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पुप्फिअ-पुरा पाइअसहमहण्णवो
६०७ पुप्फिअ वि [पुष्पित] कुसुमित, संजात- पुर न [पुर] १ नगर, शहर (कुमा; कुप्र पुरस्कार पु[पुरस्कार] १ मागे करना, अग्रतः पुष्प (धर्मवि १४८; कुमा; णाया १, ११, ४३८) । २ शरीर, देह (कुप्र ४३८) चंद स्थापन (प्राचा)। २ सम्मान, पादर सुपा ५८)।
पुं[चन्द्र] विद्याधर वंश का एक राजा (सम ४०)।। पुप्फिआ स्त्री [दे] देखो पुप्फा (पाम)।- (पउम ५, ४४) 'भेयण वि [भेदन] पुरक्खड वि [पुरस्कृत] १ मागे किया हुना पुष्फिआस्त्री [पुष्पिता] एक जैन प्रागम- नगर का भेदन करनेवाला। स्त्री-णी (श्रा ६)। २ पुरोवर्ती, अागामी; 'गहणग्रंथ (निर १, ३)।
(उत्त २०, १८) व पुं[ पति नगर समयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति' (भग १, १) पुप्फिम पुंस्त्री [पुष्पत्व] पुष्पपन (हे २, का अधिपति (भवि)। वर न [°वर] पुरच्छा देखो पुरत्था (राज)।
श्रेष्ठ नगर, (उवा; पण्ह १, ४) वरी स्त्री पुरच्छिम देखो पुरस्थिम (ठा २, ३-पत्र पुप्फी [दे] देखो पुप्फा (षड् )
६७ सुज्ज २०-पत्र २८७; पि ५६५) पुप्फुआ स्त्री [दे] करीष (गोयठा) का अग्नि, सुर २, १५२)। वाल पुं [पाल] नगर. दाहिणा स्त्री [दक्षिणा] पूर्व-दक्षिण 'सूइज्जइ हेमंतम्मि दुग्गमो पुफ्फुमासुभंघेण' रक्षक, राजा (भवि)
दिशा, अग्निकोण (ठा १०-पत्र ४७८) । (गा ३२६)।
पुर देखो पुरंः 'पुरकम्मम्मि यपुच्छा' (बृह १) पुरच्छिमा देखो पुरथिमा (ठा १०-पत्र पुप्फुत्तर न [पुष्पोत्तर] एक विमान (कप्प)
४७८)। 'वडिसग न [वतंसक] एक देव-विमान
पुरएअ ? देखो पुरदेव (भवि)। पुरएव
पुरच्छिमिल्ल देखो पुरथिमिल्ल (सम ६६) ।। (सम ३८)।। पुरओभ[पुरतस] १ अग्रतः, मागे (सम
पुरस्थ वि [पुरःस्थ] प्रागे रहा हुआ, अग्रपुप्फुत्तरा । स्त्री [पुष्पोत्तरा] शक्कर की
वर्ती, पुरस्सर, 'पुरत्थं होइ सहायं रणे समं १५१, ठा ४, २: गा ३५०; कुमा; औप)। पुप्फोत्तरा एक जाति (णाया १, १७| २ पहले, पूर्व में; 'पुरो कयं जं तु तं
तेण' (उप १०३१ टी), 'जेण गहिएणणत्था पत्र २२६; पएण १७-पत्र ५३३)।
इत्थ परत्यावि हु पुरत्या' (श्रा १४)।पुरेकम्म' (प्रोघ ४८६)। पुप्फोदय न [पुष्पोदक] पुष्प-रस से मिश्रित
पुरत्थ प्र[पुरस्तात् ] १ पहले, काल पुरं प्र[पुरस्] १ पहले, पूर्व में। २ जल (णाया १,१-पत्र १९)।
पुरत्थओ या देश की अपेक्षा से प्रागे, 'तपुरसमक्षा 'तए णं से दरिदे समुकि? समाणे पुप्फोवय) वि [पुप्पोपग] पुष्प प्राप्त
पुरत्था 'पुरत्थभाए' (सुपा ३९०), 'मोसस्स पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमितिसमन्नागते पुप्फोवा करनेवाला, फूलनेवाला (वृक्ष)
