________________
५६२ पाइअसद्दमहण्णवो
पालंक-पावरअ पालंक न [पालक्य ] तरकारी-विशेष, पालित्त पुं [पादलित] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य दुष्ट स्वप्न (कप्प)। सुय न ["श्रुत] दुष्ट पालक का शाक (बृह १)। (पिंड ४६८; कुप्र १७८)।
शास्त्र (ठा ६)। पालंगा श्री [पालक्या ] ऊपर देखो (उवा)। | पालित्ताण न [पादलिप्तीय सौराष्ट्र देश का | पाव दे] सर्प, साँप (दे६, ३८) । पालत देखो पाल = पालय ।
एक प्राचीन नगर, जो आजकल भी
पाव (अप) देखो पत्त - प्राप्त (पिंग)। पालंब पुं [प्रालम्ब] १ अवलम्बन, सहाराः 'पालिताणा' नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र १७६)। 'पावइ तडविडविपालब' (सुपा ६३५)। २ पालित्तिआ स्त्री [दे] १ राजधानी । २ मूल
पावंस वि [पापीयस् ] पापी, कुकर्मी (ठा गले का प्राभूषण-विशेष (प्रौपः कप्प)। ३ | नीवी । ३ भण्डार, निधि । ४ भंगौ, प्रकार
४, ४-पत्र २६५)। दीर्घ, लम्बा (प्रौपः राय)। ४ पुंन. ध्वजा । (कप्पू)।
पावक्खालय न [दे. पापक्षालक] देखो के नीचे लटकता वस्त्राञ्चल, 'पोऊलं पालंब' | पालिय वि [पालित] रक्षित (ठा १०; महा)।
पाउक्खालय (स ७४१)। (पा)। पालियाय देखो पारिय = पारिजात (राय
पावग वि [पावक] १ पवित्र करनेवाला पालका स्त्री [पालक्या देखो पालंगाः
३०)।
(राज)। पुं. अग्नि, वह्नि (सुपा १४२)। 'वत्थुलपोरगमज्जारपोइवल्ली य पालक्का' पाली स्त्री [पाली] पंक्ति, श्रेणि (गउड)।
पावग वि [प्रापक पहुँचानेवाला (सुपा (पएण १-पत्र ३४)।
देखो पालि। पालग देखो पालय (कप्पः प्रौप; विसे पाली स्त्री [दे] दिशा (दे ६, ३७)।
पावग देखो पाव = पाप (प्राचा; धर्मसं ५४३)। २८५६ संति १; सुर ११, १०८)। पालण न [पालन] १ रक्षण (महा: प्रासू पालीबंध पुं[दे] तालाव, सरोवर (दे ६, |
पावजा (अप) देखो पवजा (भवि) ।
पावडण देखो पाय-वडण= पाद-पतन (प्रायः ३)। २ वि. रक्षण-कर्ता; धम्मस्स पालणी
पालीहम्म न [दे] वृति, बाड़ (दे ६, ४५) । चेव' (संबोध १६ सं ६७)।
कुमा)। पालेव पुंपादलेप] पैर में किया हुआ लेप पालदुइ पु [दे] वृक्ष-विशेष ( उप
| पावढि देखो पारद्धि (सिरि ११०८६ (पिंड ५०३)।
१११०)। १०३१ टी)।
पावण वि [पावन] पवित्र करनेवाला (मच्च पालप्प पुं[दे] १ प्रतिसार । २ वि. विप्लुत
पाव सक [प्र + आप ] प्राप्त करना। पावइ (हे ४, २३६)। भवि. पाविहिसि
४७समु १५०)। पालय वि [पालक] रक्षक, रक्षण-कर्ता (सुपा
(पि ५३१)। कर्म, पाविजइ (उव) । वकृ. पावण न [प्जावन] १ पानी का प्रवाह ।
पावंत, पावेंत (पिंग; पउम १४, ३७)। २७६; सार्ध १०)। २ पृ. सौधर्मेन्द्र का
२ सराबोर करना (पिंड २४)। एक आभियौगिक देव (ठा ८)। ३ श्रीकृष्ण
कवकृ. पावियंत, पावेजमाण (पएह १. पावण न [प्रापण] १ प्राप्ति, लाभ (सुर ४, का एक पुत्र (पव २)। ४ भगवान् महावीर
१; अंत २०)। संकृ. पाविऊण (पि ५८६)। १११, उपपं ७)।२ योग की एक सिद्धिः के निर्वाण के दिन अभिषिक्त अवंती (उजैन)
हेकृ. पत्तं, पावेउं (हास्य ११६; महा)। 'पावणसत्तीए छिवइ मेरुसिरमंगुलीए मुणी' का एक राजा (विचार ४६२)। ५ देव
कृ.पावणिज्ज, पाविअव्व (सुर ६,१४२ (कुप्र २७७)। विमान-विशेष (सम २)। स ६८६)।
पावद्धि देखो पारद्धि (धर्मवि १४८)। पाव देखो पव्वालप्लावय । पावेइ (हे ४, पावय देखो पाव = पाप (प्रासू ७५)। पालास [पालाश] पलाश-सम्बन्धी। २
४१)।
पावय वि [प्रावृत] माच्छादित, ढका हुआ न. पलाश वृक्ष का फल, किंशुक-फल (गउड)।
पाव पुंन [पाप १ अशुभ कर्म-पुद्गल, कुकर्म | (सूम २, ७, ३)। पालि स्त्री [पालि] १ तालाव आदि का बन्ध
(प्राचा, कुमाः ठा प्रासू २५); 'जम्मंतरकए पावय पुंन [दे] वाद्य-विशेष, गुजराती में (सुर १३, ३२, अंत १२ महा)। २ प्रान्त
पावे पाणी मुहुत्तेण निदहे(गच्छ १,६)।२ | पावो (पउम ५७, २३)। भाग (गा ६४६)। देखो पाली = पाली।
पापी, अधर्मी, कुकर्मी (पएह १, १, कुमा पावय देखो पावग = पावक (उप ७२८ टी; पालि स्त्री [दे] १ धान्य मापने को नाप । ७, ६)। कम्म न [कर्मन् अशुभ कर्म | कुप्र २८३, सुपा ४ पा) । २ पल्योपम, समय का सुदीर्घ परिमारण-विशेष (प्राचा)। कम्मि वि [कर्मिन् कुकर्म पावयण देखो पवयण (हे १, ४४; उवा (उत्त १८, २८ सुख १८, २८)। करनेवाला (ठा ७) । "दंड पु[ दण्ड] पाया १, १३)। पालिआ श्री [दे] खड्ग-मुष्टि, तलवार की नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २९) । 'पगइ स्त्री पावयणि वि [प्रवचनिन्] सिद्धान्त का मूठ (पाम)।
[प्रकृति अशुभ कर्म-प्रकृति (राज)। 'यारि | जानकार, सैद्धान्तिक (चेश्य १२८)। पालिआ देखो पाली =पाली: उजाणपालि- | वि [कारिन्] दुराचारी (पउम ६३, ४३; पावयणिय वि [प्रावचनिक] ऊपर देखो याहि कविउत्तीहि व बहुरसड्ढाहिं (धर्मवि महा)। समण ( [ श्रमण] दुष्ट साधु (सम ६०)। १३)।
(उत्त १७, ३, ४)। सुमिण पुंन ["स्वप्न] पावरअ देखो पावारय (स्वप्न १०४)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org