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पयाइ-पर
पाइअसद्दमहण्णवो १,१)। २ लोक, जन-समूह (सिरि ४२ । १, २, कप्प; रणाया १, १-पत्र ३३);
८३३ टी; पि ३६७)। कृ. पयासणिज्ज, पंचा ७, ३७)। ३ जंतु-समूह; "निविएण- ‘पयाया पुत्तं (वसु)।
पयासियव्य (उप ५६७ टी; उप पृ ५५) । चारी अरए पयासु' (प्राचा; सून १, ५, २, पयाय देखो पयाव = प्रताप (गा ३२६ से पयास देखो पगास = प्रकाश (पान; कुमा)। ६)। ४ संतान वाली स्त्री निविद नंदि अरए
| पयास पुं[प्रयास] प्रयत्न, उद्यम (चेइय पयासु अमोहदंसी' (प्राचाः सून १, १०, पयार सक [प्र+चारय् ] प्रचार करना ।
२६०)। १५)। ५ संतान, संतति (सिरि ४२)। पयारइ (सण) । संकृ. पयारिवि (अप) पयास (अप) नीचे देखो (भवि)। 'णंद पुं [ नन्द] एक कुलकर पुरुष का (सण)।
पयासग वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला नाम (पउम ३, ५३)। 'नाह पुं ['नाथ] पयार सक[प्र + तारय् ] प्रतारण करना,
(सं ७८)। राजा, नरेश (सुपा ५७५)। पाल पुं [पाल] ठगना । पयारइ, पयारसि (सण)।
पयासण न [प्रकाशन] १ प्रकाश-करण एक जैन मुनि जो पाँचवें बलदेव के पूर्वजन्म | पयार पुं [प्रकार] १ भेद, किस्म । २ ढंग, (प्राचा: सुपा ४१६)। २ वि. प्रकाशक, में गुरू थे (पउम २०, १९२)। वइ पुं रीति, तरह (हे १, ६८; कुमा)।
प्रकाश करनेवाला; 'परमत्थपयासणं वीर' [पति] १ ब्रह्मा, विधाता (पाम; सुपा पयार पुं[प्राकार] किला, दुर्ग (पउम ३०, (पुप्फ १)। ३०५) । २ प्रथम वासुदेव के पिता का नाम । ४६.)।
पयासय देखो पयासग (विसे ११३०; सं (पउम २०,१८२; सम १५२)। ३ नक्षत्र- पयार पुं [प्रचार] १ संचार, संचरण (सुपा १; पव ८६)। देव विशेष, रोहिणी-नक्षत्र का अधिष्ठायक
२४)। २ प्रसार, फैलाव (हे १,६८)। पयासि वि [प्रकाशिन] प्रकाश करनेवाला देव (ठा २, ३-पत्र ७७; सुज्ज १०, १२)।
पयार पुं[प्रचार] १ प्रकर्ष-प्राप्ति (दसनि १, (सण हम्मीर १४) । ४ दक्ष, कश्यप आदि ऋषि । ५ राजा, नरेश ।
४१)। २ आचरण, प्राचार (दसनि १, पयासिय देखो पगासिय (भवि)। ६ सूर्य, रवि । ७ वह्नि, अग्नि । ८ त्वष्टा । १३५)।
पयासिर वि [प्रकाशित] प्रकाश करनेवाला ६ पिता, जनक । १० कोट-विशेष । ११
पयारण न [प्रतारण वञ्चना, ठगाई (सुर (भवि)। जामाता (हे १, १७७ १८०)। १२ अहो१२,६१)।
पगार देखो पयास प्र+ काशय् । रात्र का उन्नीसवाँ मुहूर्त (सुज १०, १३)।
पयारिअ वि [प्रतारित ठगा हुग्रा. वञ्चित पयाहिण देखो पदक्खिण - प्रदक्षिण (उवा, पयाइ पुं [पदाति प्यादा, पाँव से (पैदल) (पाप; सुर ४, १५५)।
