________________
५३४
पाइअसहमहण्णवो
पत्तटू-पत्तेग
८१; सुपा १२६, भग १४, १; पाम)। २ | पत्ताण सक [दे] पताना, मिटाना; 'पुच्छउ पत्तिग देखो पत्तिअ = प्रीतिक (पंचा ७, समर्थ (जीवस २८५)।
अन्नु कोवि जो जाएइ सो तुम्हह विवाउ पत्तट्ट वि [दे] सुन्दर, मनोहर (दे ६,६८)। पत्ताई' (भवि), पत्ताणहि (भवि)। पत्तिज देखो पत्तिअ = प्रति + इ । पत्तिज्जसि, पत्तण देखो पट्टण (राज)।
पत्तामोड पुन [आमोटपत्र] तोड़ा हुआ पत्र, | पत्तिजामि (पि ४८७)। पत्तण न दे. पत्त्रण] १ इषु-फलक, बाण 'दब्भे य कुसे य पत्तामोडं च गेएहई' (अंत | पत्तिज्जाव देखो पत्तिआव। पत्तिजावइ का फलक । २ पुंख, बाण का मूल भाग (दे ११)।
(सुपा ३०२) । पत्तिजावेमि (धर्मवि १३४)। ६, ६४ गा १०००)। पत्ति स्त्री [प्राप्ति] लाभ (दे १, ४२; उप
| पत्तिसमिद्ध वि [दे] तीक्ष्ण (दे ६, १४) । पत्तणा स्त्री [दे. पत्त्रणा] १-२ ऊपर | २२६; चेइय ८६४)।
पत्ती स्त्री [दे] पत्तों की बनी हुई एक तरह देखो (गउड से १५, ७३)। ३ पुंख में की पत्ति पुंपत्ति १ सेना-विशेष, जिसमें एक की पगड़ी जिसे भील लोग सिर पर पहनते जाती रचना-विशेष (से ७, ५२)। रथ, एक हाथी, तीन घोड़े और पाँच पैदल पत्तणा स्री [प्रापणा] प्राप्ति (पंचू ४)।
हों। २ पैदल चलनेवाली सेना ( उप पत्ती स्त्री [पत्नी] स्त्री, भार्या (उप पृ १६३; पत्तपसाइआ श्री [दे] पत्तियों की एक ७२८ टी)।
आप ६६ महा: पान)। को पगड़ी, जिसे भील लोग पहनते हैं (दे पत्ति । सक [प्रति + इ] १ जानना। २ | पत्ती स्त्री [पात्री] भाजन, पात्र (उप ९२२, पत्तिअविश्वास करना । ३ आश्रय करना ।
महा धर्मवि १२६)। पत्तिप्राइ, पत्तियंति, पत्तिप्रसि, पत्तिमामि पत्तपिसालस न [दे] ऊपर देखो (दे ६, २)।
| पत्तुं देखो पाच = प्र + प्राप्।
(से १३, ४४, पि ४८७ से ११, ६०; पत्तय न [पत्रक] एक प्रकार का गेय (ठा
पत्तुवगद (शौ) वि [प्रत्युपगत] १ सामने भग)। पत्तिएजा, पत्तिम, पत्तिहि, पत्तिसु
गया हुमा। २ वापस गया हुमा (नाट.-विक्र (राय; गा २१६; ६६E पि ४८७)। वकृ.
