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पीढ- पुंछ
पढन [दे] १ ईख पेरने का यन्त्र (दे ६, ५१) । २ समूह, यूथ; 'उट्ठियं वरणगइंदपीठं, पट्टा दिसो दिसो (? सि) कम्पडिया' (स २३३)। ३ पीठ, शरीर के पीछे का भागः 'हरिथपीढसमारूढो' (त्रि εE) 1पीढग न [ पीठक ] देखो पीढ = पीठ पीढय ) (कसः गच्छ १, १०; दस ७, २८) । पीढरखंड न [ पीठरखण्ड ] नर्मदा तीर पर स्थित एक प्राचीन जैन तीर्थं (पउम ७७, ६४) ।
पीढाणिय न [पीठानीक ] श्रश्व-सेना ( ठा ५, १ --पत्र ३०२) । पीढिआ [पीठिका ] श्रासन-विशेष, मञ्च 'आसंदी पीढिया ' ( पात्र) । देखो पेढिया । पीढी स्त्री [दे. पीठिका ] काष्ठ-विशेष, घर का एक आधार काष्ठ; गुजराती में 'पीढिउँ'; 'तत्तो नियत्तिऊणं सत्तट्ट पयाई जाव पहरेइ । ता उवरिपीढिखलणे खग्गेण खडक्कियं तत्थ (धर्मवि ५६) । पीति कृ. देखो
पीण सक [ पीनयू ] पुष्ट करना। ( राय १०१ ) 1
[ पीणणिज्ज |
] खुश करना।
पीण वि[दे] चतुरस्र, चतुष्कोण (दे ६, ५१) । पीण वि[पीन] पुष्ट, मांसल, उपचित (हे २, १५४, पान कुमा) 1
पीणण न [ प्रीणन] खुश करना (धर्मवि १४८) -
पीणणिज्ज वि [ प्रीणनीय ] प्रीति-जनक ( औप: कप्पः परण १७ ) । पीणाइय वि [दे. पैनायिक] गर्व से निवृत्त गर्व से किया हुआ; ‘पीणाइयविरसर डियस द्दणं फोडयंते व अंबरतलं' (गाया १, १ – पत्र ६३) ।
पीणाया स्त्री [दे. पीनाया] गवं अहंकार ( पाया १, १ ) 1
पीणिअ वि [ प्रीणित] १ तोषित (सण) । २ उपचित, परिवृद्ध (दस ७, २३) । ३ पुं. ज्योतिष प्रसिद्ध योग-विशेष, जो पहले सूर्य या चन्द्र का किसी ग्रह या नक्षत्र के साथ होकर बाद में दूसरे सूर्य आदि के साथ उपचय को प्राप्त हुआ हो वह योग (सुज्ज १२ ) M ७६
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पाइस मण्णवो
पीणिम पुंखी [पीनता] पुष्टता, मांसलता (हे २, १५४) । पोयमाण देखो पा = पा । पीयमाण देखो पी = पी। पीरिपीरिया स्त्री [दे] वाद्य विशेष (राय ४५)
पीक [पीडय् ] १ पीलना, पेरना, दबाना । २ पीड़ा करना, हैरान करना । पीलइ, पीलेइ (धात्वा १४५; पि २४० ) । कवक. पीलिज्जत (श्रा ६) ।
पीलण न [ पीलन ] दबाव, पीलन, पेरना 'मासिणी माणो पीलणभीघ्र ध्व हिमाहि' ( का १६६), 'जंतपीलर कम्मे' (उबा) ।
[ पुर] शरीर (विसे २०१५ ) 1 पुअ न [प्लुत] १ तियँग् गति । २ झाँपना कम्प-गतिः 'जुज्झामो पू (? पु) यथाएहि (विसे १४३९ टी) 1 जुद्ध न [युद्ध] अम युद्ध का एक प्रकार (विसे १४७७) । पुअंड पुं [दे] तरुण, युवा (दे ६, ५३; पान) I पुआइ वि. [दे ]१ तरुण, युवा (दे ६, ८०) । २ उन्मत्त (दे ६, ८० षड् ) । ३ पुं. पिशाच (दे ६, ८०, पान षड् ) 1
