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ब-बंधण
पाइअसहमहण्णवो
६२७
ब [ब] ओष्ठ-स्थानीय व्यन्जन वर्ण-विशेष बउहारी स्त्री [दे] बुहारी, संमार्जनी, झाड़ | बंध सक [बन्ध ] १ बाँधना, नियन्त्रण (प्राप)।
करना। २ कर्मों का जीव-प्रदेशों के साथ बअर (शौ) न [बदर] १ फल-विशेष, बेर । बंग पं[बङ्गा १ भगवान आदिनाथ के एक संयोग करना । बंधइ (भग; महा: उवः हे २ कपास का बीज (प्राकृ ८३) । पुत्र का नाम (ती १४)। २ देश-विशेष,
१, १८७)। भूका. बंधिसु (पि ५१६)। बइट्ट (अप) वि [उपविष्ट] बैठा हुआ (हे ४, . बंगाल देश (उप ७६५; ती १४)। ३ बंग
कर्म, बंधिज्झइ, बज्झइ (हे ४, २४७), ४४४भवि)। देश का राजा (पिंग)
भवि. बंधिहिइ, बज्झिाहइ (ह ४, २४७)। बइल पु ल , बरष, वृषभ (६ ६, ६० बंगल (अप) पुं[बङ्ग] बंग देश का राजा
वकृ. बंधंत बंधमाण (कम्म २,८; परण गा २३८, प्राकृ ३८ हे २, १७४ धर्मविर । (पिंग)।
२२) । संकृ. बंधइत्ता, बांधउं, बांधऊण, ३ श्रावक २५८ टी; श्र १५३, प्रासू ५५; बंगाल बिनाला बंग ल देश. 'बंगालदेस
बंधिऊणं, बंधित्ता. बंधित्तु (भगः पि कुप्र २७६; ती १५; वै ६; कप्पू)। वइणो तेणं तुह ससुरयस्स दिन्ना है' (सुपा
५१३, ५८५; ५८२)। हकृ. बंधेउ (ह १, बइस (अप) अक [उप + विश ] बैठनाः । ३७७)।
१८१)। कृ. बंधियव्व (पंच १, ३)। गुजराती में 'बेसवु' । बइसइ (भवि)
कवकृ. बज्भंत, बज्झमाण (सुपा १९८ | बंझ देखो चंझ (पि २६६)।बइसणय (अप) न [उपवेशनक] प्रासन |
कम्म १, ३५; औप) बंडि पुं[दे] देखो बंदि = बन्दिन (षड्) (ती ७)
बंध पुं[दे] भृत्य, नौकर (दै ६, ८८)। बइसार (अप) सक [उप + वेशय ] बंद न [दे ] कैदी, कारा-बद्ध मनुष्य, 'बंदंपि
बंध पुं [बन्ध] १ कर्म-पुद्गलों का जीवबैठाना । बइसारइ (भवि)। किपि' (स ४२१), 'बंदाई गिन्हइ कयावि',
प्रदेशों के साथ दूध-पानी की तरह मिलना, बइस्स देखो वइस्स (पि ३००)। छलेण गिन्हति बंदाई', 'बंदाणं मोयावणकए'
जीव-कर्म-संयोग (माचा; कम्म १, १५, बईस (अप) देखो बइस । बईसइ (भवि)। (धर्मवि ३२); “एगत्थबंदपग्गहियपहियकीरंत- ३२) । २ बन्धन, नियन्त्रण, संयमन (श्रा बईस (अप) न [उपवेश] बैठ, बैठन, बैठनाः करुणरुन्नसरा' (धर्मवि ५२)। ग्गह पुं १० प्रासू १५३) । ३ छन्द-विशेष (पिंग)। 'तोवि गोट्टडा कराविमा मुद्धए उट्ठ-बईस' [ग्रह] कैदी रूप से पकड़नाः 'परदोहघट्ट- सामि वि ["स्वामिन् ] कर्म-बन्ध करने(हे ४, ४२३)।
वाडणबंदग्गहखत्तखणणपमुहाई' (कुप्र११३)। वाला (कम्म ३, १, २४)। बउणी स्त्री [दे] कासी, कर्पास-वल्ली | बंदण न [दे] कैदी (नंदीटिप्प० वैनयि की बंधई स्त्री [बन्धकी] पुंश्चली, प्रसती स्त्री (दे ३, ५७) बुद्धि में १३ वाँ कथानक)
(नाट-मालती १०६) । बउल पुं[बकुल] १ वृक्ष-विशेष, मौलसरी
| बंदि नो [बन्दि] देखो बंदी (हे १, १४२ बंधग वि [बन्धक] १ बाँधनेवाला। २ का पेड़ (सम १५२, पान वाया १, ६)। | २,१७६)।
कर्म-बन्ध करनेवाला, प्रात्म-प्रदेश के साथ २ बकुल का पुष्प (से १,५६). "सिरी | बंदि [बन्दिन् ] स्तुति-पाठक, मंगल- कर्म-पुद्गलों का संयोग करनेवाला (पंच ५, स्त्री ["श्री] १ बकुल का पेड़ । २ बकुल का | बंदिण पाठक, मागधः ‘मंगलपाढयमागह- | ८४ श्रावक ३०६; ३०७, पंचा १६, ४०, पुष्प (श्रा १२)। चारणवालिया बंदी (पान उप ७२८ टी;
कम्म ६, ६) बउस ' [बकुश] १ अनार्य देश-विशेष । धर्मवि ३०), 'उद्दामसद्दबंदिणवंद्रसमुग्घुट
बंधण न [बन्धन] १ बाँधने का-संश्लेष , २ पुंस्त्री. उस देश का निवासी (पएह १, नामाई' (स ५७६)।
का साधन, जिससे बाँधा जाय वह स्निग्ध१-पत्र १४) । स्त्री. सी (गाया १,१बंदिर न [दे] समुद्र-वाणिज्य प्रधान नगर,
तादि गुण (भग ८, ६-पत्र ३६४)। २ पत्र ३७)। ३ वि. शबल, चितकबरा। ४ बंदर (सिरि ४३३)।
जो बाँधा जाय वह । ३ कर्म, कर्म-पुद्गल । मलिन चरित्रवाला, शरीर के उपकरण और | बदा नाबन्दा १ हन्त बा. बादा (द ४ कर्म-बन्ध का कारण (सून १,१, १, विभूषा आदि से संयम को मलिन करनेवाला २,८४ गउड १०५; ८४३)। २ कैद
१)। ५ संयमन, नियन्त्रण (प्रासू ३)। ६ (ठा ३, २, ५, ३, सुख ६, १), स्त्री. 'तए
किया हुमा मनुष्य (गउड ४२६; गा ११०)M नियन्त्रण का साधन, रज्जु आदि (उब)। णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबउसा जाया बंदीकय वि [बन्दीकृत] कैद किया हुआ, ७ कर्म-विशेष, जिस कर्म के उदय से पूर्वयावि होत्या' (णाया १, १६)। ४ पॅन. बाँध कर आनीत (गउड)।
गृहीत कर्म-पुद्गलों के साथ गृह्यमारण कममलिन संयम, शिथिल चारित्र-विशेष (सुख बंदुरा स्त्री [बन्दुरा] प्रश्व-शाला, 'गच्छ । पुदलों का आपस में सम्बन्ध हो वह कर्म
निस्वेहि बंदुरामो, भूसेहि तुरए' (स ७२५) M (कम्म १, २४ ३१, ३५, ३६, ३७) । ...
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