास, बड्डवास [दे] देखो वड्डवास (दे ७, ४७)बप्पीह पुं[दे] पपीहा, चातक पक्षी (दे
६, ६० स ६८६ पाय; हे ४, ३८३)। देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३४) । वडिंसक
बतीस ? (अप) देखो बत्तीस (पिंग)। बत्तिस (
बप्पड विदे] बेचारा, दीन, अनुकम्पनीय न[वतंसक] एक देव-विमान (सम १९)
बत्तीस स्त्रीन [द्वात्रिंशत् ] १ संख्या-विशेष, गुजराती में 'बापट्ट" (हे ४, ३८७ पिंग)। बंहि पुं [बहिन] मयूर, मोर (उत्तर २६)
बत्तीस, ३२। २ जिनकी संख्या बत्तीस हों के बक पुंन [बाष्प] १ भाफ, अष्माः 'बष्फो' बहिण (अप) ऊपर देखो (पि ४०६)।।
'बत्तीस जोगसंगहा पन्नत्ता' (सम ५७ औप; (हे २, ७० षड् ), 'ब' (प्राकृ २३; विसे बक देखो बय (पराह १,१-पत्र ८)। उवः पिंग) । स्त्री: °सा (सम ५७) । १५३५)। २ नेत्र-जल, अश्रुः ‘बर्फ बाहो बकर न [दे. बकर] परिहास (दे ६, ८६ बत्तीसई स्त्री. ऊपर देखो (सम ५७)। बद्धय
य नयराजलं' (पाप), 'बष्फपज्जाउललोप्रणाहि कुप्र १६७ कप्पू)। न [बद्धक] १ बत्तीस प्रकार रचनात्रों से
(स ५६१ स्वप्न ८५) । बक्कस न [दे] अन्न-विशेष, 'बक्कसं' मुद्गमाषा- युक्त । २ बत्तीस पात्रों से निबद्ध (नाटक); बाप्फाउल वि [द. बाष्पाकुल अतिशय दिनषिकानिष्पन्नमन्न' (सुख ८, १२, उत्त ८, 'बत्तीसइबद्धएहि नाडएहि' (णाया १,१- उष्ण (दे६, ६२) १२)।
पत्र ३६; विपा २, १ टी-पत्र १०४)। बब्बर पुं[बर्बर १ अनार्य देश-विशेष (पउम बग देखो बय (दे २, ६ कुप्र ६६) 'विह वि ["विध] बत्तीस प्रकार का (सम |९८,६५)। २ वि. बर्बर देश का निवासी
(पएह १, १; पउमः ६६, ५५)+ कूल न बगदादि पुं[बगदादि] देश-विशेष, बगदाद > देशः 'बगदादिविसयवसुहाहिवस्स खलीपना
बत्तीसइम वि [द्वात्रिंशत्तम] १ बत्तीसवाँ, [कूल] बर्बर देश का किनारा (सिरि मधेयस्स' (हम्मीर ३४)।
३२ वाँ (पउम ३२, ६७; पएण ३२)।२ ४३०)
न. पनरह दिनों का लगातार उपवास (णाया बब्बरी स्त्री [दे] केश-रचना (दे ६, ६०)। बगी स्त्री [बकी] बगुली, बगुले की मादा (विपा १, ३, मोह ३७)।
बब्बरी स्त्री [बबैरी] बर्बर देश की स्त्री (णाया बत्तीसा देखो बत्तीस ।। बग्गड पुं[दे] देश-विशेष (ती १५)।
१, १० औफ इक) बत्तीसिया स्त्री [द्वात्रिंशिका] १ बत्तीस
बब्बूल [बबूल] वृक्ष-विशेष, बबूल का बज्झ वि [बाह्य] बाहर का, बहिरङ्ग (परह | पद्यों का निबन्ध-ग्रन्थ (सम्मत्त १४४)।
पेड़ (उप ८३३ टी; महा) - १, ३, प्रासू १७२) ओ अ ["तस्] २ एक प्रकार का नाप (अणु) । बाह्य से बहिरंग से; किं ते जुज्झेण बज्झयो | बद्ध वि [बद्ध] १ बँधा हुआ, नियन्त्रित;
बब्भ पुं[दे] वज्र', चर्म, चमड़े की रज्जु; (प्राचा) 'बद्धं संदारिणनं निअलिग्रं च (पात्र)। २
'बब्भो बढे (दे ६, ८८); 'वजो बद्धो= बज्झ न [बन्ध] बन्धन, बाँधने का वागुरा संश्लिष्ट, संयुक्त (भग; पान)। ३ निबद्ध,
(? बब्भो वद्धो)' (पान) - प्रादि साधन, 'अह तं पवेज बज्झं, अहे रचित (प्रावम)। °Cफल, °फल पुं [°फल] बब्भागम वि [बह्वागम] बहु-श्रुत, शास्त्रों बज्भस्स वा वए' (सूम १, १, २,८) १ करज का पेड़ (हे २, ६७)। २ वि. का अच्छा जानकार (कस)
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