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पाइअसद्दमहण्णवो
पासाण-पिअ
पासाण [पाषाण] पत्थर (हे १, २६२, पासोअल्ल देखो पासल्ल- तियं। वकृ. पाहुडिआ स्त्री [प्राभृतिका] १ भेंट, उपहार पासोअल्लंत (से ६, ४७)।
(पव ६७)। २ जैन मुनि की भिक्षा का एक पासाणअ वि [दे] साक्षी (दे६,४१)। पाह (अप) सक [प्र + अर्थय] प्रार्थना दोष, विवक्षित समय से पहले-मन में पासाद देखो पासाय (मौप; स्वप्न ५६)। करना । पाहसि (पि ३५६)।
संकल्पित भिक्षा, उपहार रूप से दी जाती पासादिय वि [प्रसादित] १ प्रसन्न किया | पाहंड देखो पासंड (पि २६५)।
भिक्षा (पंचा १३, ५, पव ६७ ठा ३, ४ला। २ न. प्रसन्न करना (गाया १,६- पाहण देखो पाहाणः 'महंतं पाहणं तयं (श्रा पत्र १५६) पत्र १६५)।
१२); 'चउकोणा समतीरा पाहणबद्धा य पाहुण वि [दे] विक्रेय, बेचने की वस्तु (दे पासादीय वि[प्रासादीय प्रसन्नता-जनक | निम्मविया (धर्मवि ३३; महा भवि)।
६, ४०)। (उवाः मौप)।
पाहणा देखो पाणहा, 'तेगिच्छं पाहणा पाए पाहुण [प्राघुग, क] अतिथि, पाहुना, पासादीय वि [प्रासादित] महलवाला, (दस ३, ४)।
पाहुणग मेहमान (प्रोभा ५३; सुर ३,८५, प्रासाद-मुक्त (सूम २, ७, १ टो)।
पाहण्णन [प्राधान्य] प्रधानता, प्रधानपन पाहुणय महा; सुपा १३; कुप्र ४२; प्रौप; पासाय न [प्रासाद] महल. हम्यं (पाम; पाहन्न ।(प्रासू ३२ ओघ ७७२)।
काल)। पउम ८०, ४)। वडिंसय पु[वतंसक] पाहर सक [प्रा + ह] प्रकर्ष से लाना, ले
पाहुणिअ पुं [प्राघुणिक] प्रतिथि, पहुना, मेह महन (भग; प्रौप)। माना । पाहराहि (सूत्र, ४, २, ६)।
मेहमान (काप्र २२४)। पासायवडेंसग [प्रासादावतंसक] श्रेष्ठतम पाहरिय वि [प्रारिक] पहरेदार (स ५२५;
पाहुणि पुं [प्राधुनिक] ग्रह-विशेष, ग्रहामहल, प्रासाद-विशेष (राय ६६)। सुपा ३१२, ४५५)।
धिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)। पासासा स्त्री [दे] भल्ली, छोटा भाला (दे ६,
पाहाउय देखो पाभाइय (सुपा ३५:५५६)। पाहाण पुं [पाषाण] पत्थर (हे १, २६२,
पाहुणिज वि [प्राहवनीय प्रकृष्ट संप्रदान,
जिसको दान दिया जाय वह (गाया १,१ पासाव पुं[दे] गवाक्ष, वातायन, झरोखा महा)।
पाहिज देखो पाहेज (पान)। पासावय (षड् दे ६,४३)।
टी-पत्र ४)।
पाहुण्ण पाहुड न [प्राभृत] १ उपहार, पाहुर, भेंट
न [प्राघुण्य, क] प्रातिथ्य, पासि वि [पाश्चिन्] पार्श्वस्थ, शिथिलाचारी
| पाहुण्णग (हे १,१३१, २०६; विपा १, ३; कर्पूर २७,
अतिथि का सत्कार, पहुनाई; साधु; 'पासिसारिच्छो (संबोध ३५) । पासिद्धि देखो पसिद्धि (हे १, ४४)।
