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५४४ पाइअसहमहण्णवो
पयर-पया पयर सक [स्मृ] स्मरण करना । पयरेइ (हे ३, ३)। वकृ. पयलेमाण (प्राचा २, २, पयल्ल प्रक [प्र+ सु] पसरना, फैलना । ४, ७४) । वकृ. पयरंत (कुमा) । ३, ३)।
पयल्लइ (हे ४, ७७ प्राकृ ७६)। पयर अक[प्र + चर् ] प्रचार होना, 'रना
पयल देखो पयड%=प्र + कटय् । पप्रल पयल्ल पक [क] १ शिथिलता करना, ढोला सूयारा भरिणया जं लोए पयरइ तं सव्वं सब्वे
(पिंग) । संकृ. पअलि (अप) (पिंग)। होना । २ लटकना । पयल्लइ (हे ४, ७०)। रंधह (श्रावक ७३ टी)।
पयल देखो पयड = प्रकट (पिंग)। पयल्ल वि [प्रसृत] फैला हुआ (पाप)। पयर अक [प्र+चर 1 १ फैलना । २ पयल (अप) सक [प्र+ चालय ] १ पयल्ल पुं [प्रकल्य] महाग्रह-विशेष (सुज्ज व्यापृत होना, काम में लगना। पयरह (यदि चलाना । २ गिराना। पप्रल (पिंग)। २०)।
पयल वि [प्रचल] चलायमान, चलनेवाला पयल्लिर वि [प्रसृमर] फैलनेवाला (कुमा)। पयर पु[प्रकर] समूह, सार्थ, जत्थाः 'पयरो (पउम १००, ६) ।
पयल्लिर वि [शैथिल्यकृत् ] शिथिल होनेपिबीलियाणं भीमपि भुवंगमं डसई' (स ४२१;
पयल पुं[दे] नीड़, पक्षि-गृह (दे ६, ७)। वाला, ढोला होनेवाला (कुमा ६, ४३) । पान कप्प)।
पयल। श्री [दे. प्रचला] १ निद्रा, नोंद पयल्लिर वि [लम्बनकृत् लटकनेवाला (कुमा पयर [प्रदर] १ योनि का रोग-विशेष । २
पयला (दे ६, ६)। २ निद्रा-विशेष, बैठे- ६ ४३)।
बैठे और खड़े खड़े जो नोंद पाती है वह । पयव सक [प्र+ तप, तापय ] तपाना, विदारण, भंग। ३ शर, वारण (दे ६, १४) ।
३ जिसके उदय से बैठे-बैठे और खड़े-खड़े | गरम करना । पनदेज्ज (से ४, २८) । वकृ. पयर देखो पइर = वप्; कोडुबिनो य खित्ते
नींद आती है वह कर्म (सम १५; कम्म १, पअविजंत (से २, २४)। धन्नं पयरेई' (सुपा ३६०)।
११)। पयला स्त्री [दे. प्रचला] १ कर्मः पयव सक [पा] पीना, पान करना। कवकृ. पयर = देखो पयार = प्रकार (हे १, ६८ विशेष, जिसके उदय से चलते-चलते निद्रा 'धीरनं समुहल घणपअविज्जतअं' (से २,
पाती है वह कर्म। २ चलते-चलते पाने- २४)। पयर देखो पयार = प्रचार (हे १, ६८)। वाली नोंद (कम्म १, १ ठा; निचू ११)। पयवई स्त्री [दे] सेना, लश्कर (दे ६, १६)। पयर न [प्रतर] १ पत्रक, पत्रा, पतराः पयला अक[प्रचलाय् । निद्रा लेना, नींद पयवि स्त्री [पदवि] देखो पयवी (चेइय 'करणगपयरलंबमारणमुत्तासमुज्जलं ........... करना । पयलाइ (पान) । हेकृ. पवलाइत्तए ८७२)। वरविमारणपुंडरीयं' (कप्प; जीव ३; पाचू (कस)।
पयविअ वि [प्रतप्त, प्रतापित गरम किया १)। २ वृत्त पत्रकार प्राभूषण-विशेष, एक पयलाइअन [प्रचलयित १नींद, निद्रा। हमा, तपाया हया (गा १८५ से २,२५) । प्रकार का गहना (प्रौपः णाया १, १)। २ पूर्णन, नींद के कारण बैठे-बैठे सिर का पयवी स्त्री [पदवी] १ मार्ग, रास्ता (पाय; ३ गणित-विशेष, सूची से गुणो हुई सूची डोलना (से १२, ४२)।
गा १०७सुपा ३७८)। २ बिरुद, पदवी (कम्म ५, १७; जीवस ६२; १०२)। ४ पयलाइया स्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले जन्तु भेद-विशेष, बाँस आदि की तरह पदार्थ का की एक जाति (सून २, ३, २५) । पयह सक [प्र + हा त्याग करना, छोड़ना। पृथग्भाव (भास ७) । तप पुन [तपस ] पयलाय देखो पयला=प्रचलाय। पयलायइ पयहे, पयहिज, पयहेज्ज (सूम १, १०, १५; तप-विशेषः वट्ट न [वृत्त] संस्थान-विशेष (जीव ३) । वकृ. पयलायंत (राज)।
१, २, २, ११, १, २, ३, ६; उत्त ४, १२; पयलाय पुं [दे] १ हर, महादेव (दे ६, स १३६)। संकृ. पयहिय (पउम ६३, पयर न [प्रतर] गणित-विशेष, श्रेणी से गुनी ७२)। २ सर्प, साप (दे ६, ७२, षड्)। १९ गच्छ १, २४)। कृ. पयहियव्य (स हुई श्रेणी (अणु १७३) ।
पयलायण न [प्रचलायन] देखो पयलाइ ७१४)। पयरण न [प्रकरण] १ प्रस्ताव, प्रसंग । २
(बृह ३)।
पहिण देखो पदक्षिण = प्रदक्षिण (भवि)। एकार्थ-प्रतिपादक ग्रंथ । ३ एकार्थ-प्रतिपादक पयलायभत्त पुं[दे] मयूर, मोर (दे ६,
पया सक [प्र + जनय ] प्रसव करना, जन्म ग्रंथांशः 'जुम्हदम्हपयरणं' (हे १, २४६) ।
देना । पयामि (विपा १, ७)। पयाएज्जासि पयलिअ देखो पयडिअ (पिंगः पि २३८)। पयरण न [प्रतरण ] प्रथम दातव्य भिक्षा
(विपा १,७)। भवि. पयाहिति, पयाहिति, पयलिय वि [प्रचलित] १ स्खलित, गिरा (राज)।
पयाहिसि (कप्पः पि ७६; कप्प)। हुआ (रायः आउ) । २ हिला हुआ (पउम पयरिस देखो पयंस । वकृ. पयरिसंत (पउम
पया सक [प्र + या] प्रयाण करना, प्रस्थान ६८, ७३ णाया १, ८ कप्पः प्रौप)। पयलिय वि [प्रदलित] भांगा हुआ, तोड़ा
। करना। पयाइ (उत्त १३, २४)। पयरिस देखो पगरिस (महा)। हुआ (कप्प)।
पया स्त्री [दे] चुल्ली, चुल्हा (राज)। पयल अक [प्र+चल्] १ चलना। २ पयले सक [प्र= चालय] चलायमान करना, पया स्त्री. ब. [प्रजा] १ वशवी मनुष्य, स्खलित होना। पयलेज्ज (पाचा २, २, | अस्थिर करना । पयलेंति (दसचू १, १७)। रैयतः 'जह य पयाण नरिंदो' (उवः विपा
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