२३)। पत्तय देखो पत्त (महा)।
पत्तिअंत, पत्तियमाण (गा २१६, ६७८०
पत्तेअन [प्रत्येक] १ हरएक, एक एक पत्तरक न [द. प्रतरक] प्राभूषण-विशेष आचा २, २, २, १०)। संकृ. पडियच्च, | पत्तेग (हे २,१०० कुमाः निचू १; पि (पएह २, ५-पत्र १४६)।
पत्तियाइत्ता (सून १, ६, २७, उत्त ३४६) । २ एक की तरफ, एक के सामने पत्तल वि [दे] १ तीक्ष्ण, तेज (दे ६, १४), २६ १)।
'पत्तेयं पत्तेयं वरणसंडपरिक्खित्तानों (जीव ३)। 'नयणाई समारिणयपत्तलाई
पत्तिअ वि [पत्रित] संजात-पत्र, जिसमें पत्र ३ न. कर्म-विशेष, जिसके उदय से एक जीव परपुरिसजीवहरणाई। उत्पन्न हुए हो वह (णाया १, ७, ११
का एक अलग शरीर होता है; 'पत्तेयतणू असियसियाई व मुद्धे खग्गा पत्र १७१)।
'पत्तेउदएणं (कम्म १,५०)। ४ पृथक् पृथक् , ____ इव के न मारंति ? पत्तिअ वि [प्रतीति, प्रत्ययित प्रतीति
अलग अलग (कम्म १, ५०)। ५ पुं. वह (वज्जा ६०)। २ पतला, कृश (दे ६, १४, वाला, विश्वस्त (ठा ६-पत्र ३५५; कप्प;
जीव जिसका शरीर अलग हो, एक स्वतन्त्र वज्जा ४६)।
शरीरवाला जीव 'साहारणपत्तेंग्रा वरणस्सइकस)। पत्तल वि [पत्रल] १ पत्र-समृद्ध, बहुत पत्ती- पत्तिअ न [प्रीतिक] प्रीति, स्नेह (ग ४,
जीवा दुहा सुए भरिणया' (जी ८)। णाम वाला (पान; से १, ६२ गा ५३२, ६३५ |
न [ नामन्] देखो ऊपर का तीसरा अर्थ ३ ठा ६-पत्र ३५५)। दे ६, १४)। २ पक्ष्मवाला (प्रौपा जं २)।
(राज)। 'निगोयय पुं["निगोदक] जीवपत्ति पुंन [प्रत्यय प्रत्यय, विश्वास (ठा
विशेष (कम्म ४, ८२)। बुद्ध पुं[बुद्ध] पत्तल न [पत्र] पत्ती, पणं (हे २, १७३; | ४, ३-पत्र २३५; धर्म २)।
अनित्यतादि भावना के कारणभूत किसी एक प्रामाः सण हे ४, ३०७)। पत्तिअ न [पत्रिक] मरकत-पत्र (कप्प)।
वस्तु से परमार्थ का ज्ञान जिसको उत्पन्न पत्तलणन [पत्रलन] पत्र-समृद्ध होना, पत्र
पत्तिआ स्त्री [पत्रिका] पत्र, पणं, पत्ती | हुआ हो ऐसा जैन मुनि (महा; नव ४३)। बहुल होनाः 'वाउलिभापरिसोसणकुडंगपत्त(कुमा)।
बुद्धसिद्ध पुं [बुद्धसिद्ध] प्रत्येकबुद्ध लणसुलहसंकेन' (गा ६२६)।
पत्तिआअ देखो पत्तिअ = प्रति+इ। होकर मुक्ति को प्राप्त जीव (धर्म २) । पत्तली स्त्री [दे] कर-विशेष, एक प्रकार का पत्तिमामइ (प्राकृ ७५ ), पतिप्राअंति (पि 'रस वि [ रस] विभिन्न रसवाला (ठग ४, राज-देया 'गिएहह तहसपत्तलि झत्ति' (सुपा ४८७)।
४)। सरीर वि [शरीर] १ विभिन्न पत्तिआव सक [प्रति + आयय ] विश्वास शरीरवालाः 'पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरपत्तहारय वि [पत्रहारक] पत्तों को बेचने | कराना, प्रतीति कराना। पत्तिावेइ (भास ! संघाया' (पंच ३)। २ न. कर्म-विशेष, जिसके का काम करनेवाला (अणु १४६) २३) ।
उदय से एक जीव का एक विभिन्न शरीर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org