पाहुण्णय J‘कयं मंजरीए पाहुण(? एण)ग' कप्पू: महा; कुमा)। २ जैन ग्रन्थांश-विशेष,
परिच्छेद, अध्ययन (सुज १, २, ३)। ३ पासिम वि [दृश्य दर्शनीय, ज्ञेय (माचा)।
(कुप्र ४२; उप १०३१ टो)। पासिम देखो पास = दृश् ।
प्राभृत का ज्ञान (कम्म १, ७)। पाहुड
पाहेअ न [पाथेय रास्ते में व्यय करने की
सामग्री, मुसाफिरी में खाने का भोजन (उत्त न [प्राभृत] १ ग्रन्थांश-विशेष, प्राभृत का पासिय वि [पाशिक] फांसे में फंसानेवाला
१६, १८ महा: अभि ७६; स ९८; सुपा भी एक अंश (सुज १, १, २)। २ प्राभृत(पराह १, २)। पासिय वि [स्पृष्ट] छुपा हुआ (प्राचा
प्राभूत का ज्ञान (कम्म १,७)। पाहुडस- ४२४)।
मास पुन [प्राभृतसमास] अनेक प्राभृत- पाहेज न [दे. पाथेय] ऊपर देखो (दे ६, पासिम)। प्राभूतों का ज्ञान (कम्म १, ७)। समास
२४)। पासिय वि [पाशित] पाश-युक्त (राज)।
पुन [°समास] अनेक प्राभृतों का ज्ञान पाहेणग (दे) देखो पहेणग (पिंड २८८)। पासिया स्त्री [पाशिका] छोटा पाश (महा)।
(कम्म १,७)।
पि देखो अवि (हे २, २१८ स्वप्न ३७, पासिया देखो पास = दृश् ।
पाहुड न [प्राभृत] १ क्लेश, कलह (कस; बृह कुमाः भवि)। पासिल्ल वि [पाश्चिक १ पास में रहनेवाला।
१)। २ दृष्टिवाद के पूर्वो का अध्याय-विशेष पिअ सक [पा] पीना। पिनइ (हे ४, १०; २ पार्श्वशायी (पव ५४ तंदु १३; भग)।
(अणु २३४)। ३ सावध कर्म, पाप-क्रिया ४१६ गा १६१)। भूका, अपिइत्थ पासी स्त्री [दे] चूड़ा, चोटी (दे ६, ३७)।
(प्राचा २, २, ३, १; वव १)। "छेय पुं (माचा)। वकृ. पिअंत, पियमाण (गा १३ पासु देखो पंसु (हे १, २६७०)।
[च्छेद] बारहवें अंग-प्रन्थ के पूर्वो का प्र; २४६; से २, ५; विपा १, १)। संकृ. पासुत्त देखो पसुत्त (गा ३२४; सुर २, ८२
प्रकरण-विशेष (वव १)। पाहुडिआ स्त्री पिञ्चा, पेञ्चा, पिएऊण (कप्प; उत्त १७, ९, १६८ हे १, ४४ कुप्र २५०)। ..
[प्राभृतिका] दृष्टिवाद का प्रकरण-विशेष | ३, धर्मवि २५), पिएविणु (अप) (सण)। पासेइय वि [प्रस्वेदित] प्रस्वेद-युक्त, पसीना- (अणु २३४)।
प्रयो. पियावए (दस १०, २)। वाला (भवि)।
पाहुडिआ स्त्री [प्राभृतिका] १ दृष्टिवाद का पिअ पुप्रिय] १ पति, कान्त, स्वामी पासेल्लिय वि [ पार्श्ववत् ] पार्श्व-शायी, बगल छोटा मन्याय (भएणु २३४) । २ अचंनिका, (कुमा)। २ वि. इष्ट, प्रीति-जनक (कुमा)। में सोनेवाला (राज)। विलेपन मादि (नव ४)।
'अम [तम] पति, कान्त (गा १६;
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