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६०४ पाइअसहमहण्णयो
पुट्ठ-पुणे पुट्ठ वि [पुष्ट] उपचित (णाया १, ३, स | न [भेदन] नगर, शहर (कस)। वाय राजा (ठा ७) 'सत्थ न [ शस्त्र] १ ४१६)।
[पाक] १ पुट-पात्रों से प्रोषधि का पाक- पृथिवी रूप शस्त्र । २ पृथिवी का शस्त्र, हल, पुट देखो पिट्ठ = पृष्ठ (प्रातः संक्षि १९)। | विशेष । २ पाक-निष्पन्न औषध-विशेष: 'पुढ | कुटाल प्रादि (प्राचा) । देखो पुहई, पुहवी।। पुट्ठव वि [स्पृष्टवत् ] जिसने स्पर्श किया | (? ड) वाएहि' (णाया. १, १३-पत्र पुढीभूय वि[पृथगभूत जो अलग हुआ हो हो वह (माचा १, ७, ८,८)। १८१)
(सुपा २३६)। पुटुबई देखो पोवई (सुज्ज १०, ६) पुड (शौ) देखो पुत्त- पुत्र (पि २६२ प्राप्र)-पुदुम वि [प्रथम पहला, प्राद्य (हे १, ५५; पुटुवया बो [प्रोष्ठपदा] नक्षत्र-विशेष (सुज्ज | पुडइअ वि [दे] पिण्डीकृत, एकत्रित (दे ६, ।
कुमा)। १०,५)
पुढो प्र[पृथग्] अलग, भिन्न (सुपा ३६२; पुट्टि स्त्री पुष्ट] पोषण, उपचय (विसे २२१; पुडइणी स्त्री [दे. पुटफिनी] नलिनी, कम- रयण ३० श्रावक ४०; प्राचा) छंद वि चेय ८)। २ अहिंसा, दया (पएह २, १लिनी (दे ६, ५५, विक्र २३)।
[छन्द] विभिन्न अभिप्रायवाला (माचाः पि पत्र RS) म वि [°मत् ] १ पुष्टिवाला। पुडग पुन [पुटक] देखो पुट = पुट (उवा) ७८) जण पुं [जन] प्राकृत मनुष्य, २ पुं. भगवान महावीर का एक शिष्य (अनुपडपटी सीमा से मोती
साधारण लोक (सूत्र १, ३, १, ६) "जिय पुद्रि देखो पिद्रि पृष्ठ; 'पाप्रपडिग्रस्स पइणो | प्रकार की अव्यक्त पावाज (पव ३८) पुंजीव] विभिन्न प्राणी (सूम १: १, २, पुट्टि पुत्ते समारुहंतम्मि' (गा ११, ३३, ८७; पुडम देखो पुढम (प्रति ७१; पि १०४)।
३)। "विमाय, "वेमाय वि ["विमात्र] प्रातः संक्षि १६)।
अनेक प्रकार का, बहुविध (राज ठा ४, ४पुडय देखो पुडग (या सुपा ६५६) । पुट्ठि स्त्री [पृष्टि] पृच्छा, प्रश्न 1 य वि
पत्र २८०) पुडिंग न दे मुंह, वदन। २ बिन्दु (दे ६, | पुढोजग विदे. पृथग्जक] पृथग्भूत, भिन्न [ज] प्रश्न-जनित (ठा २, १-पत्र ४०)।
८०) पुद्धि स्त्री [स्पृष्टि] स्पर्श य वि [ज]
व्यस्थित; 'जमिणं जगतो पुढोजगा' (सूम १, पुडिया स्त्री [पुटिका] पुड़ी, पुड़िया (दे ५, २, १, ४)। स्पर्श-जनित (ठा २, १) । १२)
पुढोवम वि [पृथिव्युपम] पृथिवी की तरह पुट्टिया स्त्री [पृष्टिका] प्रश्न से होनेवाली
पुड्डु (शौ) देखो पुत्त = पुत्र (प्राप्र)। क्रिया-कर्मबन्ध (ठा २,१)।
सब सहन करनेवाला (सूम १, ६, २६)। पुट्टिया स्त्री [स्पृष्टिका] स्पर्श से होनेवाली पुढं देखो पिहं (षड्)।
