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पाइअसहमहण्णवो
पोअ-पोग्गल पोअ [दे] १ धव वृक्ष, वाय, धौं का पेड़। पोउआ स्त्री [दे] करीष-सूखा गोबर (गोइँठा) पोक्कण न [व्याहरण, पूत्करण] १ पुकार, २ छोटा साँप (दे ६, ८१)। का अग्नि (द ६, ६१)
आह्वान । २ वि. पुकारनेवाला (कुमा)। पोअइआबी [दे] निद्राकारी लता, लता- पोंग पु[दे] पाक, पकना (स १८०)। पोकर देखो पुक्कर । पोक्करति (महा)। वकृ. विशेष (द ६, ६३, पात्र)
पोंगिल्ल विदे] पका हुआ, परिपक्व, परि- पोकरंत (सुपा ३८०)। पोअंड वि [दे] १ भय-रहित, निडर । २ पाक-युक्तः कच्छी भाषा में 'पोंगेल';
पोकरिय वि [पूत्कृत] १ पुकारा हुआ (सुर षएड, नाम (२६, ६१)। 'भन्नेवि सईमहियलनिसीय
६, १६४) । २ न. पुकार (दंस ३) । पोअंत ' [वे] शपथ, सौगन (दे ६, ६२)।
गप्पन्नकिरिणयपोंगिल्ला।
पोक्कार देखो पुक्कार = पूरकार (उप पृ१८५) पोअण न [प्रवयन, प्रोतन] पिरोना, गुम्फन,
मलिगजरकप्पडोच्छइय
विगहा कहवि हिंडंति ॥' पोक्किअ देखो पोक्करिय (उप १०३१ टी)। गूंथना (भावम)। पोअणपुर न [पोतनपुर] नगर-विशेष (सुपा
(स १८०)। पोक्खर न [पुष्कर] १ जल, पानी । २
पोंड न [दे] फूल, पुष्प; 'एग सालियपोंडं ५०६; भवि)।
पद्म, कमल । ३ पद्म-कोष। ४ एक तीर्थ, बद्धो आमेलगो होई' (उत्तनि ३) पोअणा स्रो प्रवयना, प्रोतना] पिरोना
अजमेर-नगर के पास का एक जलाशयपोंड देखो पुंड । वद्धण न [°वर्धन] नगर(उप ३५६)
तीर्थ । ५ हाथी की ढूँढ़ का अग्र भाग। ६ पोअय वि [पोतज पोत से उत्पन्न होनेवाला विशेष (महा) वद्धणिया स्त्री [°वर्धनिका]
वाद्य-भाएड । ७ प्रापण, दूकान । ८ असिजैन मुनि-गण की एक शाखा (कप्प)। प्राणी-हस्ती आदि (ठा ३, १)।
कोष, तलवार की म्यान । ६ मुख, मुँह । पोंड । पुं[दे] यूथ का अधिपति (दे ६, पोअय पु[पोतक] देंखो पोअ = पोत (उवाः
१० कुष्ठ रोग की ओषधि । ११ द्वीप-विशेष । पोंडय ६०)। २ फल (पएह १,४-पत्र औप)
१२ युद्ध, लड़ाई। १३ शर, बाण । १४ ७८) । ३ अविकसित अवस्थावाला कमल पोअलय पुदे] १ आश्विन मास का एक
आकाश; 'पोक्खरं' (हे १, ११६; २, ४ (विसे १४२५)। ४ कपास का सूताः 'दव्वं उत्सवः जिसमें पत्नी के हाथ से लेकर पति
संक्षि ४)। १५ पं. नाग-विशेष। १६ रोगतु पोंडयादी भावे सुत्तमिह सूयगं नाणं' अपूप को खाता है। २ एक प्रकार का
विशेष । १७ सारस पक्षी। १८ एक राजा (सूअनि ३)
का नाम । १६ पर्वत विशेष । २० वरुणअपूप-खाद्य-विशेष, पूमा। ३ बाल वसन्त पोंडरिगिणी देखो पुंडरिगिणी (ठा २, ३)
