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पभसण-पमज्ज पाइअसहमहण्णवो
५३९ पभंसण न [प्रभ्रंशन] स्खलना (धर्मसं ११)। ३ उदायन राजर्षि की पटरानी और | पभासिय वि [प्रभाषित] उक्त, कथित १०७६)।
चेड़ा नरेश की पुत्री का नाम (पडि)। ४ (सून १, १, १, १९)। पभकंत पु[अभकान्त] १-२ विद्युत्कुमार बलदेव के पुत्र निषध की भार्या (पाचू १)। पभासेमाण देखो पभास = प्र + भासय् । देवों के हरिकान्त और हरिस्सह नामक दोनों ५ राजा बल की पत्नी (भग ११, ११)। पभिड देखो पभिड (५५)। इन्द्रों के लोकपालों के नाम (ठा ४, १--पत्र पभावग वि [प्रभावक] प्रभाव बढ़ानेवाला, 'पभिइ वि.ब. [प्रभृति इत्यादि, वगैरह १६७ इक)।
शोभा की वृद्धि करनेवाला (श्रा ६ द्र २३) । पभण सक [प्र+ भण् ] कहना, बोलना। २ उन्नति-कारक। ३ गौरव जनक (कुप्र पभिई प्रप्रभृति प्रारम्भ कर, (वहां पभणइ (महा सण)। १६८)।
पभिई ! से) शुरू कर, लेकर: 'बालभावाप्रो पभणिय वि [प्रभणित ] उक्त, कथित
पभावण न [प्रभावन नाचे दखा () पभीइपभिई' (सुर ४, १६७; कप्पा
पभावणा स्त्री प्रभावना] १ महात्म्य, पभीई महा; स ७३९; २७५ टि)। पभम सक [प्र + भ्रम्] भ्रमण करना, गौरव । २ प्रसिद्धि, प्रख्याति (णाया १,
पभीय वि [प्रभीत] प्रति भीत, अत्यन्त डरा भटकना । पभमेसि (श्रु १५३) । १६-पत्र १२२; श्रा ६; महा)।
हुआ (उत ५, ११)। पभव अक [प्र+ भू] १ समर्थ होना, पहुँ
पभावय वि [प्रभावक] गौरव बढ़ानेवाला |पभु पुं[प्रभु] १ इक्ष्वाकु वंश के एक राजा चना । २ होना, उत्पन्न होना। पभवइ (पि
(संबोध ३१)। ४७५) । वकु. पभवंत (सुपा ८६; नाट
का नाम (पउम ५, ७)। २ स्वामी, मालिक पभावाल पुं[प्रभावाल] वृक्ष-विशेष (राज)। (पउम ६३, २६; बृह २)। ३ राजा, नृपः विक्र ४५)। पभव पुं[प्रभव] १ उत्पत्ति, जन्म, प्रसूति, पभावित देखो पभाव = प्र + भावय ।
'पभू राया अणुप्पभू जुवराया' (निचू २)।
४ वि. समर्थ, शक्तिमान् (श्रा २७, भग १५, प्रसव (ठा 8; वसु)। २ प्रथम उत्पत्ति का | पभास सक [प्र+भाष ] बोलना, भाषण
उवा, ठा ४, ४)। ५ योग्य, लायक; 'पभुत्ति कारण (णंदि) । ३ एक जैनमुनि, जम्बु-स्वामी करना। पभासंति (विसे ४६६ टी)। वकृ.
