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पक्खोड-पगाम पाइअसद्दमहण्णवो
५०५ पक्खोड सक [प्र+ छादय् ] ढकना, पगड वि [प्रकृत] प्रविहित, विनिर्मित (उत्त पगम्भिअ वि [प्रगस्भिल] धृष्टता-युक्त (सूम पाच्छादन करना । संकृ. पक्खोडिय (उप
१, १, १, १३, १, २, ३, ४)। ५८४)।
पगड [प्रगत बड़ा गड्ढा या गड़हा (माचा पगभित्तु वि [प्रगल्भित्] काटनेवाला) पक्खोड सक [प्र + स्फोटय] १ खूब | २, १०, २)।
'हंता छेत्ता पगभित्ता' (सूम १, ८, ५)। झाड़ना । २ बारम्बार झाड़ना । पक्खोडिजाः पगडण न [प्रकटन] प्रकाश करना, खुला |
पगय न [प्रकृत] १ प्रस्ताव, प्रसंग (सूमनि वक पक्खोडंत (दस ४,१)। प्रयो. पक्खोडा- करना (दि)।
४७)। २ पु. गाँव का अधिकारी (पथ विजा (दस ४,१)।
पगडि स्त्री [प्रकृति] १ भेद; प्रकार (भग)। २६८)। पक्खोड [प्रस्फोट] प्रमार्जन, प्रतिलेखन २-देखो पगइ (सम ५६; सुर १४, | पगय वि [प्रगत] संगत (श्रावक १८६)। की क्रिया-विशेष (पव २)।
पगय वि [प्रकृत] प्रस्तुत, अधिकृत (विसे पक्खोडण न [शदन] धूनन, पाना (कुमा)। पगडीकय वि[प्रकटीकृत] व्यक्त किया हमा,
८३३; उप ४७६)। पाखोडिअ वि [शदित निओटित. झाड़ | स्पष्ट किया हुमा (सुपा १८१)। कर गिराया हुमा (दे ६, २७पाप्र)।
पगय वि [प्रगत] १ प्राप्त (राज) । २ जिसने पगडूढ सक [प्र + कृष] खींचना । कवकृ.
गमन करने का प्रारम्भ किया हो वहा 'मुणिपक्खोडिय देखो पक्खोड = शद्, प्र+ छाय् । पढिजमापा (विपा १, १)।
गोवि जहाभिमयं पगया पगएण कज्जेण पक्खोभ सक [प्र + क्षोभय ] क्षुब्ध करना, पगच्च देलो पप्प =+ कल्पय् । संकृ. (सुपा २३५) । ३ न. प्रस्ताव, अधिकार क्षोभ उत्पन्न कर हिला देना । कवकृ. पगप्पएत्ता (सूम २, ६, ३७)।
(सूम १, ११, १५)। पक्खुन्भंत (से २, २४)।
पगप्प देखो पकप्प = प्र + क्लृप् (सूम १, | पगय न [दे] पग, पाव, पैरः 'एत्थंतरम्मि पक्खोलण न [शदन] १ स्खलित होनेवाला।
लग्गो चंडमारुनो। वेण भग्गो तुरयपगयमग्गों' २ वि. रुष्ट होनेवाला (राज)।
पगप्प वि. [प्रकल्प] १ उत्पन्न होनेवाला, (महा)। पखम (पै) देखो - पक्ष्मन्, 'पखमलणपणे प्रादुर्भूत होनेवालाः 'बहुगुणप्पगप्पाई कुजा
पगर पु[प्रकर] समूह, राशि (सुपा ६५५) । (प्राकृ. १२४)।
प्रत्तसमाहिए' (सूम १,३,३, १९) । देखो पगरण नाप्रकरण]१ अधिकार, प्रस्ताव । पखोड वेझो पक्खोड = प्रस्फोट (पब २)। पकप्प = प्रकल्प (भाषा)।
