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पस्स-पहा
पाइअसहमहण्णवो पस्स सक [दृश् ] देखना । पस्सइ (षड् पहणि स्त्री [दे] संमुखागत का निरोध, सामने पहल अक [घूर्ण घूमना, कांपना, डोलना. प्राकृ ७१)। वकृ. पस्समाण (पाचा प्रौप; पाए हुए का अटकाव (दे ६, ५)। हिलना । पहलइ (हे ४, ११७; षड्)। वसु; विपा १, १)। कृ. पस्स (ठा ४, ३)।
पहणिय देखो पहय = प्रहत (सुपा ४)। वकृ. पहल्लंत (सुर १, ६६)। पस्स (शौ) देखो पास = पावं (अभि १८६
पहत्थ पुं [प्रहस्त रावण का मामा (से पहल्लिर वि [प्रघूर्णित] घूमनेवाला, डोलता अवि २६; स्वप्न ३६)। १२, ५५)।
(कुमाः सुपा २०४)। पस्स देखो पस्स = दृश् । पहद वि [दे] सदा दृष्ट (दे ६, १०)।
पहव अक [प्र+भू] १ उत्पन्न होना । २ पस्सओहर वि [पश्यतोहर ] देखते हुए
समर्थ होना । पहवइ (पंचा १०,१० स ७०; पहम्म सक [प्र + हम्म् ] प्रकर्ष से गति चोरी करनेवाला, सुनार, उचकाः 'नणु एसो
संक्षि ३६)। भवि. पहविस्स (पि ५२१) । करना । पहम्मइ (हे ४, १६२) । पस्सोहरो तेणों' (उप ७२८ टी)।
वकृ. पहवंत (नाट-नाली । पहम्म न [दे] १ सुर-खात, देव-कुण्ड (दे पस्सि वि [दर्शिन] देखनेवाला (पएण ३०)।
६, ११)। २ खात-जल, कुण्ड । ३ विवर,
पहव पुं [प्रभव] उत्पत्ति-स्थान (अभि ४१) । पस्सेय देखो पसेअ (सुख २, ८)। छिद्र (से ६, ४३)।
पहव देखो पहाव - प्रभाव (स ६३७)। पह वि [प्रह] १ नम्र। २ विनीत। ३ पहम्मंत सोपा
पहव देखो पह = प्रह्व (विसे ३००८) । पहम्ममाण | देखो पहण-प्र+ हन् । पासक्त (प्राकृ २४)।
पहब पुं [प्रभव] एक जैन महर्षि (कुमा)। पह पुं[पथिन्] मार्ग, रास्ता (हे १, ८८ पहय वि [प्रहत] १ घृट, घिसा हुआ (से
पहविय वि [प्रभूत] जो समर्थ हुआ हो, पान; कुमा; श्रा २८ विसे १०५२; कप्प;
१, ५८, बृह १)। २ मार डाला गया, निहत (महा)।
। 'मणिकुंडलाणुभावा सत्थं नो पहवियं नरिंदस्स औप)। "देसय वि ["देशक मार्ग-दर्शक पहय वि [प्रहृत जिस पर प्रहार किया गया
(सुपा ६१५)। (पउम ६८, १७)। हो वह, 'पहया अहिमंतियजलेण' (महा)।
पहस अक [प्र + हस् ] १ हसना। २ पहएल्ल पुं [दे] अपूप, पूषा, खाद्य-विशेष (दे पहयर पुं[दे] निकर, समूह, यूथ (दे ६,
उपहास करना । पहसइ (भवि; सग)। वकृ. १५: जय १३ पात्र)।
पहसंत (सण)। पहंकर देखो पभंकर (उत्त २३; ७६; सुख पहर सक [प्र + ह] प्रहार करना। पहरइ
पहसण न [प्रहसन] १ उपहास, परिहास । २३, ७, इक)। (उव)। वकृ. पहरंत (महा)। संकृ. पहरिऊण
२ नाटक का एक भेद, हास्य-रस प्रधान पहंकरा देखो पभंकरा (इक)। (महा)। हेकृ. पहरिउ (महा)।
नाटक, रूपक-विशेष; 'पहसणप्पायं कामसत्थपहंजण प्रभअन] १ वायु, पवन (पान)। पहर पुं[प्रहार] १ मार, प्रहार (हे. १,६८%
वयणं' (स ७१३; १७७, हास्य ११६)। २ देव-जाति-विशेष, भवनपति देवों की एक षड्, प्राप्र संक्षि २)। २ जहाँ पर प्रहार
पहसिय वि [प्रहसित] १ जो हसने लगा अवान्तर जाति (सुपा ४०)। ३ एक राजा किया हो वह स्थान (से २, ४)।
हो (भग) । २ जिसका उपहास किया हो वह (भवि)। | पहर पुं[प्रहर तीन घंटे का समय (गा २८;
(भवि) । ३ न. हास्य (बृह १)। ४ पुं. पहकर दे] देखो पयर (णाया १,१: ३१, पाम)।
पवनब्जय का एक विद्याधर-मित्र (पउम कप्पः प्रौपः उप पृ ४७; विपा १, १; रायः | पहरण न [प्रहरण] १ अख, प्रायुध (माचा;
१५, ५६)। भग ६, ३३)।
पीप; विपा १, १ गउड)। २ प्रहार-क्रिया पहा सक [प्र+हा] १त्याग करना। २ अक. पहद वि [दे] १ दृप्त, उद्धत (दे ६, ६ (से ३, ३८)।
कम होना, क्षीण होनाः 'पहेज लोह (उत्त षड्) । २ अचिरतर दृष्ट, थोड़े ही समय के पहराइया देखो पहाराइया (पएण -पत्र ४, १२, पि ५६६) । वकृ. पहिज्जमाण, पूर्व देखा हुमा ( षड्)।
पहेजमाण (भगः राज)। संवृ. पहाय, पह? वि [प्रहृष्ट ] आनन्दित, हर्ष-प्राप्त पहराय पुं[प्रभराज] भरतक्षेत्र का छठवाँ पहिऊण (माचा १, ६, १, १ वद ३)। (प्रौप; भग)।
प्रतिवासुदेव (सम १५४)।
| पहा स्त्री [प्रथा] १ रीति, व्यवहार । २ पहण सक [प्र + हन] मार डालना। पहरिअ वि [प्रहृत] १ प्रहार करने के लिए ख्याति, प्रसिद्धि (षड्)। पहणइ, पहणे (महा: उत्त १८, ४६)। उद्यत (सुर ६, १२९)। २ जिस पर प्रहार पहा स्त्री [प्रभा] कान्ति, तेज, पालोक, दीप्ति कर्म, पहणिजइ (महा)। वकृ. पहणत किया गया हो वह (भवि)।
(प्रौप पानः सुर २, २३५; कुमा; चेइय (पउम १०५, ६५) । कवकृ. पहम्मत, पहरिस पुं[प्रहर्ष मानन्द, खुशीः 'प्रामोप्रो ५१४)। मंडल देखो भामंडल (पउम ३०, पहम्ममाण (पि ५४०सुर २, १४)। पहरिसो तोसो' (पानः सुर ३, ४०)। ३२) । यर पुं [कर] १ सूर्य, रवि । २ हेकृ. पहणिउं, पहणेउं (कुप्र २५; महा)। पहलादिद (यौ) वि[प्रह्लादित] मानन्दित रामचन्द्र के भाई भरत से साथ दीक्षा लेनेवाला पण न [दे] कुल, वंश (दे ६,५)। (स्वप्न १०६)।
। एक राजर्षि (पउम ८५, ५)। वई श्री
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