पुत्र पोक्खरों (प्राप्र)। देखो पुक्खर ।। (द ६, ८१)।
पोंडरिय देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक (स पोआई स्त्री [पोताकी] १ शकुनि को उत्पन्न
पोक्खर वि [पौष्कर] १ पुष्कर-सम्बन्धी। करनेवाली विद्या-विशेष २ शकुनिका, पक्षि- | पोंडरी स्त्री [पौण्ड्री, पुण्डरीका] जम्बूद्वीप के
३ पद्माकार रचनावाला; 'पोक्खरं पवहरणं' विशेष (विसे २४५३) मेरु के उत्तर रुचक पर रहनेवाली एक
(चारु ७०) पोआउय वि [पोतायुज, पोतज] देखो | दिक्कुमारी देवी (ठा )।
| पोक्खरिणी स्त्री [पुष्करिणी] १ जलाशयपोअय (पउम १०२, ६७)। पोंडरीअ देखो पुंडरीअ= पुण्डरीक (प्रोप,
विशेष, वर्तुल वापी (गाया १, १-पत्र पोआय पुं[दे] ग्राम-प्रधान, गाँव का मुखिया | पाया १, ५; १६; सम ३३; देवेन्द्र ३१८;
६३)। २ पद्मिनी, कमलिनी, पद्म-लता; सूअनि १४६)।
'जलेण वा पोक्खरिणीपलास' (उत्त ३२, पोआल दे] वृषभ, बलीवदं (दे ६, ६२) पोंडरीअ) नपौण्डरीका १ गणित
६०)। ३ वापी (कुमा)। ४ पद्म-समूह । ५ पोआल [दे. पोतक] बच्चा; शिशु, बालक पोंडरीग , विशेष, रज्जु-गणित (सूअनि | पुष्कर-मूल (हे २, ४)। ६ चौकोना जला(प्रोघ ४४७)। १५४)। २ देखो पुंडरीअ पौण्डरीक (सूत्र
शय, पोखरी, वापी (पएह १, १, हे २,४) पोइय पुं[दे] १ हलवाई, मिठाई बेचनेवाला। २, १, १, सूअनि १४६; १५१)। पोक्खल देखो पुक्खल (परण १-पत्र ३५; २ खद्योत (दे ६, ६३)। ३ निमग्न, डूबा पोक सक [व्या + हृ, पत् + कृ] पुका- प्राचा २, १, ८, ११)।हुमा (प्रोघ १३६) । ४ स्पन्दित (बृह १)। | रना, आह्वान करना । पोक्कइ (हे ४, पोक्खलच्छिलय , देखो पुक्खलच्छिपोइअ वि [प्रोत] पिरोया हुआ (दे ७, ४४ ७६) ।
पोक्खलच्छिल्लय , भय (पएण १-पत्र उप पृ १०६ पान)
| पोक वि[दे] पागे स्थूल और उन्नत तथा ३५; राज) । पोइअल्लय देखो पोइअ =प्रोत (मोघ ५३६ बीच में निम्न (नासिका); 'पोक्कनासे' (उत्त पोक्खलि पुन [पुष्कलिन्] एक जैन उपाटी)
सक, जिसका दूसरा नाम शतक था (राज)। पोडआ) स्त्रीपदी निद्राकारी लता, वल्ली- | पोकण ([पोक्कण १ अनार्य देश-विशेष। | पोग्गर न पिगल] १ रूपादि-विशिष्ट पोई विशेष (दे ६, ६३पण्ण १- २ उस देश में बसनेवाली म्लेच्छ जाति (पएह पोग्गल ) द्रव्य, मूतं द्रव्य, रूपवाला पदार्थ पत्र ३४)
___ 'पोग्गला' (भग ८, १, ठा २, ४४,४
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