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पाइअसहमहण्णवो
ति-ति
ति देखो तइअ = तृतीय (कम्म २, १६)M त्रिंशत् ] १ संख्या-विशेष, ३३ । २ तेतीस पुरुषार्थ (ठा ४, ४-पत्र २८३; स ७०३; °भाग, भाय, हा '[ भाग] तृतीय | संख्यावाला, तेत्तीस (कप्पः जी ३६; सुर १२, उप पृ २०७)। २ लोक, वेद और समय भाग, तीसरा हिस्सा (कम्म २; गाया १, १३६; दं २७) 4 °दंड न [°दण्ड] १ हथि- इन तीन का वर्ग । ३ सूत्र, अथं और उन १६-पत्र २१८ कप्पू)
यार रखने का एक उपकरण (महा) । २ तीन दोनों का समूह (प्राचू १; प्रावम) वण्ण ति देखो थी; 'उलूलु गायति झुरिण सभत्तिपुत्ता दण्ड (प्रौप)। दंडि पुं[दण्डिन्] संन्यासी, पुं[पर्ण] पलाश वृक्ष (कुमा) 'वरिस वि तिम्रो चच्चरियाउदिति' (रंभा)
सांख्य मत का अनुयायी साधु (उप १३६ टीः [वर्ष] तीन वर्ष को अवस्थावाला (वव
सुपा ४३६ महा)। "नवइ स्त्री [नवति] १ । ३) वलि स्त्री [°वलि] चमड़ी की तीन ति त्रि.ब. [त्रि] तीन, दो और एक (नव ४;
संख्या विशेष, तिरानबे । २ तिरानबे संख्या- रेखाएँ (कप्पू) वलिय वि [°वलिक] महा) अणुअन ["अणुक] तीन पर
वाला (कम्म १, ३१)1 पंच त्रि.ब. तीन रेखावाला (राय) वली देखो वलि माणों से बना हुआ द्रव्य; 'प्रणप्रतएहि
[पञ्चन्] पंद्रह (मोघ १४), 'पंचासइम (गा २७८; प्रौप)4 बट्ट [पृष्ठ] भरतपारद्धदब्ने निअरणनं ति निद्देसा' (सम्म
वि | °पश्चाश] त्रिपनवा (पउम ५३, १५०)- १३६) उण वि [गुण] १ तीनगुना ।
क्षेत्र के भावी नवम वासुदेव (सम १५४) ।। २ सत्व रजस् और तमस् गुणवाला (अच्चु
पह न [°पथ] जहाँ तीन रास्ते एकत्रित । "वय न [पद] तीन पाववाला (दे ८, १)। ३०) उणिय वि [गुणित] तीनगुना
होते हों वह स्थान (राज)। पायण न वहआ स्त्री [पथगा] गंगा नदी (से ६, (भवि) उत्तरसय वि [उत्तरशततम]
[पातन] १ शरीर, इन्द्रिय और प्राण इन ८ अच्नु ३) वायणा नी ["पातना] एक सौ तीसरा, १०३ वा (पउम १०३,
तीनों का नाश। २ मन, वचन और काया देखो पायग (पएह १, १) "विटु, १७६) उल वि ['तुल] १ तीन को
का विनाश (पिंड)। 'पुंड न [°पुण्ड] विट्ठु पुं [पृष्ठ, विष्टु] भारतक्षेत्र में जीतनेवाला। २ तीन को तौलनेवाला (णाया तिलक-विशेष (स ) पुर [°पुर] १ उत्पन्न प्रथम अध-चक्रवर्ती राजा का नाम १, :-पत्र ६४) ओयन [ ओजस्] दानव-विशेष । २ न, तोन नगर (राज) (सम ८८ पउम ५, १५५) वह वि विषम राशि-विशेष (ठा ४, ३) कंड, पुरा स्त्री [पुरा] विद्या-विशेष (सुपा [विध] तीन प्रकार का (उवाः जी २० कंडग वि [°काण्ड, क] तीन काण्डवाला,
३६७) भंगी स्त्री [भङ्गी] छन्द-विशेष नव ३)4 विहार पुं ["विहार राजा तीन भागवाला (कप्पू: सूत्र १, ६)4°कडुअ
