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६१० पाइअसद्दमहण्णवो
पुलासिअ-पुस पुलासिअ [दे] अग्नि-करण (दे ६, ५५.) । लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो उतने १२१) गणुपुब्बी स्त्री [नुपूर्वी ] क्रम, पुलिंद पुं [पुलिन्द] १ अनायं देश-विशेष वर्ष (ठा २, ४ सम ७४; जी ३७; इक)। । परिपाटी (भग; विपा १, १; प्रौपः महा)। (इक)। २ पुंस्त्री. उस देश मे रहनेवाला मनुष्य ५ जैन ग्रन्थांश-विशेष, बारहवें अंग-ग्रन्थ का °णह देखो ह (हे १, ६७ षड्)।(पण्ह १, १ अ . व उव)। स्त्री. दी एक विशाल विभाग, अध्ययन, परिच्छेदः फिग्गुणी देखो फग्गुणी (सम ७ इक)।(गाया १, १; नौ.
'चोद्दसपुवी' (विपा १, १)। ६ द्वन्द्व, भिवया देखो भदवया (सम ७)।पुलिग न [पुलिन] तट, किनाराः 'पोइरागो वधू-वर आदि युग्मः 'पुवट्ठाणाणि' (प्राचा साढा स्त्री [षाढा] नक्षत्र-विशेष (सम नइपुलिणायो' (पउम १०,५४)। २ लगातार २, ११, १३)। ७ पूर्व-ग्रन्थ का ज्ञान (कम्म बाईस दिनों का उपवास संबोध ५८) । १, ७) । ८ कारण, हेतु (रणं दि)। कालिय पुव्वंग पुन [पूर्वाङ्ग] १ समय-परिमाणपुलिय न [पुलिस] गति-विशेष (प्रोप)।
वि [कालिक] पूर्व काल का, पूर्व काल से विशेष, चौरासी लाख वर्ष (ठा २, ४, इक)। पुलुट्ठ वि [प्तुष्ट] दग्ध (पास)।
संबन्ध रखनेवाला (पएह १, २-पत्र २ ।। । २ पक्ष के पहले दिन का नाम, प्रतिपत् (सुज पुलोअ सक [दृश , प्र+ लोक् ] देखना ।
गय न [गत] जैन शास्त्रांश-विशेष, बारहवें १०, १४)।
अंग का विभाग-विशेष (ठा १०-पत्र ४६१)। पुवंग वि[] मुण्डित (षड् )। पुलोए:, (हे ४, १८१; सुर १, ८६)। वकृ.
ह पुं[हण] २ दिन का पूर्व भाग, पुव्वा स्त्री [र्वा] पूर्व दिशा (कुमा)। पुलअंत, पुलोएंत (पि १०४: सुर ३, सुबह से दो पहर तक का समय (हे १,
पुव्वाड वि [दे] पीन, मांसल, पुट (दे ६, कुलोअण न [दर्शन, प्रलोकन] विलोकन (दे। ६७)। २ तप-विशेष, 'पुरिमढ' तप (संबोध
५२) । ५८) । तव पुंन [तपस्] वीतराग ६, ३०. गा ३२२)।
पुवामेव अ [पूर्वमेव पहले ही (कस) ।
अवस्था के पहले का-सराग अवस्था का पुलोइअ वि [दृष्ट, प्रलोकित] १ देखा हुआ तप (भग)। दारिअ वि [द्वारिक] पूर्व
पुवावईणय न [पूर्वावकीर्णक] नगर-विशेष (सुर ३, १६४)। २ न. अवलोकन (से ७,
दिशा में गमन करने में कल्याण-कारी (नक्षत्र) ५६) (सम १२) । द्ध पुन [] पहला प्राधा
पुब्धि वि [पूर्विन] पूर्व-शास्त्र का जानकार पुलोएंत देखो पुलोअ। (नाट)। धर वि [धर] पूर्व-ग्रन्थ का ज्ञान
(विपा १, १; राज)। पुलोम [पुलोमन् दैत्य-विशेष तणया