पच्छा य पुरत्यमो ये (उत्त ३२, ३१), यावि विहरिज्जा' (ठा २, १-पत्र ११७)। 'प्रादीणियं दुकडियं पुरत्या' (सूम १, ५, (ठा ३, १-पत्र ११३)।
३ अग्रे, मागे गम वि [गम] अग्र- १, २)। २ पूर्वदिशा; 'पुरत्याभिमुहे' (कप्प; पुम पुं[पुंस्] १ पुरुष, नरः 'थीमपुमाणं गामी, पुरोवर्ती (सूत्र १, ३, ३, ६)। देखो औप; भग; णाया १,१–पत्र १९) विसूझता' (पंच ५, ७२), 'पुमत्तमागम्म परे. परो। कुमार दोवि' (उत्त १४, ३ ठा प्रौप)।
पुरस्थिम वि [पौरस्त्य, पूर्व] १ पूर्व की पुरंजय पुं[पुरञ्जय] एक विद्याधर राजा। तरफ का: 'उत्तर-पुरथिमे दिसीभाए (कप्पा २ पुरुष-वेद (कम्म ५, ६०), आणमणी
पुरन [पुर] एक विद्याधर-नगर (इक) औप)। २ न. पूर्व दिशाः 'पुरतो पुरस्थिमेणं स्त्री [ आज्ञापनी] पुरुष को प्राज्ञा देनेवाली
पुरंदर पुं [पुरन्दर] १ इन्द्र, देवराज । २ (णाया १; {--पत्र ५४, उवा)। भाषा, भाषा-विशेष (पएण ११) पन्नावणी
गन्ध-द्रव्य-विशेष (हे १, १७७)। ३ वृक्ष-पुरस्थिमा स्त्री [पूर्वा] पूर्व दिशा; 'पुरत्थिमाओ स्त्री [प्रज्ञापनी] भाषा-विशेषः पुरुष के
विशेष, चव्य जा पेड़; 'पुरंदरकुसुमदामलक्षणों का प्रतिपादन करनेवाली भाषा
वा दिसाम्रो पागो' (प्राचा: मृच्छ १५८टि)। सुविणेण सूइया जाया (उप ६८६ टी)। (पएण ११-पत्र ३६४) वयण न
पुरथिमिल्ल वि [पौरस्त्य] पूर्व दिशा का, ४ एक राजर्षि (पउम २१,८०)। ५ मन्दर[वचन] पुलिंग शब्द का उच्चारण (परण
पूर्व दिशा में स्थित (विपा १, ७, पि ५६५)। कुब्ज नगर का एक विद्याधर राजा (पउम ११-पत्र ३७०)
पुरदेव पुं [पुरादेव] भगवान् प्रादिनाथ,
६, १७०)4 जसा स्त्री [यशस्] एक पुम्म (अप) सक [दृश ] देखना। पुम्मइ
'पुरदेवजिएस्स निवारणं' (पउम ४, ८७)।' राज-कन्या का नाम (उप ९७३)। "दिसि
पुरव देखो पुत्व (गउड हे ४, २७०, ३२३)। (प्राकृ ११९)। स्त्री [दिश्] पूर्व दिशा (उप १४२ टी)
पुरस्सर वि[पुरस्सर] अग्रगामी (कप्पू)। पुयली स्त्री [दे] पुत-प्रदेश, कमर के नीचे
पुरंधि) स्त्री [पुरन्ध्री] १ बहु कुटुम्बवाली पुरा स्त्री [पुर ] नगरी, शहर (हे १, १६) का भागः 'पुयलि पप्फोडेमाणे' (भग १५
पुरंधी स्त्री। २ पति और पुत्रवाली स्त्री | पुरा देखो पुरिल्ला = पुरा (सूम १, १, २, पत्र ६७६)
(कुमाः कुप्र १०७; सुपा २६, पाम)। ३ २४ विपा १,१) इय, कय वि [कृत] पुयावइत्ता देखो पुआव।
अनेक काल पहले व्याही हुई स्त्री (कप्पू)। पूर्व काल में किया हुमा (भविः कुप्र ३१९)। पुर (अप) देखो पूर - पूरय । पुरह (पिंग)। पुरकड देखो पुरक्खड (सूत्र २, २, १८) 'भव [भव] पूर्व जन्म (कुप्र ४०६)।
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प्रौप)। पुरंजय
पुर] एक विद्या
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