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पण्णाग-पत्तट्ठ
पाइअसद्दमण्णवो १२) । परिसह, परीसह पु[परिषद, पण्हविअ देखो पण्हुअ (दै ६, २५)। (स १२, सुर १, ७२, से २, १७३)। 'परीषह] १ बुद्धि का गवं न करना। २ | पहा देखो पण्ह ।
'च्छेज न [च्छेद्य कला-विशेष (प्रौपः बुद्धि के अभाव में खेद न करना (भग ८, पण्डि पुत्री [पागि] फीली का प्रधोभाग,
स ६५)। मंत वि [वत् ] पत्रवाला ८; पव ८६)। मय पु[मद] बुद्धि का | गुल्फ को नीचला हिस्सा, एड़ी (पएह १, ३,
(णाया १, १)। रह पुं ["रथ] पक्षी अभिमान (सूप १, १३)। "वंत वि [°वत्] । दे७, ६२)।
(पान)। लेहा स्त्री [ लेखा] चन्दनादि ज्ञानवान् (राज)। पण्हिया स्त्री [प्रश्निका] एड़ी, गुल्फ का
से पत्र के प्राकृतिवाली रचना-विशेष, भूषा पण्णाग वि[प्रज्ञ] विद्वान् (पंचा १७, अधोभाग; 'मेलितु परिहयाो चरणे वित्था
का एक प्रकार (अजि २८)। वल्ली बी २७)। रिऊण बाहिरो' (चेइय ४८६)।
["वल्ली] १ पत्रवाली लता। २ मुंह पर पण्णाड देखो पन्नाड परणाडइ (दे ६,
चन्दन आदि से की जाती पत्र-श्रेणी-तुल्य पण्हुअ वि [प्रस्नुत] १ क्षरित, झरा हुआ। २६)। २ जिसने झरने का प्रारम्भ किया हो वह;
रचना (कुप्र ३६५)। °विंट न [°वृन्त] पण्णाण न [प्रज्ञान] १ प्रकृष्ट ज्ञान । २
पत्र का बन्धन (पि ५३)। "विटिय वि 'पराहुयपयोहरामो' (पउम ७६, २०० हे सम्यग् ज्ञान (सम ५१)। ३ पागम, शास्त्र
[वृन्तक, वृन्तीय त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, २, ७५)। (प्राचा) । व वि [वत् ] १ ज्ञानवान् ।
पत्र वृन्त में उत्पन्न होता एक प्रकार का पण्हुइर वि [प्रस्नोत] झरनेवाला, २ शास्त्रज्ञ (प्राचा)।
श्रीन्द्रिय जन्तु (पएण १--पत्र ४५) । 'हत्यप्फसेण जरग्गवीवि पराहमइ दोहप्रगुणेण। पण्णाराह (अप) त्रि.ब. [पञ्चदशन] पनरह
"विच्छुय [वृश्चिक जीव-विशेष,एक तरह अवलोअरणपएहुइरि पुत्तम पुराणेहिं पाविहिसि (पिंग)।
का वृश्चिक, चतुरिन्द्रिय जीवों की एक जाति
(गा ४६२)। पण्णावीसा स्त्री [पञ्चविंशति] पचीस, बीस
(जीव १)। वेंट देखो विंट (पि ५३) । पण्होत्तर न [प्रश्नोत्तर] सवाल-जवाब (सुर और पाँच, २५ (षड्)।
°सगडिआ स्त्री [शकटिका] पतों से भरी १६, ४१; कप्पू)। पण्णास स्त्रीन [दे. पञ्चाशत् ] पचास, ५०
हुई गाड़ी (भग)। समिद्ध वि [समृद्ध] पतणु देखो पयणु (राज)। (दे ६, २७; षड्: पि २७३, ४४५; कुमा)।
प्रभूत पत्तेवाला (पान)। हार [हार] पतार सक [प्र+ तारय् ] ठगना। संकृ. देखो पन्नास।
त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (परण १-पत्र ४५; पतारिअ (अभि १७१)। पण्णासग वि [पश्चाशक] पचास वर्ष की
