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३२८ पाइअसहमहण्णवो
चिहुर-चुक्क चिहुर [चिकुर] केश, बाल (पामा सुपा | करेऊण' (सुपा ५८४) । २ क्षुद्र कीट-विशेष, | चुंचुलि पुं[दे] १ चुंच चोंच । २ जुलुक, २८१)। झींगुर (कुमा; दे १, २६)।
पसर, एक हाथ का संपुटाकार (दे ३, २३)। ची । देखो चेइअ (हे १, १५१; सार्थ चीवटी स्त्री [दे] भल्ली, भाला, शन-विशेषचंचलिअ विदे]१ अवधारित, निश्चित । चीअ ५७ ६३)। चीअनचिता मुर्दे को फूंकने के लिए चीवर न[चीवर वस्त्र, संन्यासियों या भिक्षुओं
२न. तृष्णा, लालच, सस्पृहता (हे ३,२३)। चनी हुई लकड़ियों का ढेर 'चीए बंधुस्स व ! के पहनने का कपड़ा (सुर ८, १८८; ठा |
चुंचुलिपूर पुं [दे] चुलुक चुल्लू, पसर (दे भट्ठिाई रुअई समुच्चिरणइ' (गा १०४)। चीइ देखो चेइअ (सुर ३, ७५)। चीहाडी स्त्री [दे] चीत्कार, चिल्लाहट, पुकार,
चुछ वि [दे] परिशोषित, सूखाया हुआ (दे चीड वि [दे] काला काँच की मणिवाला | हाथी की गर्जना या चिघाड़ना (सुर १०,
३, १५)।
चुंछिअ वि [दे] सूखा हुआ, परिशोषितः (सिरि ९८०)।
| १८२)। चीण वि [चीन] १ छोटा, लघु, 'चीणचिमि-चीही स्त्री [दे] मुस्ता का तृण-विशेष (दे ३,
'चुंछियगल्लं एयं, मा भत्तार हला कुणसु'
(सुपा ३४६)। ढवंकभग्गणास' (णाया १, ८-पत्र १३३)। १४; ६२)। २ पुं. म्लेच्छ देश-विशेष, चीन देश (पएह | चु अक [च्यु] १ मरना, जन्मान्तर में जाना।
चुंट सक [चि फूल वगैरह को तोड़ कर १, १, स ४४३) । ३ चीन देश का निवासी, २ गिरना । भवि. चइस्सामि (कप्प)। संकृ.
इकट्ठा करना । वकृ. चुंटंत (सुपा ३३२)। चीनी या चीना (पण्ह १,१). ४ धान्य-विशेष, चइऊण, चइत्ता, चइअ (उत्त ६ ठा चुटिर विदे] चुननेवाला (दे६, ११६ टी)। व्रीहि का भेद (सण); 'चीणाकूर छलिया- ८. भग)। कृ. चइयव्व (ठा ३, ३)। चुंढी स्त्री [दे] थोड़ा पानीवाला अखात जलातक्केण दिन्न' (महा)। पट्ट पुं [पट्ट] चुअ अक [श्चुत् ] झरना, टपकना। शय (णाया १, १-पत्र ३३)। चीन देश में होनेवाला वन-विशेष (पएह १, चुअइ (हे २, ७७)।
चुपालय [दे] देखो चुप्पालयः ४)। °पिटु न [°पिष्ट] सिन्दूर-विशेष (राय; | चुअ सक [ त्यज् ] त्याग करना, परिहार 'ताव य सेज्जासु ठियो, पएण १७)। करनाः 'एयमटुंमिगे 'ए' (सूम १, १, २,
चंदगइखेयरो निसासमए । चीणंसु [चीनांशु, क] १ कीट-विशेष, १२)
पालएण पेच्छइ, चीणंसुय। जिसके तन्तुओं से वस्त्र बनता है चुअवि [च्युत] १ च्युत, मृत, एक जन्म
निवडतं रयणपज्जलिय' (बृह १)। २ चीन देश का वस्त्र-विशेष से दूसरे जन्म में अवतीर्ण (भगः महा; ठा
(पउम २६, ८०)।घीणंसुसमूसियधयविराइय' (सुपा ३४ अणु, ३, १)। २ विनष्टः 'चुपकलिकलुस (अजि
चुंब सक [चुम्ब] चुम्बन करना। चुबइ १८)। ३ भ्रष्ट, पतित (णाया १, ३) २)। चीया स्त्री. देखो चीअ = चिता: 'चीयाए चुइ स्त्री [च्युति च्यवन, मरण (राज)।
(हे ४, २३९)। वकृ. चुंबत (गा १७६;
५१९)। कवकृ. चुबिज्जत (से १, ३२)। पक्खिउं तत्तो उद्दीविभो जलणो' (सुर ६,
चुंकारपुर न [चुकारपुर] एक नगर (सम्मत्त १४५)।
संकृ. चुंबिवि (अप) (हे ४, ४३६) । कृ. चुचुअ ' [दे] शेखर, अवतंस, मस्तक का
चुंबिअव्व (गा ४६५)। चीर न [चीर] वस्त्र-खण्ड, कपड़े का टुकड़ा भूषण (दे ३, २६)।
चुंबण न [चुम्बन] चुम्बन, चुम्बा चूमा (गा (मोघ ६३ भा श्रा १२; सुपा ३६१)1 कंडूस
| चुचुअ पुं[चुञ्चुक] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २१३; कप्पू)। गपट्ट [कण्डूसकपट्ट] जैन साधुनों का
२ उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति चुंबिअ वि [चुम्बित] १ चुम्बा लिया हुआ, एक उपकरण, रजोहरण का बन्धन-विशेष
कृत-तुम्बन । २ न. चुम्बन, चुम्बा (दे ६, (निचू ५)।
चुंचुण पुं [चुचुन] इभ्य (धनी) जाति- ९८)। चीरग पु[चीरक] नीचे देखो (गच्छ २)।
विशेष, एक वैश्य-जाति (ठा ६–पत्र ३५८) चुंबिर वि [चुम्बित्] चुम्बन करनेवाला चोरिय पुंचीरिक] १ रास्ता में पड़े हुए चुंचुणिअ वि [दे] १ चलित, गत । २ (भवि)। चीथड़ों को पहननेधाला भिक्षुक । २ फटा-टूटा च्युत, नष्ट (दे ३, २३)।
चुंभल पुं[दे] शेखर, अवतंस, शिरो-भूषण कपड़ा पहननेवाली एक साधु-जाति (णाया
चुंचुणिआ स्त्री [दे] गोष्टी की प्रतिध्वनि।। (दे ३, १६)। १, १५-पत्र १९३)।
२ रमण, रति, संभोग । ३ इमली का पेड़ । चुक भक [भ्रंश] १ चूकना, भूल करना । चीरिया स्त्री [चीरिका] नीचे देखो (सुर ८, ४ युत-विशेष, मुष्टि-बूत । ५ यूका, खटमल, | २ भ्रष्ट होना, रहित होना, वन्चित होना। १८८)। क्षुद्र कीट-विशेष (दे ३, २३)।
३ सक. नष्ट करना, खण्डन करना । चुक्कइ चीरी स्त्री [चीरी] १ वस्त्र-खण्ड, वस्त्र का चुंचुमालि वि [दे] १ प्रलस, मालसी, दीर्घ-1 (हे ४, १७७; षड् ); 'सो सम्वविरइवाई, ट्रकड़ा. 'तो तेण निययवत्थंचलाउ चीरीउ। सूत्री (दे ३,१८)
चुक्कइ देसं च सव्वं च (विसे २६८४)।
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