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पयंपण-पयय
पाइअसद्दमहण्णवो पयंपण न [प्रजल्पन] कथन, उक्ति (उप पयट्टावअ वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति करानेवाला पयण । न [पचन, क] १ पाक, पकाना पृ २१७)। (कप्पू)।
पयणग) (ोप; कुमा) । २ पात्र-विशेष, पयंपिय वि [प्रकम्पित] अति कॉपा हुमा | पयट्टाविअ वि [प्रवर्तित प्रवृत्त किया हुआ,
पकाने का पात्र (सूअनि ८०; जीव ३) । (स ३७७)। किसी कार्य में लगाया हुआ (महा)।
साला स्त्री [शाला] एक-स्थान (बृह २)। पयंपिय वि[प्रजल्पित] १ कथित, उक्त । पयट्टिअ वि [दे. प्रवर्तित] ऊपर देखो (दे |
पयणु । वि [प्रतनु] १ कृश, पतला । २
पयणु सूक्ष्म, बारीक । प्रल्प, थोड़ा (स २ न. कथन, उक्ति । ३ बकवाद, व्यर्थ | ६, २६)।
२४६; सुर८, १६५; भग ३, ४, २; जल्पन (विपा १, ७)। पयट्रिवि [प्रवृत्त] प्रवृत्ति-युक्त (उत्त ४,
पउम ३०, ६६ से ११, ५६ गा ६८२ पयंपिर वि [प्रजल्पित] १ बोलनेवाला। २; सुख ४, २) ।
गउड)। २ वाचाट, बकवादी (सुर १६, ५८; सुपा पयट्ठाण देखो पइट्ठाण (काल; पि २२०)।
पयण्णय देखो पइण्णग (तंदु १)। ४१५; श्रा २७)। पयड सक [प्र + कटय] प्रकट करना,
पयत्त अक [प्र+ यत् ] प्रयत्न करना । पयंस सक [प्र + दर्शय] दिखलाना। व्यक्त करना । पयडइ, पयडेइ (सण, महा)।
पअत्तध (शौ) (पि ४७१)। पर्यसेंति (विसे ६३२)।
वकृ. पयडंत (सुपा १; गा ४०६; भवि)।
हेकृ. पयडित्तु (पि ५७७)। प्रयो. पयडापयंसण न [प्रदर्शन] दिखलाना (स ६१३) ।
पयत्त देखो पयट्ट - प्र + वृत (काल)। पयंसिअ वि [प्रदर्शित] दिखलाया हुआ
पयत्त पुं [प्रयत्न चेष्टा, उद्यम, उद्योग (सुपाः वइ (भवि)। पयड वि [प्रकट] १ व्यक्त, खुला (कुमा;
उवः सुर १, ६, २, १८२, ४, ८१)। (सुर १, १०१, १२, ३२)।
महा) । २ विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध; पयत्त वि [प्रदत्त, प्रत्त] १ दिया हुआ पयक्क देखो पाइक (........... )।
'विश्खामो विस्सुमो पयडो' (पान)। पयक्ख सक [प्रत्या + ख्या] प्रत्याख्यान
(भग)। २ अनुज्ञात, संमत (अनु ३) । पयडण न [प्रकटन] १ व्यक्त करना, खुला करना, प्रतिज्ञा करना। पयक्खेइ (विचार
| पयत्त देखो पयट्ट = प्रवृत्त (सुर २, १५६)
करना (सण) । २ वि. प्रकट करनेवालाः 'जे ७५५)।
| ३, २४८ से ३, २४०८, ३, गा ४३६)। पयक्खिण देखो पदक्खिण प्रदक्षिण (णाया
तुझ गुणा बहुनेहपयडणा' (धर्मवि ६६)। पयत्ताविअ वि [प्रवर्तित] प्रवृत्त किया हुआ १,१६)।
पयडावण न [प्रकटन] प्रकट कराना (भवि)। (काल)।। पयक्खिण देखो पदक्खिण% प्रदक्षिणम् । पयडाविय वि [प्रकटित प्रकट कराया हुआ पयत्थ पुं [पदाथ१५
पयत्थ पुं [पदार्थ] १ शब्द का प्रतिपाद्य, संकृ. पयक्खिणिऊण (सुर ८, १०५)। । (काल भवि)।
पद का अर्थ (विसे १००३, चेइन २७१) । पयडि देखो पगइ (पएण २३; पि २१६)।
२ तत्व (सम १०६; सुपा २०५) । ३ वस्तु, पयचिखणा देखो पदक्खिणा (उप १४२ टी
पयडि स्त्री [दे] मार्ग, रास्ताः सुर १४. ३०)।
चीज (पान)।
'जे पुण सम्मट्ठिी तेसि मणो चडणपयडीए' (सट्ठि
| पयन्न देखो पइण्ण = प्रकीर्ण (भवि)। पयग देखो पयय = पतग, पदक, पदग (राजः । १४२)।
पयन्ना देखो पइण्णा (उस १४२ टी)। पव १६४)। पयच्छ सक [प्र+ यम् ] देना, अर्पण पयडिय वि [प्रकटित] प्रकट किया हुआ
पयप्पण न [प्रकल्पन] कल्पना, विचार
(धर्मसं ३०७)। करना । पयच्छइ (महा) । संकृ. पयच्छिऊण (सुर ३, ४८; श्रा २)।
पयय देखो पायय = प्राकृत (हे १,६७ पयडिय वि[प्रपतित] गिरा हुअा (णाया (राज)।
गउड)। पयच्छण न [प्रदान] १ दान, अर्पण (सुर
१,८-पत्र १३३)। २, १५१) । २ वि. देनेवाला (सरण)। पयडीकय वि [प्रकटीकृत] प्रकट किया
पयय वि [प्रयत] प्रयत्न-शील, सतत प्रयत्न
करनेवाला (प्रौपः पउम ३, ६५; सुर १, ४, हुपा (महा)। पयट्ट अक [प्र+ वृत् ] प्रवृत्ति करना। । पयडीकर सक [प्रकटी + कृ] प्रकट करना ।
उव); 'इच्छिज न इच्छिज्ज व तहवि पयरो पयट्टइ (हे २, ३०, ४, ३४७; महा)। कृ. प्रयो. पयडीकरावेमि (महा)।
निमंतए साहू' (पुप्फ ४२६; पडि)। पयट्टिअव्व (सुपा १२६) । प्रयो. पयट्टावेह
पयडीभूअ) वि प्रिकटीभता जो प्रकट पयय पु [पतग, पदक, पदग] १ वान(स २२) संकृ. पयट्टाविउं (स ७१५)।
पयडीहूअ । हुआ हो (सुर ६, १८४; श्रा व्यन्तर देवों की एक जाति (ठा २, ३; परण पयट्ट वि [प्रवृत्त] १ जिसने प्रवृत्ति की हो १६; महा सण)।
१ इक)। २ पतग देवों का दक्षिण दिशा का वह (हे २, २६; महा)। २ चलितः ‘पयट्टयं पयड्ढणी स्त्री [दे] १ प्रतिहारी। २ प्राकृष्टि, इन्द्र (ठा २,३)। वह पु[पति पतग देवों चलियं' (पास)।
प्राकर्षण । ३ महिषी (दे ६, ७२)। का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३--पत्र पयट्टय वि [प्रवर्तक] प्रवृत्ति करनेवाला पयण देखो पवण (गा ७७७)। (पण्ह १, १)। पयण देखो पडण (विसे १८५६)।
|पयय न [दे] अनिश, निरन्तर (दे ६, ६)।
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