________________
५४६
एस
["तीर्थिक] भिन्न दर्शनवाला (भर) 9 [देश ] विदेश, भिन्न, अन्य देश (भवि ) । "ओ [तस् ] १ बाद में, परली - दूसरी तरफ 'अडवीए परों" (महा) २ भित्र में, इतर में (कुमा) । ३ इतर से, अन्य से ( सूत्र १, १२) गणि[गणीय] भिन्न गरण से संबन्ध रखनेवाला । स्त्री. 'च्चिया (निप्र) गरिन [गर्दा ध्यान ] इतर की निन्दा का विचार ( श्राउ)। घाय [] दूसरे को प्राघात पहुँचाना । २ पुंन. कर्म-विशेष, जिसके उदय से जीव अन्य बलवानों की भी दृष्टि में श्रजेय समझा जाता है वह कर्म 'परघा उदया पाणी परोसि बती हो बुद्धरियों' (कम्म १.४४) । 'चित्तष्णु व [चित्तज्ञ ] अन्य के मन के भाव को जाननेवाला ( उप १७६ टी) । "च्छंद, छंद पुं ["च्छन्द] १ पर का अभिप्राय अन्य का आशय (ठा ४, ४ भग २५, ७) । २ पराधीन, परतन्त्र ( राज पात्र) । 'जाणुअवि [ज्ञ] १ पर को जाननेवाला । २ प्रकृट जानकार ( प्राकृ १८ ) | '[2] परोपकार (राज)। 'ट्ठा श्री [[]] दूसरे के लिए ' पराए' (भाषा)। "विभाण ["निन्दाध्यान] की निन्दाका चिन (भाउ णुअ देखो "जाणु (प्राकृ १८) तं वि ["तन्त्र ] पराधीन, परायत्त (सुपा २३३ ) । तित्थिअ देखो "स्थिय (५) तीर न ["तीर] सामनेवाला किनारा (पास)। त [[]]]२ वैशेषिक
1
दर्शन में प्रसिद्ध गुण विशेष ( विसे २४६१) । "त न [] १ जन्मान्तर में, परलोक में ( सुपा ५०८ ) । २ न. जन्मान्तर 'ते इपि परते मराई वंति नियमेल' (सुपा ३२१), 'इह लोए चिय दीसइ सग्गो नरम्रो य कि परत्तेण (वजा १३८) । त्थ अ [] जन्मान्तर में, 'इहं परत्थावि य जं विरुद्धं न किजए तंपि सया निसिद्ध' (सत्त ३७ सुर १४. ३३ । देखो 'टू (मुर ४, ७३) । 'त्थी स्त्री ['स्त्री] परकीय स्त्री (प्रासू १५५) दार न ["दार] परकीय श्री (पडि); 'जो वजइ परदारं सो सेवइ नो कयाइ
Jain Education International
पाइअसहमष्णवो
।
भव पुं [भव ]
परवार' (सुपा ३६९) द गहिया बेसाव हो परदार' (गुपा १८० ) । दारि वि ["दारिन ] परस्त्री- लम्पट 'ता एस वसुमईए करण परदारियाए श्रायाश्रो' (सुर ६० १०२ ) । पक्ख नि ["पक्ष] वैधर्मिक, भिन्न धर्म का अनुयायी (द्र १७) । परिवाइय वि [ परिवादिक] इतर के दोषों को बोलनेवाला, पर- निन्दक (श्रौप ) । परिवाय["परिवाद] १ पर के पुछदोषों का त्रिक वचन (श्रीप कप २ पर-निन्दा, इतर के दीपों का परिवर्तन (ठा १, ४, ४) । ३ अन्य के सद्गुणों का अपना (पं)। परिवाय["परिपात]] [["व्यार] [१] सान्द्रादक २५. । पुं. अन्य का पातन, दोषोंद्घाटन द्वारा दूसरे को वस्त्र, कपड़ा (श्रा २३) । 