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पाइअसहमहण्णवो
पमज्जण-पमिलाय उवा)। पमजिया (आचा)। वकृ. पमज्जेमाण न [°वन] राजा का अन्तःपुर-स्थित वह वन (सम्मत्त ११७)। संवच्छर पुं[संवत्सर] (ठा ७)। संकृ. पमन्जित्ता (भग; उवा)। या बागीचा जहाँ राजा रानियों के साथ क्रीड़ा वर्ष-विशेष (सुज १०, २०)। हेकृ. पमजित्तू (पि ५७७)।
करे (से ११, ३७ रणाया १,८१३)।
| पमाण सक [प्रमाणय् ] प्रमाण रूप से पमजण न [प्रमार्जन] मार्जन, भूमि-शुद्धि पमया स्त्री [प्रमदा] उत्तम स्त्री, श्रेठ महिला
स्वीकार करना। पमाण, पमाणह (पिंग)। (अंत)। (उवः बृह ४)।
वकृ. पमाणंत (उवर १८६)। कृ. पमाणिपमजणिया) स्त्री [प्रमार्जनी] झाडू, भूमि | पमह ' [प्रमथ] शिव का अनुचर (पाप)। यव्व (सिरि ६१)। पमजणी साफ करने का उपकरण (णाया । णाह पुं[नाथ] महादेव (समु १५०)।
पमाणि अवि [प्रमाणित] प्रमाण रूप से १, ७; धर्म ३)।
हिब पुं [धिप] शिव, महादेव (गा पमजय वि [प्रमार्जक] प्रमार्जन करनेवाला
स्वीकृत (सुपा ११० था १२)। ४४८)।
पमाणिआ । स्त्री [प्रमाणिका, प्रमाणी] पमा सक [प्र+मा] सत्य-सत्य ज्ञान करना । पमजिवि [प्रमृष्ट, प्रमाणित] साफ किया
पमाणी छन्द-विशेष (पिंग)। कर्म, पमीयए (विसे ६४६)। हुअा (उया महा)। पमा स्त्री [प्रमा] १ प्रमाण, परिमाणः 'पीप
पमाणीकर अक [प्रमाणी+कृ] प्रमाण पमत्त विधिमत्त १ प्रमाद-युक्त, असावलधाउविरिणम्मियविहत्थियममालिगमाहरण"
करना, सत्य रूप से स्वीकार करना। कर्म. धान, प्रमादी, बेदरकार (उवः अभि १८५; (कुमा)। २ प्रमाण, न्यायः 'अतिप्पसंगो
पमाणीकरीअदि (शौ) (पि ३२४)। संक्र. प्रासू ६८)। २ न. छठवाँ गुरण-स्थानक पमासिद्धो' (धर्मसं ६८१)।
पमाणोकिअ (नाट-मालवि ४०)। (कम्म ४, ४७:५६)। ३ प्रमाद (कम्म २)। पमा देखो पमाय प्रमाद (वव १)। पमाद देखो पमाय =प्र+मद् । कृ. पमादेजोग योग] प्रमाद-युक्त चेष्टा (भग)।
पमाइ वि [प्रमादिन] प्रमादी, बेदरकार । यव्य (णाया १,१-पत्र ६०)। संजय पुं[संयत] प्रमादी साधु, प्रमाद| (सुपा ५४३; उच; प्राचा)।
पमाद देखो पमाय = प्रमाद (भग; प्रीपः स्वप्न युक्त मुनि (भग ३, ३)।
पमाइअव्य देखो पमाय% प्र+मद् । पमद देखो पमय (स्वप्न ५१; कप्पू)। पमाइल्ल देखो पमाइ; 'धम्मपमाइल्ले' (उप |
पमाय अक [प्र + मद् ] प्रमाद करना, पमदा देखो पमया (नाट-शकु २)। ७२८ टी)।
बेदरकारी करना । पमायइ, पमायए (उक: पमद्द सक [प्र+ मृदा १ मर्दन करना। पमाण सक [प्र+मानय ] विशेष रीति से
