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पावरण-पासाकुसुम
पाइअसहमहण्णवो
पावरण पुं [प्रावरण] एक म्लेच्छ जाति | पावेस वि [प्रावेश्य] प्रवेशोचित, प्रवेश के पासंदण न [प्रस्यन्दन] झरन, टपकना (बह (मृच्छ १५२)।
| लायक (प्रौप)। पावरण न [प्रावरण] वस्त्र, कपड़ा (हे १, पावेस [प्रावेश] वन के दोनों तरफ पासग वि [दर्शक] देखनेवाला (पाचा)। १७५)। लटकता रुंछा (गाया १,१)।
पासग पूं [पाशक] १ फाँसा, बन्धन-रज्जु पावरिय वि [प्रावृत पाच्छादित (कुप्र ३८)। पास सक [दृश] १ देखना। २ जानना। (उप पू १३; सुर ४, २५०) । २ पासा, पावस देखो पाउस (कुप्र ११७)।
पासइ, पासेइ (कप्प) । पासिम = "पश्य जुआ खेलने का उपकरण-विशेष (जं ३)। पावा स्त्री [पापा] नगरो-निशेष, जो अाजकल (पाचा १, ३, ३, ५)। कर्म. पासिजइ (पि पासग न [प्राशक] कला-विशेष (प्रौप)। भी बिहार के पास पावापुरी के नाम से ७०) । वकृ. पासंत, पासमाण (स ७५ पासण न [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण प्रसिद्ध है (कप्पा ती ३, पंचा १६, १७ कप्प)। संकृ. पासिउं, पासित्ता, पासित्ताणं, (पिंड ४७५; उप ६७७, प्रोष ५४ सुपा पव ३४; विचार ४६)।
पासिया (पि ४६५, कप्पः पि ५८३; महा)। ३७)। पावाइ वि [प्रवादिन] वाचाट, दार्शनिक | हेकृ. पासित्तए, पासिउं (पि ५७८; ५७७)। | पासणया स्त्री. ऊपर देखो (मोध ६३, उप (सूत्र २, ६, ११)। कृ. पासियव्व (कप्प)।
१४८ रणाया १,१)। पावाइअ वि [प्रावाजिक] संन्यासी (रयण | पास पुं[पार्श्व] १ वर्तमान अवसर्पिणी-काल पासणिअ वि [दे] साक्षी (दे ६, ४१)। २२)।
के तेईसवें जिन-देव (सम १३, ४३)। २ पासणिअ वि [प्राश्निक] प्रश्न-कर्ता (सूम पावाइअ दि [प्रावादिक] देखो पावाइ | भगवान् पाश्र्वनाथ का अधिष्ठायक यक्ष (संति १, २, २, २८ भाचा)। (प्राचा)।
८)। ३ न. कन्धा के नीचे का भाग, पाँजर पासत्थ वि [पार्श्वस्थ] १ पाव में स्थित, पावाइअ वि[प्रावादुक] वाचाट, दार्श- (णाया १, १६)। ४ समीप, निकट (सुर निकट-स्थित (पउम ६८, १८ स २६७; पावादुयनिक (सूत्र १,१, ३, १३, २, ४, १७९)। वञ्चिज वि [पत्यीय] सूअ १, १, २, ५) । २ शिथिलाचारी साधु २, ८० पि २६५)।
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा में संजात (उप ८३३ टीः णाहा १, ५, ६,-पत्र पावार पुं[प्रावार] १ रुंछावाला कपड़ा । २ (भग)।
२०६; साधं ८८)। मोटा कम्बल (पव ८४)।
पास.' [पाश] फाँसा, बन्धन-रज्जू (सुर ४, पासत्थ वि [पाशस्थ पाश में फंसा हुमा, पावारय देखो पारय = प्रावारक (हे १ २७१; | ३३७; प्रौप; कुमा)।
पाशित (सूम १, १, २, ५)। कुमा)।
पास न [दे] १ आँख । २ दाँत । ३ कुन्त, | पासल्ल न [दे] १ द्वार (दे ६, ७६) । २ वि. पावालिआ स्त्री [प्रपापालिका] प्रपा या
प्रास । ४ वि. विशोभ, कुडौल, शोभा-हीन | तिर्यक् , वक्र (दे ६, ७६; से ६; ६२: गउड)। प्याऊ पर नियुक्त स्त्री (गा १६१)।।
(द ६, ७५)।५ पुंन. अन्य वस्तु का अल्प-पासल्ल देखो पास = पार्श्व (से ६, ३८ पावासु वि [प्रवासिन्, क] प्रवास
मिश्रण; 'निच्चुन्नो तंबोलो पासेण विणा न गउड)। पावासुअ करनेवाला (पि १०५ हे १,
होइ जह रंगों (भाव २)।
पासल्ल अक [तिर्यश्च , पार्थाय ] १ वक्र ९५ कुमा)।
होना। २ पाच घुमानाः 'पासलंति महिहरा' पास वि [°पाश] अपसद, निकृष्ट, जघन्य, पाविअ वि [प्राप्त लब्ध, मिला हुआ (सुर ३,
(से ६, ४५)। वकृ. पासलंत (से ६, ४१)। कुत्सित; 'एस पासंडियपासो किं करिस्सई' १६ स ६८६)। पाविअ वि [प्रापित] प्राप्त करवाया हुआ (सम्मत्त १०२)।
पासल्लइअ देखो पासल्लिअ (से ६, ७७)। (सरणः नाट-मृच्छ २७)।
पासंगिअ वि [प्रासङ्गिक] प्रसंग-संबन्धी, पासल्लि वि [पाश्चिन्] पार्व-शयित, 'उत्ताणपाविअ वि [प्लावित] सराबोर किया हुआ) भानुषंगिक (कुम्मा २७)।
गपासल्ली नेसजी वावि ठाण ठाइत्ता (पव खूब भिजाया हुआ (कुमा)।
पासंड न [पासण्ड] १ पाखण्ड, मसत्य धर्म, । ६७ पंचा १८, १५)।। पाविट्ठ वि [पापिष्ठ] अत्यन्त पापी (उव |
धर्म का ढोंग (ठा १० णाया १, ८ उवा; पासल्लिअ वि [पाश्वित, तिर्यक्त] १ पाव ७२८ टी; सुर १, २१३, २, २०५; सुपा प्राव ६) । २ व्रत (अणु)।
में किया हुआ। २ टेढ़ा किया हुआ (गउड; १६६; था १४)।
पासंडि । वि [पासण्डिन्, क] १ पि ५६५)। पावीढ देखो पाय-वीढ (पउम ३,१ हे १,
| पासंडिय। पाखंडी, लोक में पूजा पाने के पासवण न [प्रस्रवण] मूत्र, पेशाब (सम १०%; २७०; कुमा)।
लिए धर्म का ढोंग रचनेवाला (महानि ४; कस; कप्प; उवा; सुपा ६२०)।
कुप्र २७६; सुपा ६९ १०६ १९२)।२ पासाईय देखो पासादोय (सम १३७ उवा)। पावीयंस देखो पावंस (पि ४०६; ४१४)।
पुं. व्रती, साधु, मुनिः 'पब्वइए अणगारे पासाकुसुम न [पाशाकुसुम] पुष्प-विशेष, पावुअवि [प्रावृत पाच्छादित (संक्षि ४)।
पासंडे (? डी) चरग तावसे भिक्खू । परिवाइए 'छप्पन गम्मसु सिसिर पासाकुसुमेहि ताव, पावेजमाण देखो पाव =प्र+भाप। य समणे (दसनि २-गाथा १६४)। मा मरसु' (गा ८१९)।
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