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परूव-पलवण पाइअसहमहण्णवो
५६६ परूव सक [प्र + रूपय] प्रतिपादन करना । 'पुनलयाण परोहे रेहइ प्रावालपंतिव्व' (धर्मवि पलंबिअ वि [प्रलम्बित] लटका हुआ (कप्पा पत्वेइ, परूवति (मौप; कप्पा भग)। संकृ.
भविः स्वप्न १०)। परूवइत्ता (ठा ३, १)।
परोहड न [दे] घर का पिछला आँगन, घर पलंबिर विप्रलम्बित] लटकनेवाला, लटपरूवग वि [प्ररूपक] प्रतिपादक (उवः कुप्र
के पीछे का भाग (मोघ ४१७, पाम; गा कता (सुपा ११, सुर १, २४८)। १८१)। ६८५ अ वज्जा १०६; १०८)।
पलक्क विदे] लम्पट, 'इय विसयपलाको' परूवण न [प्ररूपण] प्रतिपादन (अण)। पल अक [ पल ] १ जीना । २ खाना । पलइ
(कुप्र ४२७ नाट)। परूवणा स्त्री [प्ररूपणा] ऊपर देखो (प्राचू (षड्) । देखो बल = बल । पल (अप) अक [पत् ] पड़ना, गिरना ।
पलक्ख पुं[प्लक्ष] बड़ का पेड़ (कुमाः पि
१३२)। परूविअ वि [प्ररूपित] १ प्रतिपादित, पलइ (पिंग) । वकृ. पलंत (पिंग)।
पलग न [पलक] फल-विशेष (प्राचा २, १, निरूपित (पएह २, १) । २ प्रकाशित; पल (अप) सक [प्र+कटय ] प्रकट करना। 'उत्तमकंचरणरयरणपरूविप्रभासुरभूसणभासुरि - पल (पिंग)।
पल अक [परा + अय् ] भागना; अंगा' (प्रजि २३)।
पलजण वि [प्ररञ्जन] रागी, अनुराग वाला: परेअ पुं[दे] पिशाच (दै ६, १२ पापः 'चोराण कामुयारण य
'अधम्मपलजण -' (णाया १, १८, प्रोप)। षड्)।
पामरपहियारण कुक्कुडो रडइ।।
पलट अक [परि + अस्] १ पलटना, परेण प्र[परेण] बाद, अनन्तर (महा)। रे पलह रमह वायह,
बदलना। २ सक. पलटाना, बदलाना। पलठुइ परेयम्मण देखो परिकम्मण (कप्प)।
वहह तणुइज्जए रयणी' (वज्जा (पिंग); 'कोहाइकारणेवि हु नो वयणसिरि परेवय न [दे] पाद-पतन (दे ६, १६)। १३४)।
पलट्टति' (संबोध १८)। संकृ. पलट्टि (अप) परेव्व वि [परेयुस्तन] परसों का, परसों | पल न [दे] स्वेद, पसीना (दे ६, १)। (पिंग) । देखो पल्लट्ट। होनेवाला (पिंड २४१)।
पल न [पल] १ एक बहुत छोटी तोल, चार पलत्त वि [प्रलपित] १ कथित, उक्त, प्रलापपरो' प्र[पर] उत्कृट, 'परोसंतेहिं तचेहि' तोला (ठा ३, १, सुपा ४३७, वज्जा ६८ युक्त (सुपा ११४० से ११, ७६) । २ न. (उवा)।
कुप्र ४१६) । २ मांस (कुप्र १८६)। प्रलाप, कथन (प्रौप)। परोइय देखो परुइय (उप ७६८ टी)। पलंघ सक [प्र + लङ्घ ] अतिक्रमण पलय पुं [प्रलय] १ युगान्त, कल्पान्त-काल । परोक्ख न [परोक्ष] १ प्रत्यक्ष-भिन्न प्रमाण, । करना । पलंधेज्जा (प्रौप)।
२ जगत् का अपने कारण में लय (से २, 'पञ्चक्खपरोक्खाई दुन्नेव जो पमाणाई' (सुर पलंघण न [प्रलङ्घन] उल्लंघन (प्रौप)। २. पउम ७२,३१)। ३ विनाश; 'जायवजाइ१२, ६० एंदि) । २ वि. परोक्ष-प्रमाण का पलंड j [पलगण्ड] राज, चूना पोतने का
पलए' (ती ३)। ४ चेष्टा-क्षय । ५ छिपना विषय, अप्रत्यक्ष (सुपा ६४७; हे ४,४१८)। काम करनेवाला कारीगर; 'पलगंडे पलंडो'
(हे १, १८७)। क [क प्रलय-काल ३ न. पीछे, आँखों की प्रोट में मम परोक्खे (प्राकृ ३०)।
का सूर्य (पउम ७२,३१) । 'घण पुं[°धन] कि तए अणुभूयं ?' (महा)। पलंडु पुंपलाण्डु] प्याज ( उत्त ३६,
प्रलय का मेघ (सरण)। लण पुं [निल] परोट्ट देखो पलोट्ट= पर्यस्त (षड् )।
प्रलय काल की आग (सण)। परोप्पर । वि [परस्पर आपस में (हे १,
पलंब अक [प्र+लम्ब ] लटकना । पलंबए पलल न [पलल] १ तिल-चूर्ण, तिल-झोद परोप्फर ६२ कुमाः कप्पू, षड्)।
(पि ४५७) । वकृ. पलंबमाण (प्रौप; महा)। (पएह २, ५; पिंड १६५) । २ मांस (कुप्र परोवआर पुं [परोपकार] दूसरे की भलाई । पलंब वि [प्रलम्ब] १ लटकनेवाला, लटकता
१८७)। (नाट-मृच्छ १९८)। परोवयारि वि [ परोपकारिन् ] दूसरे की
(पएह १, ४; राय)। २ लम्बा, दीर्घ (से पललिअ न [प्रललित] १ प्रक्रीडित (गाया भलाई करनेवाला (पउम ५०, १)।
१२, ५६; कुमा)। ३ पुं. ग्रह-विशेष, एक १,१-पत्र ६२)। २ अंग-विन्यास (परह
महाग्रह (ठा २, ३)। ४ मुहूर्त-विशेष, अहो- २, ४)। परोवर देखो परोप्पर (प्राकृ २६; ३०)।
रात्र का पाठवाँ मुहत्तं (सम ५१)। ५ न. पलव तक [प्र+ लप्] प्रलाप करना, बकपरोविय देखो परुइय (उप ७२८ टीः स
माभरण-विशेष (प्रौप)। ६ एक तरह का वाद करना। पलवदि (शौ) (नाट–वेणी ४८०)।
धान का कोठा (बृह २) । ७ मूल (कस; १७)। वकृ. पलवंत, पलवमाण (काल; परोह अक [प्र + रुह ] १ उत्पन्न होना।।
बृह)। ८ रुचक पर्वत का एक शिखर । सुर २, १२५; सुपा २५०; ६४१)। २ बढ़ना । परोहदि (शौ) (नाट)।
(ठा -पत्र ४३६)। ६ पुंन. फल (बृह पलवण न [प्लवन] उछलना, उच्छलन; परोह पुं [प्ररोह] १ उत्पत्ति (कुमा)।२ १.ठा ४,१-पत्र १०५) १० देव-विमान- 'संपाइमवाउवहो पलवरण आऊवघामो य' वृद्धि । ३ अंकुर, बीजोभेद (हे १, ४४); विशेष (सम ३८)।
(ोघ ३४८)।
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