वा जोग्गोत्ति वा एगट्ठा' (निचू २०)। का शिष्य (कप्पा वसु; एंदि)।
पभासंत, पभासयंत, पभासमाण (उप पभवा स्त्री [प्रभवा] तृतीय वासुदेव की | पृ २३; पउम ५५, १८८६, १०)।
पभुंज सक [प्र + भुज् ] भोग करना। पटरानी (पउम २०, १८६)।
पभुंजेदि (शौ) (द्रव्य ६)। पभास प्रक[प्र+भास् ] प्रकाशित होना।
पभुति (वै) देखो पभिई (कुमा)। पभविय वि [प्रभूत] जो समर्थ हुपा हो, 'सा | पभासिति (सुन १९)। भूका-पभासिसु ।
पभुत्त वि [प्रभुक्त] १ जिसने खाने का विज्जा सिट्ठसुए उदग्गपुन्नम्मि पभविया नेव (भग; सुज्ज १६)। भवि. पभासिस्सति (सुज
प्रारम्भ किया हो वह (सुर १०, ५८)। २ (धर्मत्रि १२३)।
१६) । वकृ. पभासमाण (कप्प)। जिसने भोजन किया हो वह (स १०४)। पभा स्त्री [प्रभा] १ कान्ति, तेज (महाः धर्मसं पभास सक [प्र+भासय ] प्रकाशित
पभूइ) देखो पभिई (पउम ६, ७६; स १३३३)। २ प्रभाव; 'निच्नुज्जोया रम्मा,
करना । प्रभासेइ (भग)। पभासंति (सुज | पभूइं। २७५)। सयंपभा ते विरायति' (देवेन्द्र ३२०)। ३-पत्र ६४)। वकृ. पभासयंत, पभासे- पभूय वि[प्रभूत] प्रचुर, बहुत (भगः पउम पभाइअ) पुंन [प्रभात १ प्रातःकाल, सुबह माण (पउम १०८, ३३, रयण ७५; कप्प; | ५,५; णाया १, १; सुर ३, ८१, महा)। पभाय (पउम ७०, ५६, सुर ३, १६; उवा औपभग)।
पभोय (अप) देखो उवभोगः 'भोय-पभोयमाणु महा स २४४) । २ वि. प्रकाशित; रयणीए पभास [प्रभास] १ भगवान् महावीर के जं किजह' (भवि)। पभायाए' (उप ६४८ टी)। तणय वि एक गणधर का नाम (सम १६ कप्प)। २ | पमइल विप्रमलिन] प्रति मलिन (णाया [संबन्धिन् ] प्राभातिक, प्रभात-सम्बन्धी,
एक विकटापाती पर्वत का अधिष्ठाता देव १,१)। सुबह का (सुर ३, २४८)।
(ठा २, ३-पत्र ६६)। ३ एक जैन मुनि पमक्खण न [प्रमक्षण] १ अभ्यञ्जन, विलेपभार [प्रभार] प्रकृष्ट भार (सम १५३)। का नाम (धर्म ३)। ४ एक चित्रकार का | पन। २ विवाह के समय किया जाता एक पभाव देखो पहाव = प्र + भावय । पभावेइ,
नाम (धम्म ३१ टी)। ५ न. तीर्थ-विशेष तरह का उबटन (स ७४)। पभावंति (उच; पब १४८)। वकृ. पभावित (जं ३, महा)। ६ देव-विमान-विशेष (सम पमक्खिअ वि [प्रमक्षित] १ विलिप्त । २ (सुपा ३७६)। १३, ४१)। "तित्थ न [तीर्थ] तीर्थ
विवाह के समय जिसको उबटन किया गया पभाव देखो पहाव-प्रभाव (स्वप्न १८)।
विशेष, भारतवर्ष की पश्चिम दिशा में स्थित हो वह (वसुः सम ७५)। पभावई स्त्री [प्रभावती] १ उन्नीसवें जिन- एक तीर्थ (इक)।
पमज सक [प्र + मृज् , मार्ज ] मार्जन देव की माता का नाम (सम १५१)। २ पभासा स्त्री [प्रभासा] अहिंसा, दया (पएह करना, साफ-सुथरा करना, झाडू मादि से रावण की एक पत्नी का नाम (पउम ७४, । २,१)।
धूलि वगैरह को दूर करना। पमजइ (उव;
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