पीला देखो पीडा (उप ४३६६ सुपा ३५८) । पीलावय वि [ पीडक] १ पेरनेवाला । २ पु. तेलो, यंत्र से तेल निकालनेवाला ( वज्जा ११० ) 1
पीलिअ वि [ पीडित ] पीला या पेरा हुमा पुआइणी स्त्री [दे] १ पिशाच गृहीत स्त्री, (श्रौपः ठा ५, ३; उव) 1 भूताविष्ट महिला । २ उन्मत्त स्त्री । ३ कुलटा, व्यभिचारिणो (दे ६, ५४) । पुआव सक [ प्लावयू ] ले जाना। संकृ. पुयावइत्ता (ठा ३, २)
पीलिम वि [ पीडावत् ] दाबवाला, दाबने से बना हुधा ( वस्त्र आदि की भ्राकृति) (दसनि २, १७) । ~
पीलु Î [पीलु] १ वृक्ष-विशेष, पीलु का पेड़ ( पण १: वज्जा ४६ ) । २ हाथी ( पाश्र स ७३५) । ३ न दूध 'एग बहुनामं दुद्ध पनो पीलु खीरं च' (पिंड १३१) पीलुअ पुं [दे. पीलुक ] शावक, बचा 'तडसंठिभरणीडेक्कं तपीलुमा रक्ख रोक्कदिएगम(गा १०२) ।
पीलुट्ठ वि [ दे. प्लुष्ट ] देखो पिलुट्ठ (दे ६, ५१) ।
पीवर वि [पीवर ] उपचित, पुष्ट (गाया १, १ पान सुपा २६१ ) + गन्भा स्त्री ['गर्भा] जो निकष्ट भविष्य में ही प्रसव करनेवाली हो वह स्त्री (प्रोघभा ८३) । पीवल देखो पीअ = पीत (हे १, २१३; २, १७३; कुमा) । - पीस सक [ पिष्] ७६) । व पीसंत
पीसना । पीसइ (पि (पिंड ५७४; गाया १, ७) । संकृ. पीसिऊण (कुप्र ४५ ) 1
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पीसण न [पेषण] १ पीसना, दलना (पह १, १ उप पृ १४०; रयण १८ ) । २ वि. पीसनेवाला (सूम १, २, १, १२) - पीसय वि [पेषक] पीसनेवाला (सुपा ε३) । पीह सक [ स्पृह, प्र + ईह ] श्रभिलाषा करना, चाहना । पीहंति, पीहेज्जा (श्रौप ठा ३, ३-पत्र १४४) ।
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पीहग पुं [पीठक] नवजात शिशु को पीलाइ जाती एक वस्तु (उप ३११)
पुं° पुं [पुंस्] पुरुष, मदं (पि ४१२; धम्म १२ टी)। देखो पुंगव, पुंनाग, पुंवड आदि ।
[पुङ्ख] १ बाण का भाग यसरस्स पुंखं विद्धइ भन्ने तिक्खवाण' (धर्मवि ९७; उप पृ ३६५) । २ न. देवविमान - विशेष (सम २२) । पुंखणग न [दे. प्रोङ्खणक ] चुमाना, विवाह की एक रीति, गुजराती में 'पोखरा' (सुपा ६५)
पुंखिअ वि [पुङ्खित] पुंख-युक्त किया हुआ, 'धरगुहे तिक्खी सरो पुंखियों (कप्पू) 1 पुंगल' [दे] श्रेष्ट, उत्तम (भवि ) । पुंगव वि [पुङ्गव ] श्रेष्ठ, उत्तम (सुपा ५८०; श्रु ४१; गड) M
पुंछ सक [प्र + उच्छू ] पोंछना, सफा करना । पुंछइ ( प्राकृ ६७ हे ४, १०५) । कृ. पुंछणीअ (पि १८२) ।
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