ग्रोपः भवि पि ६५)। चलनेवाला सैनिक (हे २, १३८ षड् ; कुमाः
पयाल पुं[पाताल] भगवान् अनन्तनाथजी का पयाहिण देखो पदक्खिण = प्रदक्षिणय । महा)।
शासन-यक्षः 'छम्मुह पयाल किन्नर' (संति ८)। पयाहिणइ (भवि)। पयाहिणंति (कुप्र २६३)। पयाग पुंन [प्रयाग तीर्थ-विशेष, जहाँ गंगा और यमुना का संगम है (पउम ८२, ८१; पयाव सक [प्र+तापय ] तपाना, गरम पयाहिणा देखो पदक्षिणा (सुपा ४७)।
पय्यवत्थाण ( करना। वकृ. पयावेमाण (पि ५५२)। हे १.१७७)।
न[पर्यवस्थान] प्रकृति हेकृ. पयावित्तए (कप्प)।
में अवस्थान ( पयाण न [प्रदान] दान, वितरण (उवा; उप
४८)। ५६७ टी; सुर ४, २१०; सुपा ४६२)।
पर सक [ भ्रम् । भ्रमण करना, घूमना । पयाव पुं[प्रताप] १ तेज, प्रखरता (कुमाः
परइ (हे ४, १६१; कुमा)। पयाण न [प्रतान] विस्तार (भग १६, ६)।
सण)। २ प्रकृष्ट ताप, प्रखर ऊष्मा (पव ४)।
पर देखो प= प्र (तंदु ४ । पयाण न [प्रयाण] प्रस्थान, गमन (णाया | पयावण न [पाचन] पकवाना, पाक कराना
पर वि [पर] १ अ-प, भिन्न, इतर (गा १,३; पण्ह २, १७ पउम ५४, २८ महा)। (पएह १, १ श्रा८)।
३८४; महा; प्रामु १५)। २ तत्पर, पयाम देखो पकाम (स ६५६)। पयावण न [प्रतापन] १ गरम करना, तपाना
तल्लीनः ‘कोहलपरा' (महा: कुमा)। ३ पयाम न [दे] अनुपूर्व, क्रमानुसार (दै ६, (ोघ १८० भाः पिंड ३४ प्राचा)। २ अग्नि
श्रेष्ठ, उत्तम, प्रधान (पाचा: रयण १५)। पाय)। (कुप्र ३८६)।
४ प्रकर्ष प्राप्त, प्रकृ (पाचाः श्रा २३)। पयाय देखो पयाग (कुमा)।
पयावि वि [प्रतापिन्] १ प्रताप-शाली। २ ५ उत्तरवर्ती, बाद का परलोग-(महा)। पयाय वि [प्रयात] जिसने प्रयाण किया। पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ६ दूरवर्ती (सूम १, ८; निचू १)। ७ हो वह (उप २११ टी महा, प्रौप)।
अनात्मीय, अस्वीय (उत्त १; निचू २)। पयाय वि [प्रजात] उत्पन्न, संजात; 'पयाय- पयास सक [प्र + काशय् ] १ व्यक्त पुं. शत्रु, दुश्मन, रिपु (सुर १२, ६२, कुमाः साला विडिमा' (दस ७, ३१)।
करना। २ चमकाना। ३ प्रसिद्ध करना। प्रासू ६) । न. केवल, फक्त (कुमाः भवि)। पयाय वि [प्रजात, प्रजनित प्रसूत, जिसने पयासेइ (हे ४, ४५)। वकृ. पयासंत, उट्ट वि [पुष्ट] अन्य से पालित। २ पुं. जन्म दिया हो वह 'दारगं पयाया' (विपा १, पयासेंत, पयासअंत (सण गा ४०३, उप कोकिल पक्षी (हे १, १७६)। उत्थिय वि
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