________________
पणव-पणिहाण
पाइअसहमहण्णवो
पणव देखो पणम । पगवइ (भवि) । पणवह पणायक। वि [प्रणायक ] ले जानेवाला. पणिअसाला स्त्री [पण्यशाला बखार, अन्न (हे २, १९५) । वकृ. पणवंत (भवि)।
पणायग। 'निव्वाणगमणसग्गप्पणायकाई या माल रखने का घिरा हुमा स्थान, गोदाम पणव पु[प्रणव मोंकार, 'नों प्रक्षर (सिरि
(पएह २, १; परह २, १ टी वव १)। (पाचा २, २, २, १०)। १६६)।
पणाल पुं[प्रणाल] मोरी, पानी प्रादि जाने पणिआ स्त्री [दे] करोटिका, सिरकी हड्डी, पणव पुं [पणव] पटह, ढोल, वाद्य-विशेष का रास्ता (से १३, ५४ उर १, ५, ६)। खोपड़ी (द ६, ३)। (प्रौपः कप्प अंत)।
पणालिआ स्त्री [प्रणालिका] १ परम्परा पणिंदि । वि [पञ्चेन्द्रिय] त्वक् , जीभः पणवणिय देखो पणवन्निय (प्रौप)। (सूप १, १३)। २ पानी जाने का रास्ता पणिदिय नाक, अाँख और कान इन पाँचों पणवण्ण। देखो पणपन्न (पि २६५; २७३;
इन्द्रियोंवाला प्राणी (कम्म २४, १०, १८ पणवन्न ।भग हे २, १७४ टि)।
पणाली स्त्री [प्रणाली] मोरी, पानी जाने का १९)। पणवन्निय पुं[पणपन्निक] व्यन्तर देवों की |
रास्ता (गउड)।
पणिद्ध वि [प्रस्निग्ध] विशेष स्निग्ध (अणु एक जाति (पएह १, ४)।
पणाली स्त्री [प्रनाली] शरीर-प्रमाण लम्बी २१५)।
लाठी (पएह १, ३–पत्र ५४) । पणिधाण देखो पडिहाण (अभि १८६; पणविय देखो पणमिय = प्रणत (भवि)।
पणास सक[प्र+नाशय ] विनाश करना। नाट.-विक्र ७२)। पणवीसी श्री[पञ्चविंशतिका] पचीस का पणासेइ, पणासए (महा)।
पणिधि पुंस्त्री [प्रणिधि माया, छल; 'पुणो समूह (संबोध २५)।
पणास पुं [प्रणाश] विनाश, उच्छेदन | पुणो परिणधि(? धी)ए हरित्ता उवहसे जणं पणस पुं [पनस] वृक्ष-विशेष, कटहल या | (प्रावम)।
(सम ५०)। देखो पणिहि। कटहर (पि २०८ नाट-मृच्छ २१८)। पणासण वि [प्रणाशन] विनाश करने-पणियत्थ वि [प्रणिवसित] पहना हुआ पणसुंदरी श्री [पणसुन्दरी] वेश्या (धर्मवि | वालाः 'सन्वपावप्पणासणों' (पडि; कप्प)। (प्रौप)। १२७)। स्त्री. 'णी (श्रा ४६)।
पणिलिअ वि [दे] हत, मारा हुंमा (षड्)। पणाम सक [अर्पय ] अर्पण करना, देने पणासिय वि [प्रणाशित] जिसका विनाश पणिवइ वि [प्रणिपतित नत, नमा हुमाः के लिए उपस्थित करना। पणामइ (हे ४, किया गया हो वह (कप्प; भवि)।
'परिणवइयवच्छला णं देवाणुप्पिया ! उत्तम३६), 'वंदियो य पणयाण कल्लागाई पणिअ वि [दे] प्रकट, व्यक्त (दे ६, ७)। । पुरिसा' (णाया १,१६-पत्र २१६ स ११; पणामई (सुपा ३६३)।
पणिअ वि [प्रणीत रचित (सूभनि ११२)। उप ७६८ टी)। पणाम सक[प्र+नमय ] नमाना । पणामेइ पणिअ न [पणित] १ बेचने योग्य वस्तु
पणिवइअ वि[प्रणिपतित] जिसको नमस्कार (महा)। (दे १,७४, ६, ७; णाया १, १)। २
किया गया हो वहः 'नरपहूहि परिणवइग्रो." पणाम सक [उप + नी] उपस्थित करना । व्यवहार, लेन-देन, क्रय-विक्रय (भग १५,
वीरो' (धर्मवि ३७)। पणामेइ (प्राकृ ७१)। णाया १, ३–पत्र ६५)। ३ शत, होड़, |
पणिवय सक [प्रणि + पत् ] नमन करना, पणाम [प्रणाम] नमस्कार, नमन (दे ७, एक तरह का जुप्रा (भास ६२)। भूमि,
वन्दन करना। पणिवयामि (कप्प; साध ६ भवि)।
'भूमी स्त्री [भूमि, भूमी] १ अनार्य पणामणिआ श्री [दे] स्त्रीविषयक प्रणय
देश-विशेष, जहाँ भगवान् महावीर ने एक | पणिवाय पुं [प्रणिपात] वन्दन, '
चौमासा बिताया था (राज; कप्प)। २ विक्रेय (सुर ४, ६८; सुपा २८, २२२, महा)। पणामय वि [अर्पक] देनेवाला (सूत्र १, २, २)।
वस्तु रखने का स्थान (भग १५)। साला स्त्री पणिहा सक [प्रणि + धा] १ एकाग्र चिन्तन पणामय वि [प्रणामक] १ नमानेवाला।
[शाला] हाट, दूकान (बृह २, निचू १६)। करना, ध्यान करना। २ अपेक्षा करना । ३ २ शब्द आदि विषय (सूत्र १, २, २, २७)। पणिअन [पण्य] विक्रेय वस्तु (सुपा २७५; अभिलाषा करना। ४ चेष्टा करना, प्रयत्न पणामिअ वि [अर्पित] समर्पित, देने के पौप; भाचा)। °गिह, घर न [गृह] करना। संकृ. पणिहाय (णाया १, १०; लिए घरा हुआ (पाम कुमा); 'प्रपणामि
दूकान, हाट (निचू १२ भाचा २, २, २)। भग १५)। यंपि गहिनं कुसुमसरेण महुमासलच्छीए मुहै "साला स्त्री [शाला] हाट, दूकान (प्राचा)। पणिहाण न [प्रणिधान] १ एकाग्र ध्यान, (हेका ५०)।
"वण पु[पण दूकान, हाट (प्राचा)। मनो-नियोग, प्रवधान (उत्त १६,१४० स ८७ पणामिअ वि [प्रणामित] नमाया हुमा पणिअ वि [प्रणीत सुन्दर, मनोहर । भूमि प्रामा)। २ प्रयोग, व्यापार, चेष्टाः 'तिविहे (से ४, ३१; गा २२)।
स्त्री [भूमि मनोज्ञ भूमि (भग १५)। परिणहाणे पएणते तं जहा-मणपणिहाणे, पणामिअ वि [प्रणमित नत, नमा हुआ; पणिअट्ट वि [पणितार्थ] चोर (दस ७, वयपणिहाणे, कायपणिहाणे (ठा ३, १, ४, 'पणामिया सायर' (स ३१६) । ___३७)।
१, भग १८ उवा)। ३ प्रभिलाष, कामना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org.