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पाओवगमण-पाडवण
पाइअसहमहण्णवो
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भग)।
पाअ वगमण न [पादपोपगमन] अनशन- पागड्ढि । वि [प्राकर्षिन्, क] १ अग्र- | पाडण न [पातन] १ गिराना, पाड़ना विशेष, मरण विशेष (सम ३३; प्रौप; कप्प; पागड्ढिक गामी; 'पागट्ठी (? ड्डी) पट्ठवए (सूअनि ७२)। २ परिभ्रमण, इधर-उधर जूहवई (णाया १,१)। २ प्रवत्तंक, प्रवृत्ति
घुमना; 'लहुजढरपिढरपडियारपाडणत्तारण पाओवगग वि [पादपोपगत] अनशन-विशेष करानेवाला (पराह १, ३-पत्र ४५) । कयकीलो (कुमा २, ३७)। से मृत (प्रौप; कप्प; अंत)।
पागम्भ न [प्रागल्भ्य] धृष्ठता, ढिठाई (सूप पाडणा स्त्री [पातना] ऊपर देखो (विपा १, पाओस पुं[दे. प्रद्वेष] मत्सर, द्वेष (ठा ४, . १, ५, १, ५)।
१-पत्र १६)। ४–पत्र २८०)।
पागभि । वि [प्रागल्भिन्, क] धृष्टता-पाडय पुं[पाटक] मुहल्ला, रथ्याः 'चंडालपाओसिय देखो पादोसिय (प्रोध ६६२)। पागन्भिय । वाला, घृष्ट, ढीठ (सूप १,५,१, | पाडए गंतु' (धर्मवि १३८ विपा १,८ पाओसिया देखो पाउसिआ (धर्म ३)। ५, २, १, १८)।
महा)। पांडविअ विदे] जला', पानी से गीला
| पागय वि [प्राकृत] १ स्वाभाविक, स्वभाव- पाडय वि[पातक] गिरानेवाला । स्त्री. डिआ (दे ६, २०)।
सिद्ध। २ प्रावित्तं की प्राचीन लोक-भाषाः (मृच्छ २४५)। पांडु देखो पंड (पव २४७)। "सुअ पुं
'सक्कया पागया चेव' (ठा ७-पत्र ३६३; पाडल पुं[पाटल] १ वर्ण-विशेष. श्वेत और [सुत] अभिनय का एक भेद (ठा ४,
विसे १४६६ टी; रयण ६४; सुपा १) । रक्त वर्ण, गुलाबी रंग। २ वि. श्वेत-रक्त ४-पत्र २८५)।
३ पुं. साधारण बुद्धिवाला मनुष्य, सामान्य वर्णवाला (पास)। ३ न. पाटलिका-पुष्प,
लोगः 'जेसिणामागोत्तं न पागता पएणवेहिति पाक देखो पाग (कप्प)।
गुलाब का फूल (गा ४६६; सुर ३, ५२ (सुज्ज १९), "किंतु महामइगम्मो दुरवगम्मो
कुमा)। ४ पाटला वृक्ष का पुष्प, पाढल का पाकम्म न [प्राकाम्य] योग की पाठ सिद्धियों पागयजणस्स' (चेइय २५६, सुर २, १३०)।
फूल (गा ३०)। में एक सिद्धि, 'पाकम्मगुणेण मुणी भुवि व्व 'भासा स्त्री [भाषा] प्राकृत भाषा (श्रा पाडल पु[दे] १ हंस, पक्षि-विशेष । २ वृषभ नीरे जलि व्व भुवि चरई' (कुप्र २७७)। २३) । वागरण न [व्याकरण] प्राकृत बैल । कमल (दे ६, ७६)। पाकार [प्राकार] किला, दुर्ग (उप पृ८४)।। भाषा का व्याकरण (विसे ३४५५)। पाडलसउण पुं[दे] हंस, पक्षि-विशेष (दे पाकिद (शौ) देखो पागय (प्रयौ २४ नाट- पागार [प्राकार] किला, दुर्ग (उवः सुर | ६, ४६)। वेणी ३८ पि ५३; ८२)। ३, ११४)।
पाडला स्त्री [पाटला] वृक्ष-विशेष, पाढल का पाखंड देखो पासंड (पि २६५)। पाजावञ्च पुं [प्राजापत्य] १ वनस्पति का पेड़, पाडरि (गा ४५६ सुर ३, ५२; सम पाग [पाक] १ पचन-क्रिया (ौपः उवा अधिष्ठाता देव । २ वनस्पति (ठा ५, १-
| १५२), 'चंपा य पाडलरक्खो जया य वसु
१५२), 'चपा य पाडला सुपा ३७४)। २ दैत्य-विशेष (गउड)। ३ पत्र २६२)।
पुज्जपत्थिवो होई' (पउम २०, ३८)। विपाक, परिणाम (धर्मसं ६६५)। ४ | पाटप (चूपै) देखो वाडव (षड्)। पाडलि स्त्री [पाटलि] ऊपर देखो (गा बलवान् दुश्मन (प्रावम)। सासण पुं पाठीण देखो पाढीण (पएह १, १
४६८)। उत्त, पुत्त न [पुत्र] नगर[शासन] इन्द्र, देव-पति (हे ४, २६५; पत्र ७)।
विशेष, पटना, जो आजकल बिहार प्रदेश गउड; पि २०२)। सासणी स्त्री [शासनी]
का प्रधान नगर है (हे २, १५०; महा: |पाड देखो फाड = पाट्यः ‘असिपत्तधगृहि इन्द्रजाल-विद्या (सून २, २, २७)।
पि २६२; चारु ३६)। पुत्त वि [पुत्र] | पाडंति' (सूअनि ७६)। पागइअ वि [प्राकृतिक] १ स्वाभाविक ।
पाटलिपुत्र-संबन्धी, पटना का (पब १११)। पाड सक [पातय् ] गिराना । पाडेइ (उव)। संड न [पण्ड] नगर-विशेष (विपा १, २ पृ. साधारण मनुष्यः प्राकृत लोक (पव ६१)। संक. पाडिअ, पाडिऊण (काप्र १९६;
७; सुपा ८३)। देखो पाडली । पागड सक [प्र+ कटय् ] प्रकट करना,
। कवकृ. पाडिज्जत ( उप पाडलिय वि [पाटलित] श्वेत-रक्त वर्णवाला खुला करना, व्यक्त करना । वकृ. पागडेमाण ३२० टी)।
किया हुअा (गउड)। (ठा ३, ४-पत्र १७१)।
पाड देखो पाडय = पाटका 'तो सो दिदृट्ठाणे पाडली देशो पाडल ( पृ ३६०)। "पुर पागड वि [प्रकट] व्यक्त, खुला (उत्त ३६, सय गो वेसपाडम्मि' (सुपा ५३०)। न [°पुर] पटना नगर (धमांव ८.) । वुत्त ४२, प्रौप; उव)।
पाडच्चर वि [दे] पासक्त चित्तवाला (द ६, न [पुत्र] पटना नगर ( षड्)। पागडण न [प्रकटन] १ प्रकट करना। २
३४)।
पाडव न [पाटव] पटुता, निपुणता (धम्म वि. प्रकट करनेवाला (धर्मसं ८२६)। पाडच्चर पुं [पाटञ्चर] चोर, तस्कर (पामः १० टी)। पागडिअ वि [प्रकटित] व्यक्त किया हुआ
पाडवण न [दे] पाद-पतन, पैर पर गिरना, (उच; औष)।
पाडण न [पाटन] विदारण (माव ६)। प्रणाम-विशेष (दे ६, १८)। ७४
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