(पिंग)महुर न [मधुर] घी, शकर और कुमारपाल का बनवाया हुआ पाटण का न [कटुक सोंठ, मरीच और पीपल मधु (अण)। मासिआ स्त्री [त्रैमासिकी]
एक जैन मन्दिर (कुप्र १४४) संकु (अण)M करण देखो 'गरण (राज)M जिसकी अवधि तीन मास की है ऐसी एक
[शङ्क] सूर्यवंशीय एक राजा (अभि ८२)।
शकु- सूयवशाय एक काल न [काल] भूत, भविष्य और वर्त्त- प्रतिमा, व्रत-विशेष (सम २१) 'मुह वि
संझ न [ सन्ध्य] प्रभात, मध्याह्न और मान काल (भगः सुपा ८८) ५ काल देखो | [°मुख] १ तीन मुखवाला (राज)। २ पुं. सायंकाल का समय (सुर ११, १०६)। 'काल (सुपा १६६)। खंड वि ['खण्ड] भगवान् संभवनाथजी का शासन-देव (सति सद वि ["पष्ट] तिरसठवाँ, ६३ वाँ (पउम तीन खण्डवाला (उप १८६ टी) खंडा- ७) रत्त न [रात्र मीन रात (स ६३, ७३)4 सढि स्त्री [ षष्टि] तिरसठ, हिवः ["खण्डाधिपति] अर्ध चक्रवर्ती ३४२); 'धम्मपरस्स मुहुत्तोत्रि दुल्लहो किंपुण ६३ (भवि)। सत्त त्रि.ब. [सप्तन्] राजा, वासुदेव (पउम ६१, २६) गडु, तिरत्त' (कुप्र ११८)1 राति न [राशि एकीस (श्रा ६)। सत्तखुत्तो प्र[सप्त'गडुअ देखो कडा (स २५८: २६३) । जीव, अजीव और नोजीव रूप तीन राशियाँ कृत्वस् ] एकीस बार (णाया १, ६; सुपा
गरण न [करण] मन, वचन और काया (राज) लोअन ['लोकी] स्वर्ग, मत्यं ४४६) समइय वि [°सामयिक] तीन (द्र २०) गुण देखो 'उण (अणु)।- और पाताल लोक (कुमा; प्रासू ८६; सं १) समय में उत्पन्न होनेवाला, तीन समय की 'गुत्त वि [गुप्त] मनोगुप्ति आदि तीन 'लोअण पु[लचन] महादेव, शिव अवधिवाला (ठा ३,४) सरय न [सरक] गुप्तिवाला, संयमी (सं ८)- गोण वि (श्रा २८ पउम ५, १२२, पिंग) लोअ. तीन सरा या लड़ीवाला हार (णाया १, [कोण] तीन कोनेवाला (राज)। चत्ता पुज पुं[लोकपूज्य धातकीषण्ड के विदेह १ प्रौपा महा)। २ वाद्य-विशेष (पउम ६६, स्त्री [°चत्वारिंशत् ] तेतालीस (कम्म ४, में उत्पन्न एक जिनदेव (पउम ७५, ३१) ४४). °सरा स्त्री [°सरा] मच्छली पकड़ने ५५) 4 जय न [जगत् ] स्वर्ग, मत्यं 'लोई स्त्री [लोकी] देखो लोअ (गउड का जाल-विशेष (विपा १, ८) सरिय न और पाताल लोक (ति १)। जयण पुं भत्त १५२) लोग देखो लोअ (उप पृ ["सरिक] १ तोन सरा या लड़ी वाला हार ['नयन] महादेव, शिव (से १५, ५८ सुपा ३) वई स्त्री [पदी] १ तीन पदों का समूह। (कप्प)। २ वाद्य-विशेष (पउम ११३,११)। १३८, ५६६; गउड) तुल देखो 'ठल । २ भूमि में तीन बार पाँव का न्यास (ौप)। ३ वि. वाद्य-विशेष-संबन्धी (पउम १०२, (णाया १, १ टी-पत्र ६७), 'त्तिस । ३ गति-विशेष (अंत १६). वग्ग पुं १२३)-1 °सीस पुं[ शीर्ष ] देव-विशेष (अप) देखो त्तीस । त्तीस श्रीन [त्रय- [वर्ग] १ धर्म, अर्थ और काम ये तीन : (दीव), 'सूल न [शूल] शस्त्र-विशेष (पउम
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