पुढोसिय वि[पृथिवीश्रित पृथिवी के प्राश्रय क्रिया-कर्मबन्ध (ठा २, १)।
पुढम वि [प्रथम पहला (हे १, ५५; कुमा; में रहा हुमा (सूग्र १, १२,१३, प्राचा)। पुट्ठिल देखो पोटिल (अनु २)। स्वप्न २३१) ।
पुण सक [पू] १ पवित्र करना। २ धान्य पुट्ठीया स्त्री [स्पृष्टीया] देखो पुट्रिया =
पुढवि देखो पुढवी (आचानि १, १, २, भग मादि को तुषरहित करना, साफ करना । स्पृष्टिका (नव १८)।
१६, ३, पि ६७)५ काइय, काइय वि पुणइ (हे ४, २४१)। पुणंति (णाया १,
[कायिक] पृथिवी शरीरवाला (जीव), पुट्ठीया स्त्री [पृष्टीया] पृच्छा से होनेवाली
७)। कर्म, पुणिजइ, पुब्वइ (हे ४, २४२)। (पएण १; भग १६,३.ठा पाचानि १, किया-कर्मबन्ध (नव १८) ।।
पुण अ [पुनर] इन अर्थों का सूचक
१, २) काय देखो पुढवी-काय (आचानि अव्यय-१ भेद. विशेष (विसे ८११)। पुड पुं[पुट] १ परिमाण-विशेष । २ पुट
२ अवधारण, निश्चय । ३ अधिकार, परिमित वस्तु (राय ३४)।
पुढवी स्त्री [पृथिवी] १ पृथिवी, धरती, भूमि प्रस्ताव । ४ द्वितीय बार, बारान्तर । पुड पुंन [पुट] १ मिथः संबन्ध, परस्पर (हे १, ८८; १३१; ठा ३, ४)। २ काठि- ५ पक्षान्तर । ६ समुच्चय (पएह २, ३,
जोड़ान, मिलाव, मिलान; 'अंजलिपुड-', न्यादि गुरणवाला पदार्थ, द्रव्य-विशेष- गउड; कुमाः प्रौपा जी ३७, प्रासू , ५२; 'ताहे करयलपुडेण नीग्रो सो' (प्रौप; महा)। मृत्तिका पाषाण, धातु प्रादि (पएण १)। १६८; स्वप्न ७२; पिंग)। ७ पादपूत्ति में भी २ खाल, ढोल मादि का चमड़ा; 'हुरब्भपुड. __३ पृथिवीकाय का जीव (जी २)। ४ ईशा- इसका प्रयोग होता है (निचू १)। करण न संठाणसंठिया' (उवा ६४ टी गउड ११६७) नेन्द्र के एक लोकपाल की अग्र-महिषी (ठा [करण] फिर से बनाना। २ वि. जिसकी कुमा) । ३ संबद्ध दलद्वय, मिला हुआ दो ४,१-पत्र २०४)। ५ एक दिक्कुमारी फिर से बनावट की जाय वहा 'भिन्नं संखं दलः 'सिप्पपुडसंठिया' (उवाः गउड ५७६) । देवी (ठा ८-पत्र ४३६) । ६ भगवान न होइ पुणकरणं' (उव)। गणव वि [ नव] ४ पोषधि पकाने का पात्र-विशेष (रणाया १, सुपार्श्वनाथ की माता का नाम (राज)। फिर से नया बना हुमा, ताजा (उप ७६८ १३)। ५ पत्रादि-रचित पात्र, दोना (रंभा)। काइय देखो पुढवि-काइय (राज) काय टी; कप्पू)। "पुण म [ पुनर् ] फिर६ माच्छादन, ढक्कन (उवाः गउड)। ७ वि [काय] पृथिवी शरीरवाला (जीव), | फिर, बारंबार। 'पुणकरण न [पुनःकरण] कमल, पद्म; 'पुडइणी' (विक्र २३), भेयण । (माचानि १, १, २)। बइ पुं[पति] | फिर फिर बनाना, बारंबार निर्माण (दे १,
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२) ।
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