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२, १४२ कुमा) सेणकन्दा श्री [सेन कृष्णा ] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५) । सा देखो 'सिआ (विपा १, ३ – पत्र ४१) । 'हर देखो घर (सुर १०, १९ भनि ।
पिड देखो पिय (राज) | पिडा
[दे-पितृष्वस्] पूरे पिता की
बहन (ड्) । पिउच्छा }नी [हे] सखी, वयस्या(षड् १७५;
पिली श्री [दे] १ का लतिका, रूई की पूनी (दे ६,७८ ) ।
२
( २, १६४) । पिंकार ] [ अधिकार ] १ 'अपि' शब्द । २ अपि शब्द की व्याख्या ( ठा १०४५) ।
- पत्र
पंखा [प्रेङ्खा ] हिंडोला, डोला ( पात्र ) । पिंखोल सक [ प्रेङ्खोलयू ] भूलना। वक्कू, पिपलमाण (राज) |
पिंग देखो पंग = ग्रह (कुमा ७, ४९ ) । पिंग g [पिङ्ग] १ कपिश वर्णं, पीत वर्णं । २ वि. पीला, पीत रँगका (पाघ्रः कुमाः रामि १४) । ३ पुंखी. कपिंजल पक्षी । स्त्री. गा (सू १, २, ४, १२) । पिंग [] मर्कट बन्दर (६, ४८ ) । पिंगल पुं [पिङ्गल] १ नील-पीत वर्णं । २ वि. नीस-मिथत पीता कुमाः ठा ४, २ श्रप) । ३ . ग्रह-विशेष (ठा २, ३) । ४ एक यक्ष (सिरि ६६६) । ५ चक्रवर्त्ती का एक निधि श्राभूषणों की पूर्ति करने वाला एक निधान (ठा है; उप ६८६ टी) । ६ कृष्ण पुद्गल -विशेष (सुज्ज २० ) । ७ प्राकृत- पिगल का कर्ता एक कवि (पिंग ) ८ एक जैन उपासक (भग) ६ न. प्राकृत का एक छन्द-ग्रंथ (पिंग ) । कुमार पुं [कुमार ] एक राजकुमार, जिसने भगवान् सुपार्श्वनाथ के समीप दीक्षा ली थी (सुपा १६) । क्ख
[] १ मीली-पीली धांवाला (ठा ४, २--पत्र २०८ ) । २ पुं. पक्षि-विशेष ( एह १, १ जीप) ।
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पाइअसहमहण्णवो
पिंगलायण न [पिङ्गलायन] १ गोत्र-विशेष जो कौत्स गोत्र की एक शाखा है । २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७) । पिंगलिअ वि [पिङ्गलित] नीला-पीला किया हुआ (से ४, १८ गउड सुपा ८० ) । पिगलिअ वि [ पैङ्गलिक ] पिंगल-संबन्धी (पिंग) ।
पिंगा देखो पिंग ।
पिंगायण न [पिङ्गयन ] मघा नक्षत्र का गोत्र
(इ) |
[गृहीत]
किया हुआ
पिंगिन
(कुमा) ।
गम [न] पिता पीलापन (गउड)।
पिंगीकय वि [पिङ्गीकृत ] पीला किया हुआ, 'घरथरण सिरि+कुपंपिगीकय व्व' ( लहुन
७) ।
पिंगुल १ – पत्र ८ ) ।
पिंचु पुंस्त्री [दे] पक्व करीर, पक्का करी (दे ६.४६) ।
पिंड
देखो पिच्छ ( भाषा गउड सुपा पिछड ६४१) । पिंछी स्त्री [पिच्छी] साधु का एक उपकरण, नवि से जिला पियों (चि) (विचार १२८) ।
[पिछ] पक्षि-विशेष (वराह है,
पिछली श्री [३] मुँह के पवन से बजाया जाता तृरण मय वाद्य विशेष (दे ६, ४७ ) । पिंज सक [ प ] पीजना कई का चुनना। वकृ. पिंजंत (पिंड ५७४६ श्रोघ ४६८) । पिंजण न [पिअन ] पीजना ( पिंड ६०३ दे ७, ६३) । पिंजर पुं [पिअर ] १ पीत रक्त वर्णं, रक्तपीत मिश्रित रँग । २ वि. रक्त-पीत वर्णवाला (गउड; कुप्र ३०७ ) ।
पिंजर सक [ पिअरय् ] रक्त-मिश्रित पीतवयुक्त करना । वकृ. पिंजरयंत (पउम २, ९ ) 1
पिंजरण न [पिअरण] रक्तमिश्रित पीठवर्णवाला करना (सरण) । पिंजरि वि [पिअरित] पितरवाला किया हुमा (हम्मीर १२ ५२४) ।
गउड सुपा
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पिउअ - पिंड
पिंजरुड
[दे] पक्षि-विशेष भी जिसके दो मुँह होते हैं (दे ६, ४०) । पिंजिअ वि [पिञ्जित ] पीजा हुआा (दे ७, ६४) ।
पिंजिअ वि [दे] विधुत (दे ६, ४९ ) । पिंड सक [ पिण्डय् ] १ एकत्रित करना, संश्लिष्ट करना । २ प्रक. एकत्रित होना, मिलना पिटे, पिंट
कृ.
पिण्डिऊण (कुमा) ।
[[पिण्ड] १ कठिन द्रव्यों का संश्लेष (पिण्डभा २ ) । २ समूह, संघात ( श्रोध ४०७: विसे ६०० ) । ३ गुड़ वगैरह की बनी हुई गोल वस्तु, वर्तुलाकार पदार्थ (परह २, ५) । ४ भिक्षा में मिलता श्राहार, भिक्षा ( उवः ठा ७) । ५ देह का एक देश । ६ देह, शरीर । ७ घर का एक देश ८ प्रश्न का गोला जो पितरों के उद्देश से दिया जाता है । ६ गन्ध-द्रव्य विशेष सिह्नक १० जपापुष्प । ११ कवल, ग्रास । १२ गज- कुम्भ । १३ मदनक वृक्ष, दमनक का पेड़ । १४ न. श्राजीविका । १५ लोहा । १६ श्राद्ध, पितरों को दिया जाता दान । १७ वि. संहत। १८ घन, निबिड़ (हे १, ८५ ) । कप्पि वि ["कल्पिक] सर्वथा निर्दोष भिक्षा तेनेवाला (वव ३)। गुला स्त्री ['गुला] गुड़-विशेष, इक्षुरस का विकार - विशेष, शक्कर बनने के पहले की अवस्था विशेष (पिंड २८३) । घर न [गृह] कदम से बना हुआ घर (वव ४) । त्थ[स्थ] जिन भगवान् की अवस्थाविशेष: 'न पिडत्यपयत्थावत्थंतरभावरणा सम्म' (संबोध २) श्व [] समुदायार्थं । स्थपुं (राज) । दाण न [दान ] पिण्ड देने की क्रिया, श्राद्ध (धर्मवि २६ ) । पर्याड स्त्री ["प्रकृति ] अवान्तर भेदवाली प्रकृति (कम्म १२५) वणन [वर्धन] माहार-बुद्धि, काल-वृद्धि, अन्नप्राशन (अंत) वद्धायणन [वर्धन ] बाहार बढ़ाना ( प ) "या [पात] भिज्ञा नाम, चाहार-प्राप्ति (ठा ५, १. कस) बास [वास ] सुत (भविधिसुद्धि, विसोहि श्री [विशुद्धि ] भिक्षा की निर्दोषता (अंतः प्रोघभा ३ ) ।
पिंट
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