वाला (पएह २,१)। पय न पद पुधि क्रिवि [ पूर्वम् ] पहिले, पूर्व में बी [तनया] शची, इन्द्राणी (पास)। अस र पद पुवि (सण, उवाः सुर १, १६४, ४, पुलोमी स्त्री [पौलोमी] इन्द्राणी (प्राकृ १०; [प्रोष्टपदा] नक्षत्र-विशेष (सुज १०,५)। १११ प्रौप) संथव पुं [संस्तव पूर्व 'पुरिस पुं[पुरुष] पूर्वज, पुरखा (सुर २,
में की जाती श्लाघा, जैन मुनि को भिक्षा का पुलोव देखो पुलोअ। पुलोवेदि (शौ) (पि
१६४) पओग प्रयोग पहले की एक दोष, भिक्षा-प्राप्ति के पहले दायक की १०४)।
क्रिया, पूर्व काल का प्रयत्न (भग ८, )
- स्तुति करना (ठा ३, ४)। पुलोस पुं [प्लोष दाह, दहन (गउड)।
'फग्गुणी स्त्री [फाल्गुनी नक्षत्र-विशेष पुठियम पुंस्त्री [पूर्वत्व] पहिलापन, प्रथमता पुल्ल [दे] देखो पोल्ल (सुख ६, १)
(राज)। भद्दवया स्त्री [भाद्रपदा नक्षत्र- (षड् )।पुल्लि पुंस्त्री | दे] १ व्याव्र, शेर (दे ६, ७६;
विशेष (राज)। भव पुं [भव] गत जन्म, पुब्बिल्ल वि [पूर्व, पूर्वीय] पहले का, पूर्व पात्र)। २ सिंह, पञ्चानन, मृगेन्द्र (दे ६,
अतीत जन्म (गाया १, १)+ भविय वि का; 'पुब्बिल्लसमं करणं' (चेइय ८८९); ७६)। स्रो. 'को पियइ पयं च पुल्लीए' (सुपा
भविका पूर्वजन्म संबंधी (भवि) । य 'पुव्विल्लए किचिवि दुटुकम्मे' (निसा ४ सुपा ३१२)
[ज] पूर्व पुरुष, पुरखा (पुपा २३२)। ३४६; सण)। पुव । सक [प्लु] गति करना, चलना । रत्त पुं[ रात्र] रात्रि का पूर्व भाग (भग; पुवुत्त वि [पूर्वोक्त] पहले कहा हुआ, पूर्व पुव्व पुवंति (पि ४७३), पुवंति (भग महा) व न [वत् ] अनुमान प्रमाण में उक्त (सुर २, २४८)। १५-पत्र ६७०; टी-पत्र ६७३)। का एक भेद (अण)। "विदेह [विदेह]
पुव्वुत्तरा स्त्री [पूर्वोत्तरा] ईशान कोण पुव्व देखो पुण =पू। महाविदेह वर्ष का पूर्वीय हिस्सा (ठा २, ३;
(राज)। पव्व विपर्वा१दिशा, देश और काल की इक) समास पुन समास एक से पस सक [प्र+उछ, मृज1 साफ अपेक्षा से पहले का, पाद्य, प्रथम (ठा ४, ४; ज्यादा पूर्व-शास्त्रों का ज्ञान (कम्म १, ७)।
करना, शुद्ध करना, पोंछना। पुसइ (प्राकृ जी १; प्रासू १२२)। २ समस्त, सकल। सुय न [ श्रुत] पूर्व का ज्ञान (राज)।
६६ हे ४, १०५, गा ४३३)। कवकृ. ३ ज्येष्ठ भ्राता (हे २,१३५, षड्)। ४ पुंन. सूरि पुं[सूरि] पूर्वाचार्य, प्राचीन प्राचार्य पुसिज्जंत (गा २०६)। काल-मान-विशेष, चौरासी लाख को चौरासी (जीव १)। हर देखो धर (पउम ११८, पुस देखो पुस्स (प्राकृ २६ प्राप्र)।
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