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दुव्वसु-दुस्सह
पाइअसहमहण्णवो दुव्वसु वि [दुर्वसु] अभव्य, खराब द्रव्य दुबिलसिय न [दुर्विलसित] १ स्वच्छन्दी | दुस्सउण न [दुश्शकुन] अपशकुन (णमि (प्राचा)। मुणि पुं[मुनि मुक्ति के लिए विलास । २ निकृष्ट कार्य, जघन्य काम, नीच २०)। अयोग्य साधु (प्राचा)। काम (उप १३६ टी)।
दुस्संचर वि [दुस्संचर] जहाँ दुःख से जाया दुवह वि [दुर्वह] दुर्धर, जिसका वहन दुव्विसह वि [दुविषह] अत्यन्त दुःसह, | जा सके, दुर्गम (स २३१, संक्षि १७)। कठिनाई से हो सके वह (स १६१, सुर १, असह्य (गा १४८, सुर ३, १४४, १४, दुरसंचार वि [दुस्संचार] ऊपर देखो (सुर १४)।
२१०)। दुव्वा देखो दुरुव्वा (कुमा; सुर १, १३८)। दुव्विसोझ वि [दुर्विशोध्य शुद्ध करने को दुम्त पुं[दुष्यन्त चन्द्रवंशीय एक राजा, दुव्वाइ वि [दुर्वादिन] अप्रियवक्ता (दस अशक्य (पंचा १७)।
शकुन्तला का पति (पि ३२६)। ६,२)।
दुबिहिअ न [दुर्विहित] दुष्ट अनुष्ठान दुस्संबोह वि [दुस्संबोध] दुर्बोध्य (प्राचा)। (दसपू १, १२)।
दुस्सज्झ वि [दुस्साध्य] दुष्कर (सुपा ८ दुव्वाय पुं[ दुर्वाक्] दुर्वचन, दुष्ट उक्तिः |
दुबिहिय वि [दुर्विहित] १ खराब रीति से
| ५६६)। 'वयणेणवि दुब्बाभो न य कायव्वो परस्स
किया हुआ, 'दुविहियविलासियं विहिणो' दुस्सण्णप्प देखो दुसन्नप्प (वृद्ध ४)। पीडयरों (पउम १०३, १४३)।
(सुर ४, १५, ११, १४३)। २ असुविहित, दुस्सत्त वि [दुस्सत्त्व] दुरात्मा, दुष्ट जीव दुव्बाय पु[दुर्वात] दुष्ट पवन (णमि ४)। अयशस्वी (माव ३)।
(पउम ८७,६)। दुव्वार वि [दुर] दुःख से रोकने योग्यव्वोझ वि [दुर्वाह्य दुवंह, दुःख से ढोने दुस्सन्नप्प देखो दुसन्नप्प (कस)। अवार्य (से १२, ६३, उप ६८६ टी; सुपा
योग्य (से ३, ५, ४, ४४० १३, ६३; वजा दुस्समदुस्समा स्त्री [दुष्षमदुष्पमा] काल१९७७ ४७१, अभि ११६)।
विशेष, सर्वाधम काल, अवसपिरणी काल का दुव्वारिअ देखो दुवारिअ = दौवारिक (प्राप्र)। | दुव्वोझ वि [दे] दुर्घात्य, दुःख से मारने छठवाँ और उत्सपिणी काल का पहला पारा, दुव्वाली स्त्री [दे] वृक्ष-पंक्ति (पान)। योग्य (से ३, ५)।
इसमें सब पदार्थों के गुणों की सर्वोत्कृष्ट हानि दुव्वास पुं[दुर्वासस् ] एक ऋषि (अभि |
दुसंकड न [दुःस्संकट] विषम विपत्ति होती है, इसका परिमारण एक्कीस हजार ११८)। (भवि)।
वर्षों का है (ठा १, ६, इक)। दुब्विअड वि [दुर्विवृत] परिधान-वजित, दुसंचर देखो दुस्संचर (भवि)।
दुस्समदुसुसमा स्त्री [दुष्षमसुषमा] बेया| दसंथ वि द्विसंस्था नग्न, नंगा (ठा ५, २–पत्र ३१२) ।
दो बार सुनने से ही | लीस हजार कम एक कोटाकोटि सागरोपम का
उसे अच्छी तरह याद कर लेने की शक्तिवाला दुम्विअड्ढ वि [दुर्विदग्ध] ज्ञान का भूठा
परिमाणवाला काल-विशेष, अवसर्पिणी काल (धर्मसं १२०७)। दुव्विअद्ध अभिमान करनेवाला, दुश्शिक्षित
का चतुर्थ और उत्सर्पिणी काल का तीसरा (पाना गा ६५)।
दुसन्नप्प वि [दुस्संज्ञाप्य दुर्बोध्य (ठा ३, | पारा (कप्पः इक)।
४-पत्र १६५)। दुग्विजाणय वि [दुर्विज्ञेय] दुःख से जानने
दुस्समा स्त्री [दुष्षमा] १ दुष्ट काल । २ दुसमदुसमा देखो दुस्समदुस्समा (भग
एक्कीस हजार वर्षों के परिमाणवाला कालयोग्य, जानने को अशक्य 'अकुसलपरिणाम
विशेष, अवसर्पिणी-काल का पाँचवाँ और मंदबुद्धिजणदुन्विजाणए' (पएह १, १)।
दुसमसुसमा देखो दुस्समसुसमा (ठा १)। उत्सपिणी काल का दूसरा पारा (उप ६४८; दुन्विढप्प वि [दुरर्ज दुःख से अजन करने
दुसमा देखो दुस्समा (भग ६, ७, भवि)। योग्य, कठिनाई से कमाने योग्य (कुप्र २३८)।
दुसह देखो दुस्सह (हे १, ११५, सुर १२, दुस्समाण देखो दुस्स। दुग्विणीअ वि [दुविनीत] अविनीत, उद्धत १३७, १३६)।
दुस्सर पुं[दुःस्वर] १ खराब आवाज, (पउम ६६, ३५; काल)।
दुसाह वि [दुस्साध] दुःसाध्य, कष्ट-साध्य कुत्सित कण्ठ । २ कर्म-विशेष, जिसके उदय दुविण्णाय वि [दुर्विज्ञात] असत्य रीति से (पउम ८६, २२)।
से स्वर कर्ण-कटु होता है (कम्म १, २७; जाना हुआ (प्राचा)।
दुसिक्खिअ वि [दुशिक्षित] दुर्विदग्ध नव १५) । णाम, नाम न [ नामन्] दुविभज देखो दुविभज (राज)। (पउम २५, २१)।
दुःस्वर का कारण-भूत कर्म (पंचः सम ६७)। दुविभव्व वि [दुर्विभाव्य दुर्लक्ष्य, दुःख दुसुमिण देखो दुस्सुमिण (पडि)।
दुस्सल वि [दुश्शल] दुविनीत, अविनीत से जिसकी मालोचना हो सके वह (ठा ५, दुसरुल्लयन [दे] गले का प्राभूषण-विशेष (बृह १)। १ टी-पत्र २६६)। (स ७६)।
दुस्सह वि [दुस्सह] जो दुख से सहन हो दुन्विभाव वि [दुर्विभाव] ऊपर देखो दुस्स सक [द्विष् ] द्वेष करना। वकृ. सके, असह्य (स्वप्न ७३ हे १, १३, ११५; (विसे)।
दस्समाण (सूत्र १, १२, २२)।
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