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पाइअसहमहण्णवो
पत्थोउ-पधोव पत्थोउ वि [प्रस्तोत्] १ प्रस्ताव करनेवाला। पदाहिण वि [प्रदक्षिण] प्रकृष्ट दक्षिण, ! पद्द न [पद्य] श्लोक, वृत्त, काव्य (प्राक २ प्रवर्तक । स्त्री. थोई (पएह १, ३- प्रकर्ष से दक्षिण दिशा में स्थित (जीव ३)। २१)। पत्र ४२)। देखो पदक्खिण।
पहेस देखो पदेस = प्रद्वेष (सूत्र १, १६, ३)। पथम (पै) देखो पढम (पि १९०)। पदिकिदि (शौ) देखो पडिकिदि (मा १०;
पद्धइ स्त्री [पद्धति १ मार्ग, रास्ता (सुपा
नाट—विक २१)। पद देखो पय = पद (भग; स्वप्न १५; हे ४, |
१८६) । २ पंक्ति, श्रेणी (ठा २, ४) । ३ पदित्त देखो पलित्त (राज)। २७०; परह २, १; नाट-शकु ८१)।
परिपाटी, क्रम (प्रावम)। ४ प्रक्रिया, प्रकरण पदअ सक [गम् ] जाना, गमन करना ।
पदिस स्त्री [प्रदिश] विदिशा, ईशान आदि | (वजा २)।
। कोण; 'तसंति पाणा पदिसो दिसासु य' पद्धंस पुं[प्रध्वंस] ध्वंस, नाश । भाव पुं पदाइ (हे ४, १६२) । पदअंति (कुमा)। (प्राचा)।
[भाव] अभाव-विशेष, वस्तु के नाश होने पदंसिअ वि [प्रदर्शित] दिखलाया हुआ, पदिस्सा देखो पदेक्ख।
पर उसका जो प्रभाव होता है वह (विसे बतलाया हुअा (श्रा ३०)।
पदीव सक [प्र+दीपय] १ जलाना । २ १८३७)। पदक्खिण वि[प्रदक्षिण] १ जिसने दक्षिण प्रकाश करना । पदोवेसि (पि २४४) । वक पद्धर वि [दे] ऋजु, सरल, सीधा (दे ६, की तरफ से लेकर मण्डलाकार भ्रमण किया | पदीत (पउम १०२, १०)।
१०)। २ शीघ्रः गुजराती में 'पाधलं'; 'पद्धरहो वह । २ न. दक्षिणावर्त भ्रमण; 'पदक्खि
पदीव देखो पईव = प्रदीप (नाट-मृच्छ पएहि सुइडे पचारेइ' (सिरि ४३५) । णीकरअंतो भट्टार' (प्रयौ ३५)। देखो | ___३०)।
पद्धल वि [दे] दोनों पावों में अप्रवृत्त पदाहिण ।
पदीविआ स्त्री [प्रदीपिका] छोटा दिया | (षड् )। पदक्खिण सक [प्रदक्षिणय ] प्रदक्षिणा (नाट–मृच्छ ५१)।
पद्धार वि[दे] जिसका पूंछ कट गया हो वह, करना, दक्षिण से लेकर मण्डलाकार भ्रमण
पदुग्ग पुन [प्रदुर्ग] कोट, किला (प्राचा, पूंछ-कटा (दे ६, १३)। करना । हेकृ. पदक्खिणेउं (पउम ४८, २, १०, २)।
पधाइय देखो पधाविय (भवि)। पदक्खिणा स्त्री [प्रदक्षिणा] दक्षिण की
| पदुढ वि [प्रद्विष्ट, प्रदुष्ट] विशेष द्वेष को पधाण देखो पहाण (नाट---मृच्छ २०५) । पोर से मण्डलाकार भ्रमण (नाट-चैत । प्राप्त (उत्त ३२ बृह ३)।
पधार देखो पहार प्र+धारय । भूका. ३८)।
पदुब्भेइय न [पदोद्भेदक] पद-विभाग और पधारेत्थ (प्रौपः रणाया १, २-पत्र ८८)। पदण न [पदन] प्रत्यायन. प्रतीति कराना | शब्दार्थ मात्र का पारायण (राज)। | पधाव सक [प्र+धा ] दौड़ना, अधिक (उप ८८३)।
पदूमिय वि [प्रदावित, प्रदून] अत्यन्त वेग से जाना । संकृ. पधाविअ (नाट)। पदण (शौ) न [पतन] गिरना (नाट
पीड़ित (बृह ३)।
पधावण न [प्रधावन] १ दौड़, वेग से मालती ३७)।
पदूस सक [प्र + द्विष] द्वेष करना। गमन । २ कार्य को शीघ्र सिद्धि (श्रा १)। पदम (शौ) देखो पउम (नाट-मृच्छ १३६)। पसंति (पंचा २, ३५)।
३ प्रक्षालन (धर्मसं १०७८) । पदय देखो पयय = पदग, पदक, पतग, पतंग
. पदूसणया स्त्री [प्रद्वेपणा, प्रदूषणा] द्वेष, पधाविअ बि [प्रधावित] १ दौड़ा हुआ (इक)। मात्सर्य (उप ४८६)।
(महा पगह १, ४) । २ गति-रहित (राज)। पदरिसिय देखो पदंसिअ (भवि)। पदेक्स सक [प्र+दृश] प्रकर्ष से देखना। पधाविर वि [प्रधावित] दौड़नेवाला (श्रा पदहण न [प्रदहन] संताप, गरमी (कुमा)।
पदेक्खइ (वि) । संकृ. 'पदिस्सा य दिस्सा २८)।
वयमाणा' (भग १८,८; पि ३३४)। पदाइ वि [प्रदायिन् देनेवाला (नाट-
पधूवण न [प्रधूपन] १ धूप देना। २ एक पदेस देखो पएस-प्रदेश (भग)। विक्र८)।
प्रकार का आलेपन द्रव्य (कस)। पदेस [प्रद्वेष द्वेष (धर्मसं ६७)। पदाण न [प्रदान] दान, वितरण (प्रौप;
पधूविय वि [प्रधूपित] जिसको धूप दिया पदेसिअ वि [प्रदेशित] प्ररूपित, प्रतिपादित अभि ४५)। (आचा)।
गया हो वह (राज)। पदादि (शौ) [पदाति] पैदल चलनेवाला पदोस देखो पओस = दे. प्रदेष (अंत १३; पधोअ सक [प्र+ धावू] धोना । संकृ. सैनिक (प्रयौ १७; नाट–वेणी ६६)। निचू १)।
पधोइत्ता (माचा २, १, ६, ३)। पदायग वि [प्रदायक] देनेवाला (विसे पदोस देखो पओस प्रदोष (राज)। पधोअ वि [प्रधौत] धोया हुआ (प्रौप)। ३२००)।
पद्द न [दे] १ ग्राम-स्थान (दे ६, १) । २ पधोव सक [प्र + धाव् ] धोना। पधोति पदाव देखो पयाव (गा ३२६)। । छोटा गाँव (पान)।
(पि ४८२)।
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