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पाइअसहमहण्णवो
पलविअ-पलिउंचणा
पलविअ । विप्रलपित] १ अनर्थक कहा पलाय पुं[दे] चोर, तस्कर (दे, ८)। पलासि स्त्री [दे] भल्ली, छोटा भाला, शस्त्रपलवित हुआ । २ न. अनर्थक भाषण (चंड;
पलाय देखो पलाइअ = पलायित (णाया १, विशेष (दे ६, १४)। पएह १, २)।
३; स १३१; उप पृ २५७: धण ४८)।
पलासिया स्त्री [दे. पलाशिका] त्वक्काष्ठिका, पलविर वि [प्रलपित] बकवादी (दे ७,
छाल की बनी हुई लकड़ी (सूत्र १, ४, पलायण न [पलायन] भागना (ोघ २६, पलस न [दे] १ कासि-फल । २ स्वेद,
सुर २, १४)।
| पलाह देखो पलास (संक्षि १६; पि २६२)। पसीना (दे ६, ७०)। पलायणया स्त्री. ऊपर देखो (चेक्ष्य ४४६) ।
पलि देखो परि (सूत्र १, ६, ११, २, ७. पलस (अप) न [पलाश पत्र, पत्ती (भवि) । पलायमाण देखो पलाय = परा + अय् ।
३६. उत्त २६, ३४. पि २५७)। पलस स्त्री है। मेवा, पूजा, भक्ति (दे | पलाल वि[प्रलाल प्रकृत लालावाला (अणुपतिनापतिबा पवस्था के कारण १४१)।
बालों का पकना, केशों की श्वेतता। २ बदन पलहि पुती [२] कपास (दे ६, ४: पानः पलाल न [पलाल तृण-विशेष, पुपाल (पराह
की झुरियाँ (हे १, २१२)। ३ कर्म, कमवज्जा १८६ हे २, १७४)। २, ३ पान प्राचा)। पीढय न [पीठक]
पुद्गल, 'जे केइ सत्ता पलियं चयंति' (प्राचा पलहिअ वि [दे] १ विषम, असम । २ न. पलाल का प्रासन (निचू १२) ।
१, ४, ३, १)। ४ घृणित अनुष्ठान; से आवृत जमीन का वास्तु (दे ६, १५)। पलालग वि [पलालक] पलाल-पुपाल का
आकुटे वा हए वा लुचिए वा पलियं पकथे' पलहिअअ वि [दे. उपलहृदय] मूर्ख, बना हुआ (पाचा २, २, ३, १४)। (ग्राचा १, ६, २, २)। ५ कर्म, काम पाषाण-हृदय (षड्)।
पलाव सक [नाशय ] भगाना, नष्ट करना। (प्राचा १,६,२,२)। ६ ताप । ७ पंक, पलहुअ वि [प्रलघुक] १ स्वल्प, थोड़ा । २ पलावइ (हे ४, ३१)।
कादा। ८ वि. शिथिल । वृद्ध, बूढ़ा (हे छोटा (से : १, ३३; गउड)।
पलाव पुं[प्लाव] पानी की बाढ़ (तंदु ५० | १,२१२)। १० पका हुअा, पक्व (धर्म २ पला देखो पलाय = परा + अय; जं जं टी)।
निचू १५)। ११ जरा-ग्रस्तः 'न हि दिज्जइ भणामि अयं सयलंपि बहि पलाइ तं तुज्झ'
पलाव पुं [प्रलाप] अनर्थक भाषण, बकवाद आहरणं पलियत्तयकरणहत्थस्स' (राज)। (प्रात्मानु २३), पलासि, पलामि (पि (महा)।
'ट्ठाण, ठाण न [ स्थान] कम-स्थान, ५६७)।
पलावण न [नाशन] नष्ट करना, भगाना कारखाना (प्राचा १, ६, २, २)। पलाअतानो पाय-परा+प्रय। (कुमा)।
पलिअ न [पल] चार कर्ष या तीन सौ बीस पलाइ
पलावि वि [प्रलापिन् ] बकवादी, 'असंबद्ध- - गुजा की नाप (तंदु २६)। पलाइअ) वि [पलायित १ भागा हुग्रा, पलाण
पलिअ देखो पल्ल = पल्य (पद १५८; भगः नट; 'पलाइए हलिए' (गा ३६०);
पलाविरणी एसा' (कुप्र २२२; संबोध ४७; 'रिउरणो सिन्नं जह पलाणं' (धर्मवि ५६; अभि ४६)।
जी २६, नव ६ २७)। ५१; पउम ५३, ८४: प्रोघ ४६७, उप १३६
| पलावि वि [प्लावित] डुबाया हुआ, पलिअ (अप) देखो पडिअ (पिंग)। टी; सुपा २२; ५०३; ती १५; सरा; महा)।
भिगाया हुआ (सुर १३, २०४७ कुप्र ६० पलिअंक ' [पर्यङ्क] पलंग, खाट (हे २, २ न. पलायन (दस ४, ३)। ६७, सण)।
६८; सम ३५; औप) । आसण न पलाण न [पलायन] भागना (सुपा ४६४)। पलाविअ वि [प्रलापित] अनर्थक घोषित [ आसन] प्रासन-विशेष (सुपा ६५५) । पलाणिअ वि [पलायनित] जिसने पलायन
करवाया हुअाः ‘मंछुडु कि दुच्चरिउ पलाविउ पलिका स्त्री पिर्या] पद्मासन, आसनकिया हो वह भागा हुआ, 'तेरावि आगच्छंतो सज्जण्जणहो नाउं लज्जाविउ (भवि)।
विशेष (ठा ५, १-पत्र ३००)। विन्नामो तो पलाणिो दूर' (सुपा ४६४)। पलावर विप्रलाप बकवाद करनवाला पलिउंच सक [परि + कुञ्च ]१ अपलाप पलात वि [प्रलात] गृहीत (चंड)।
'अहह असंबद्धपलाविरस्स बडुयस्स पेच्छ मह करना। २ ठगना। ३ छिपाना, गोपन पलाय अक [परा + अय ] भाग जाना, पुरो' (सुपा २०१), "दिव्धनाणीव जंपेइ,
करना । पलिउंचंति, पलिउंचयंति (उत्त २७, नासना। पलायइ, पलामसि (महा; पि एसो एवं पलाविरों (सुपा २७७)।
१३; सून १, १३, ४)। संकृ. पलिउंचिय ५६७) । भवि. पलाइस्सं (पि ५६७)। वकृ. पलास पुं[पलाश] १ वृक्ष-विशेष, किंशुक (प्राचा २, १, ११, १)। वकृ. पलिउंचमाण पलाअंत, पलायमाण (गा २६१; रणाया
का वृक्ष, ढाक (वज्जा १५२, गा ३११)। २. (माचा १, ७, ४, १, २, ५, २, १)। १८ पाक १८; उप पु २६)। संकृ. पलाइअ राक्षस (वज्जा १३०; गा ३११)। ३ पुंन. | पलिउंचण न [परिकुश्चन] माया, कपट (नाट; पि ५६७)। हेकृ. पलाइउं (प्राक पत्र, पत्ता (पात्र वज्जा १५२) । ४ भद्रशाल | (सून १, ६, ११)। १६; सुपा ४६४)। कृ. पलाइअव्य (पि वन का एक दिग्हस्ती कूट (ठा -पत्र ४३६ पलिउंचणा स्त्री [परिकुश्चना] १ सच्ची ५६७)। इक)।
बात को छिपाना । २ माया (ठा ४, १
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