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पाइअसहमहण्णवो
परिभाइय-परिमहिय माण (राज)। संकृ. परिभाइत्ता, परि- परिभुंजण न [परिभोजन] परिभोग (उप परिमंथिअ विपरिमथित] अत्यन्त आलोभायइत्ता (कप्प; प्रौप)। हेकृ. परिभाएउं १३४ टी।
डित (सम्मत्त २२६)। (पि ५७३)।
परिभंजणया स्त्री [परिभोजना] ऊपर देखो परिमंद वि [परिमन्द मन्द, अशक्त (सुर परिभाइय वि [परिभाजित] विभक्त किया । (सम ४४)।
४, २४०)। हुप्रा (प्राचा २, २, ३, २)। परिभुत्त वि [परिभुक्त] जिसका परिभोग
परिमग्ग सक [परि + मार्गय ] १ अन्वेपरिभायंत देखो परिभाअ। किया गया हो वह (सुपा ३००)।
षण करना, खोजना। २ मांगना, प्रार्थना परिभायण न [परिभाजन] बँटवा देना | परिभुत्त । वि [परिवृत] वेष्टित, परिकरित, |
करना। वकृ. परिमग्गमाण (नाट-विक्र (पिंड १६३)। परिभुय लपेटा हुआ, घेरा हुआ (पाचा २,
३०)। संकृ. परिमग्गेउं (महा)। परिभाव राक परि + भावय ] १ पर्या- ११, ३, २, ११, १६)।
परिमग्गि वि [परिमार्गिन् खोज करनेवाला लोचन करना । २ उन्नत करना । परिभावइ
परिभूअ वि [परिभूत] अभिभूत, तिरस्कृत (सूम २, ७, २, सुर १६, १२६; चेइय
(गा २६१)। (महा)। संकृ. परिभाविऊण (महा)।
परिमज्जिर वि [परिमज्जित] डूबनेवाला कृ. परिभावणीय (राज)। ७१४महा)।
(सुपा है)। परिभावइत्त वि [परिभावयित] प्रभावक, | परिभोअ देखो परिभोग (अभि १११)।
परिमट्ट वि[परिमृष्ट] १ घिसा हुआ (से उन्नति-कर्ता (ठा ४,४-पत्र २६५)। परिभोइ वि [परिभोगिन] परिभोग करने.
६, २, ८, ४३)। २ प्रास्फालितः 'परिमट्ठपरिभावि वि [परिभाविन] परिवभ करने- बाला (पि ४०५; नाट-शकु ३५)।
मेरुसिहरो' (से ४, ३७) । ३ माजित, शोधित वाला (अभि ७१)।
परिभोग पुं [परिभोग] १ बारबार भोग । (कप्प)। परिभास सक [परि + भाष्] १ प्रति(ठा ५, ३ टी; आव ६)। २ जिसका बारः |
परिमद सक [परि + मर्दय 1 मर्दन करना । पादन करना, कहना। २ निन्दा करना। परिबार भोग किया जाय वह वस्त्र आदि (ौप)।
वकृ. परिमदयंत (सुर १२, १७२)। भासइ, परिभासंति, परिभासेइ, परिभासए
३ जिसका एक ही बार भोग किया जाय(उत्त १८, २०; सूत्र १, ३, ३, ८, २,
परिमद्दण न [परिमर्दन] मर्दन, मालिश जो एक ही बार काम में लाया जाया वह७, ३६, विसे १४४३)। वकृ. परिभास
(कप्प; प्रौप)।
आहार, पान आदि (उवा)। ४ बाह्य वस्तु | माग (पउम ५३, ६७)।
परिमहा स्त्री [परिमर्दा] संबाधन, दबाना,
का भोग (प्राव ६)। ५ प्रासेवन (पएह १, परिभासा स्त्री [परिभाषा] १ संकेत (संबोध |
पैचप्पी-पैर दबाना आदि (निचू ३)। ५८ भास १६)। २ तिरस्कार । ३ चूणि, | परिभोग
परिमन्न सक [परि + मन्] आदर करना। टीका-विशेष (राज)। परिभोत्तव्य देखो परिभुज।
परिमन्नइ (भवि)। परिभासि वि [परिभापिन् परिभव-कर्ता, परिभोत्तु
परिमल सक [परि + मल् , मृद्] १
घिसना। २ मदन करना; 'जो मरणयालि परिमइल सक [परि + मृज ] मार्जन करना 'राइणियपरिभासो' (सम ३७)।
(संक्षि ३५)। परिभासिय वि [परिभाषित प्रतिपादित
परिमलइ हत्थु (कुप्र ४५२),
'रणलिणीसु भमसि परिमल सि (सूअनि ८८ भास २१)।
परिमउअ वि [परिमृदुक १ विशेष कोमल। २ अत्यन्त सुकर, सरल (धर्मसं ७६१;
सत्तलं मालईपि यो मुअसि । परिमिंद सक [परि + भिद्] भेदन करना। ७६२) । स्त्री. उई (विसे ११६६)।
तरलत्तणं तुह अहो महुअर कवकृ. परिभिजमाण (उप पृ ६७)। परिमउलिअ वि [परिमुकुलित] चारों ओर
जइ पाडला हरइ ।' परिभीय वि [परिभीत] डरा हुआ (उव)। से संकुचित (सण)।
(गा ६१६)। परिभुंज सक [परि + भुञ्] १ खाना, परिमंडण न [परिमण्डन] अलंकरण, विभूषा
| परिमल पुं[परिमल] १ कुंकुम-चन्दनादि का भोजन करना । सेवन करना, सेवना। ३
मर्दन (से १,६४)। २ सुगन्ध (कुमाः पात्र)। बारबार उपभोग में लेना । कर्म. परि जिज्जइ परिमंडल वि [परिमण्डल] वृत्त, गोलाकार |
परिमलण न [परिमलन] १ परिमर्दन । २ परिभुज्जइ (पि ५४६; गच्छ २, ५१)। (सूत्र २, १, १५; उत्त ३६, २२; स ३१२;
विचार (गा ४२८; गउड)। वकृ. परिभुजंत, परि जमाण (निचू १; | पान औपपरण १; ठा १, १)। परिमलिअ वि [परिमलित, परिमृदित] णाया १, १; कप्प)। कवकृ. परिभुज्जमाण परिमंडिय वि [परिमण्डित] विभूषित, जिसका मदन किया गया हो वह (गा ६३७, (प्रौपः उप पृ ६७ रणाया १,१-पत्र ३७)। सुशोभित (कप्पः प्रौपः सुर ३, १२)। से ७, ६२, महा; वज्जा ११८)। हेकृ. परिभोत्तु (दस ५, १) । कृ. परिभोग, परिमंथर वि [परिमन्थर] मन्द, धीमा परिमहिय वि [परिमहित] पूजित (पउम परिभोत्तव्व (पिंड ३४; कस)। । (गउड; स ७१६)।
परिमण्डन
(जत
ज्जा
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