'वाय वि [वा ] गिराना ( भग १२, ५) । पुटु देखो उट्ठ १ प्रकृष्ट वहन करनेवाला । २ पुं. श्रेष्ठ तन्तु( पण १७ स ४१९ ) वाय, उत्तम जुलाहा । ३ महान् पवन (श्रा आगामी जन्म (श्रीप प १ १ ) भवि २३) [उपागस् ] पति बि] [भविक] धागामी जन्म से संबन्ध बड़ा अपराधी, गुरुतर अपराधी (श्रा २३) । रखनेवाला (६) भाग वाय वि [ व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला [भाग] १ श्रेष्ठ अंश । २ अन्य का हिस्सा (श्री २३) । वाय वि [बाक] १ जहाँ पर ३ अत्यन्त उत्कर्ष (उप ६७ ) । महेला प्रकृष्ट बक-समूह हो वह स्थान । २ न. मत्स्य[महेला ] १ उत्तम स्त्री । २ परकीय परिपूर्ण सरोवर (वा २३) वाय वि स्त्री ( सुपा ४७० ) । 'यत्त देखो (यत्त [ व्याय] १ श्रेष्ठ वायुवाला । २ जहाँ पर पक्षियों का विशेष श्रागमन होता हो वह । परत्तो पर (पास) डोअ, "लोग ["लोक] १ इतर जन स्वजन से भिन्न (उप ३ पुं. अनुकूल पवन से चलता जहाज । ४ ६८६ टी) । २ जन्मान्तर ( परह १ २; सुन्दर घर ५ वनोद्देश, मन-प्रदेश (भा विसे १९५१ महाः प्रासू ७५; सरण) । वस २३) बाव["बा] जहाँ पानी वि [" वश ] पराधीन, परतन्त्र (कुमाः सुपा का प्रकृष्ट आगमन हो वह । २ न. जलधि२३७) । चाइ [वादिन] इतर दा मुख, समुद्र का मुँह निक (बीप) बाय [बाद] १ इतर दर्शन, भित्र मत (और) २ वादी (आ २०)। [व]
।
।
.
सुजन । २ वि श्रेष्ठ वाणीवाला (श्रा २३) । "वाय वि ["वाज ] १ श्रेष्ठ गतिवाला । २ पुं. श्रेष्ठ अश्व ( श्रा २३) । वाय वि [शवाय ] जानकार, ज्ञानी (श्रा २३) । 'वाय वि [पाक] १ सुन्दर रसोई बनानेवाला । २ पुं. रसोइया ( श्रा २३) । वाय
३ पुं. महासमुद्र, महासागर (या १५) बाय नि ["व्याज] अन्य के पास विशेष गमन करनेवाला । २ प्रार्थनारायण ( वा २१) । "बाब वि [पय] १ सय हीन-भाग्य २ नित्यदरिख (२३) वा वि ["बाप] १ प्रकृष्ट वपनवाला । २ पुं. कृषक (श्री २३) । "वाय ["पाप] १ मा २ करनेवाला (श्रा २३) । 'वाय पुं [पाक ] १ कुम्भकार, कुम्हार । २ मुक्त जीव। ३ पहली तीन नरक-भूमि (२३) वाय वि [पग] वृक्ष-रहित वृति (भा २१) बा [ बाजू] शत्रु नाशक (भा २३) बाय [पाद] महान
3
[पात] १ जुग्राड़ी, जुए का खेलाड़ी । २ अशुभ समय ( वा २३ ) । वाय [व्याद] ब्राह्मण, विप्र ( श्र २३) । वाय [वाच] धनी जुलाहा पाउनु
For Personal & Private Use Only
पर
( २३ ) । वायवि ["व्रात] १ प्रकृष्ट समूहवाला । २ न सुभिक्ष समय का धान्य ( श्रा २३) । वाय पुं ["वात] ग्रीष्म समय का जनचिट (वा २३) वाय [व्याच] पूतं, उग (था २३) वायर [पाय ] धनीतिवाला (वा २१) बाब वि [ "बाक ] वेदन, वेद (२३) । 'वाय वि ["पांतृ] १ दयालु, कारुणिक । २ खूब पान करनेवाला । ३ खूब सूखनेवाला । ४ पुं. पावृट् काल का यवास वृक्ष । ५ मद्य व्यसनी ( श्रा २३) । वाय वि [बाद] सुस्थिर (श्रI २३ ) । वायव
www.jainelibrary.org