पि ४६०)। वकृ. पमायंत (सुपा १०)। २ विनाश करना। ३ कम करना। ४ चूर्ण मानना, प्रादर करना। कृ. पमाणणिज
कृ. पमाइअव्व (भग)। करना। ५ रई की पूणी-पूनी बनाना। (श्रा २७)।
पमाय पुं[प्रमाद] १ कर्तव्य कार्य में पमाण न [प्रमाण] १ यथार्थ ज्ञान; सत्य | वकृ. पमहमाण (पिंड ५७४) । ज्ञान । २ जिससे वस्तु का सत्य-सत्य ज्ञान
अप्रवृत्ति और अकर्तव्य कार्य में प्रवृत्ति रूप पमद [अमर्द] १ ज्योतिष शास्त्र में प्रसिद्ध हो वह, सत्य ज्ञान का साधन (अणु)। ३
असावधानता, बेदरकारी (प्राचा; उत ४, एक योग (सम १३; सुज १०, ११)। २ जिससे नाप किया जाय वह; 'अप्पमाणंपि'
३२, महा; प्रासू ३८ १३४)। २ दुःख, संघर्ष, संमद (राज)। ३ वि. मर्दन करने(श्रा २७ भगः अणु)। ४ नाप, माप, परि
कष्टः 'समग्गलोयाण वि जा विमायासमा वाला। ४ विनाशका 'सारं मरणइ सन्वं
मारण (विचार ५४४, ठा ५,३; जीवसहy: समुप्पाइयसुप्पमाया' (सत्त ३५)। पञ्चक्खाणं खु भवदुहपमई' (संबोध ३७)।
भगः विपा १, २)। ५ संख्या (अणु; जी पमार पुं[प्रमार] १ मरण का प्रारम्भ (भग पमांग न [प्रमर्दन] १ चूरना, चूर्ण करना
२६)। ६ प्रमाण-शास्त्र, न्याय-शास्त्र, तर्क- १५)। २ बुरी तरह मारना (ठा ५, १)। (राय)। २ नाश करना। ३ कम करना
शाना 'लक्सरगसाहित्तपमाणजोइसाईगि सा | पमारणा स्त्री [प्रमारणा] बुरी तरह मारना (सम १२२)। ४ रुई की पूणी करना (पिड
पढइ' (सुपा १०३)। ७ पुन. सत्य रूप से (वव ३)। ६०३)। ५ वि. विनाश करनेवाला (पंचा
जिसका स्वीकार किया जाय वह। ८ मान१४, ४२)।
पमिय वि [प्रमित] परिमित, नापा हुअा नीय, प्रादरणीय । ६ सचा, सही, ठीक-ठीक, पमद्दय वि [प्रमर्दक] प्रमर्दन-कर्ता (दसनि
'अंगुलमूलासंखिप्रभागप्पमिया उ होंति सेढीरो' यथार्थ; 'कमागप्रो जो य जेसि किल धम्मो १०, ३०)।
(पंच २, २०)। सो य पमाणो तेसि (सुपा ११० श्रा १४); | पमहि वि [प्रमर्दिन् प्रमर्दन करनेवाला
पमिलाण वि [प्रम्लान अतिशय मुरझाया 'सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो (औप, पि २६१)।
पिच्छ इच्छुवाडम्मि ।
हुश्रा (ठा ३, १; धर्मवि ५५)। पमय पुं[प्रमद] १ आनन्द, हर्ष (कालः श्रा
कीस न जायइ महुरो जइ
पमिलाय अक [प्र+म्लै मुरझाना, 'पण२७)। २ न. धतूरे का फल । च्छी स्त्री . सेसग्गी पमाणं ते' (प्रासू ३३)। पन्नाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं' [क्षी] स्त्री, महिला (सुपा २३०)। 'वण | °वाय पुं [वाद] न्याय-शास्त्र, तर्क-शास्त्र ! (तंदु ४)।
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