उत्त ३६, १३८)। हार पुं हार] पत्ती पतारग वि [प्रतारक] वञ्चक, ठग (धर्मसं उम्र का (तंदु १७)।
पर निर्वाह करनेवाला वानप्रस्थ (प्रौप)। १४७)। पण्णुवीस देखो पणुवीस (स १४६)। पतिण्ण वि[ प्रतीर्ण ] पार पहुंचा हुआ,
पत्त न [पात्र] १ भाजन (कुमा; प्रासू ३६)। पण्ड पुंस्त्री [प्रश्न] प्रश्न, पृच्छा (हे १, ३५, पतिन्न निस्तीणं (राजा पएह २, १
२ प्राधार, प्राश्रय, स्थान (कुमा)। ३ दान कुमा)। स्त्री. हा (हे १, ३५) । (हे १ः पत्र ६६)।
देने योग्य गुणी लोक (उप ६४८ टी महा)। ३५)। वाहण न ["वाहन] जैन मुनि-गण पतुण्ण | न [प्रतुन्न] वल्कल का बना हुआ
४ लगातार बत्तीस उपवास (संबोध ५८)। का एक कुल (ती ३८)। वागरण न | पतुन्न । वस्त्र (पाचा २, ५, १, ७)।
बंध [बन्ध] पात्रों को बाँधने का [व्याकरण] ग्यारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (पएह पतेरस , वि[प्रत्रयोदश प्रकृष्ट तेरहवाँ ।
कपड़ा (ओघ ६६८)। देखो पाय = पात्र । २, ५; ठा १०; विपा १, १; सम १)। पतेलसवास न [ वर्ष१ प्रकृष्ट तेरहवाँ पत्त वि [प्रात्त प्रसारित (कप्प)। देखो पसिण।
वर्ष । २ प्रकृत तेरहवाँ वर्ष । ३ प्रस्थित पत्तइअ वि [प्रत्ययित] विश्वस्त (भग)। पण्हअ अक [प्र + स्नु] झरना, टपकना; तेरहवाँ वर्ष (प्राचा) ।
पत्तइअ वि [पत्रकित १ अल्प पत्रवाला। 'एक्को पहाइ थणों (गा ४०६ ४६२ अ)।
पत्त वि [प्राप्त] मिला हुआ, पाया हुआ | २कुत्सित पत्रवाला (गाया १, ७-पत्र पण्ही पुं[दे. प्रस्नव] १ स्तन-धारा, (कप्प; सुर ४, ७०, सुपा ३५७; जी ४४० ११६)। पण्हव , स्तन से दूध का झरना (दे ६, ३,
दं ४६; प्रासू ३१, १६२; १८२; गा पत्तउर पु[दे] वनस्पति-विशेष, एक प्रकार पि २३१, राज; अंत ७ षड् । २ झरन,
२४१)। "काल, "याल न [ काल] १ | का गाछ (पएण १-पत्र ३१)। टपकना; 'दिट्ठिपराहव' (पिंड ४८७)।
चैत्य-विशेष (राज)। २ वि. अवसरोचित | पत्तच्छेज्ज न [पत्रच्छेद्य] बाण से पत्ती पण्हव पुं[पह्नव १ अनार्य देश-विशेष । २ (स ४६०)।
बेधने की कला (जं २ टी पत्र १३७)। २ वि. उस देश का निवासी (पएह १, १- | पत्त न [पत्र] १ पत्ती, पत्ता, दल, पर्ण (कप्प; नक्काशी का काम, खोदने का काम (पाचा पत्र १४)।
सुर १,७२ जी १० प्रासू ६२)। २ पक्ष २, १२, १)। पण्हवण न [प्रस्नवन] क्षरण, झरना (विपा पंख, पाँख (णाया १, १--पत्र २४)। ३ पत्तट्ट वि [दे प्राप्तार्थ] १ बहु-शिक्षित, १, २)।
जिसपर लिखा जाता है वह, कागज, पन्ना | विद्वान्, पति कुशल (दे ६, ६८ सुर १,
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