२ ग्रंथ-खएड-विशेष, ग्रंथांश-विशेष (विसे पखल वि [प्रखर] प्रचण्ड, तीव्र, तेज (प्राप्न)। पराप्पिअ वि [प्रकल्पित] प्ररूपित, कथित;
१११५)। ३ किसी एक विषय को लेकर पगड स्त्री प्रकृति]१ प्रकृति, स्वभाव (भगा ण उ एयाहि दिट्टीहि पुब्वमासि पगप्पियं बनाया हा छोटा ग्रन्थ (उव)। कम्म १, २ सुर १४, ६६, सुपा ११०)। (सूम १, ३, ३, १९) । बेखो पकप्पि ।
पगरिअ वि [प्रगलित] गलित्कुष्ठ, कुष्ठ-विशेष २ प्रकृत पर्थ, प्रस्तुत अर्थ; “पडिसेहदुर्ग पगई पगप्पित्त वि [प्रकल्पयित, प्रकर्तयित]|
की बीमारीवाला (पिंड ५७२)। गमेह' (विसे २५०२)। ३ प्राकृत लोक, साधा- काटनेवाला, कतरनेवालाः 'हंता छेत्ता पब्भि
पगरिस [प्रकर्ष १ उत्कर्ष, श्रेष्ठता (सुपा रण जन-समूह; 'विनमुद्धारे बहुदव्वं पगईण ! (?प्पि)त्ता प्रायसायाणुगामिणो' (सूम १,८,
॥ आयसायायुगामा (सून १८, १०६)। २ आधिक्य, अतिशय (सुर ४, (सुपा ५६७)। ४ कुम्भकार आदि मठारह |
१९९)। मनुष्य-जातियाँ: अट्ठारसपगइन्भतराण को सो पगटभ प्रक [प्र+गल्भ] १ घृष्ता
पगरिसण न [प्रकर्षण] ऊपर देखो (यति न जो एइ'(प्राक १२)। ५ कर्मों का भेद (सम करना, धृष्ट होना । २ समर्थ होना। पगब्भइ,
१९)। १)। ६ सत्व, रज और तम की साम्या- पगम्भई (प्राचाः सूत्र १, २, २, २१; १, पगल प्रक [प्र+गल्] झरना, टपकना । वस्था। ७ बलदेव के एक पुत्र का नाम (राज)। २, ३, १०; उत्त ५, ७)।
धकृ. पगलंत (विपा १, ७) महा)। बंध ( [बन्ध] कम पुद्गलों में भिन्न- पगब्भ वि [प्रगल्भ] धृष्ट, ढीठ (पउम ३३, |
| पगहिय वि प्रगृहीत ग्रहण किया हुआ, शक्तियों का पैदा होना (कम्म १, २)। देखो &E)।२ समर्थ (उप २६४ टी)।
उपात्त (सुर ३, १६७)। पगडि। पगब्भ न [प्रागल्भ्य] धृष्टता, ढीठाई;
पगाइय वि [प्रगीत] जिसने गाने का प्रारंभ पगंठ पु[प्रकण्ठ] १ पीठ-विशेष । २ अन्त ___ 'पगब्भि पाणे बहुणंतिवाती (सूम १, किया हो बहः 'पगाइयाई मंगलमंतेउराई'
का अवनत प्रदेश (जीव ३)। पगंध सक [प्र+कथय ] निन्दा करना
| पगब्भणा स्त्री [प्रगल्भना] प्रगल्भता, पगाढ वि [प्रगाढ] अत्यन्त गाढ़ (विपा १, 'अलियं पगं(क)थे अदुवा पगं(क)थे' (प्राचा)। धृष्टता (सूत्र १, १०, १७)।
१. सुपा ५३०)। पगड वि [प्रकट] व्यक्त, खुला, स्पष्ट, प्रत्यक्ष, पगब्भा स्त्री [प्रगल्भा] भगवान् पाश्वनाथ पगाम देखो पकाम (प्राचा; श्रा १४. सुर ३, (पि २१९)। की एक शिष्या (प्रावम)।
८७ कुप्र ३१५)।
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