________________
| पक्खिप्पमाण | देखो पक्खिव ।
'e
५०४ पाइअसहमहण्णवो
पक्खंतर-पक्खोड पक्खंतर न [पक्षान्तर] अन्य पक्ष, भिन्न पक्खाल सक [प्र+क्षालय ] पखारना, पक्खिप्प ।
पक्ष, दूसरा पक्ष (नार-महावी २५)। शुद्ध करना, धोना । कवकृ. पक्खालिजमाण | पक्खंद सक [+ स्कन्द्] १ माक्रमण (गाया १, ५) । संकृ पक्खालिअ, पक्खा- पक्खिव सक [प्र+क्षिप्] १ फेंकना, करना । २ दौड़कर गिरना। ३ अध्यवसाय लिऊण (नाट–चैत ४०; महा)। फेंक देना । २ छोड़ना, श्यागना । ३ डालना। करना: 'पक्वंदे जलिय जोइं घूमकेउं दुरासय पक्खालणन [प्रक्षालन] पखारना, घोना
पक्खिवइ (महा कप्प)। पक्खिवइ (महा; (राज), 'मरिण व पक्खंद पयंगसेणा' (स ५२ औप)।
कप्प)। पक्खिवह, पक्खिवेज्जा (प्राचा २, (उत्त १२, २७)।
३, २, ३)। कवकृ. पक्खिप्पमाण (णाया पक्खालिअ वि [प्रक्षालित] पखारा हुमा, पक्खंदण न [प्रस्कन्दन] १ माक्रमण । २
१, ८-पत्र १२६; १४७)। संव, अध्यवसाय । ३ दौड़कर गिरना (लिवू ११)। धोया हुआ (प्रौपः भवि)।
पक्खिऊण, पक्खिप्प (महा; सूप १, ५, पक्खंदोलग पुं [पक्ष्यन्दोलक] पक्षी का पक्खासण न [पक्ष्यासन] प्रासन-विशेष, १. पि ३१९)। कृ. पक्खिवेयव्य (उप हिंडोला, झूला (राय ७५)।
जिसके नीचे अनेक प्रकार के पक्षियों का ६४८ टी)। प्रयो. वकृ. पक्खिवावेमाण पक्खजमाण वि [प्रखाद्यमान] जो खाया | चित्र हो ऐसा प्रासन (जीव ३)।
(गाया १, १२)। जाता हो वह (सूम १, ५, २)। पक्खि पुंस्त्री [पक्षिन] पाखी, पक्षी (ठा ४,
पक्खीण वि प्रिक्षीण] प्रत्यन्त क्षीणः 'महं पक्खडिअ विदे] प्रस्फुरित, विजृम्मित, ४. प्राचा, सुपा ५९२)। स्त्री. णी (श्रा
पक्खीणविभवो (महा)। समुत्पन्न; 'पक्खडिए सिहिपडित्विरे विरहे। १४)। "बिराल पुंखी 'बिराल] पक्षि- | पक्खुडिअ वि [प्रखण्डित] खण्डित, म(दे ६, २०)।
विशेष (भग १३, ९)। स्त्री. "ली (जीव संपूर्ण (सुपा ११९)। पक्खर सक [सं+ नाहय ] संनद्ध करना, १)। राय ( [राज] गरुड़ (सुपा पक्खुम्भ मक [H+ क्षुभ् ] १ क्षोभ प्रश्व को कवच से सज्जित करना । पक्खरेह २१०)। नीचे देखो।
पामा। २ वृद्ध होना, बढ़ना । बकृ.मक्खु(सुपा २८८) । संकृ पक्खरिअ (पिंग)। पखिअ पुत्री [पक्षिक] १ ऊपर देखो (श्रा
ब्भंत (से २, २४)। पक्खर [प्रक्षर] क्षरण, टपकना (कर्पूर
२८) । वि.पक्षपाती, तरफदारी करनेवालाः | पक्खुब्भंत देखो पक्खोभ। २६)।
'तप्पक्खिो पुणो अपणो' (श्रा १२)। पक्खुभिय वि Lप्रक्षुाभत ] क्षाभ प्राप्त, पक्खर [दे] जहाज की रक्षा कारक उप
पक्खिअ वि [पाक्षिक स्वजन, जाति का
. करण, सामग्री (सिरि ३८७)।
प्रक्षुब्ध (औप)। (पव २६८)।
पक्खेव पुं [प्रक्षेप] शास्त्र में पीछे से किसी पक्खर न [दे] पाखर, अश्व-संनाह, घोड़े का
के द्वारा डाला या मिलाया हुमा वाक्य (धर्मस कवच (कुप्र ४४६; पिंग)। पक्खिअ वि [पाक्षिक] १ पास में होने
१०११)। हार पुं[हार] कवलाहार वाला । २ पक्ष से सम्बन्ध रखनेवाला, अर्धपक्खरा श्री [दे] पाखर, प्रश्व-सनाह (दे ६, मास-सम्बन्धी (कप्पः धर्म २)। ३न. पर्व
(सूमनि १७१)। १०); 'मोसारिभपक्वरे (विपा १, २)।
विशेष, चतुर्दशी (लहुन १६ द्र ४५)।
| पक्खेव । [प्रक्षेप, क] १ क्षेपण, पक्खरिअ वि [संनद्ध] कवचित, संनद्ध,
पक्खि पुं [पक्षिक] नपुंसक-विशेष,
पक्खेवग। फैकना; 'बहिया पी मलमक्खे। कवच से सज्जित (भश्व) (सुपा ५०२; जिसको एक पाख में तीव्र विषयाभिलाष
(उवा)। २ पूर्ति करनेवाला द्रव्य, पूत्ति के पुष १२० भवि)। होता हो और एक पक्ष में अल्प, ऐसा नपुंसक
लिए पीछे से डाली जाती वस्तुः 'अपक्खेवपक्खल पक [प्र + स्खल्] गिरना, पड़ना,
गस्स पक्खेवं दलयह' (णाया १, १५-पत्र (पुप्फ १२७)। स्खलित होना। पक्खलइ (कस)। बक,
१९३)। पक्खिकायण न [पाक्षिकायन] गोत्र-विशेष, | पक्खलंत, पक्खलमाण (दस ५, १; पि जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है (ठा ७)।
पक्खेवण न [प्रक्षेपण ] क्षेपण, प्रक्षेप ३०६ नाट–मुच्छ १७ बृह ६)।
(प्रौप)। पक्खिण देखो पक्खिः पक्खाउन्जन [पक्षातोद्य] पखाउज, पखावज,
'जह पक्खिणाण पक्खेवय देखो पक्खेवग (बूह १)।
गरुडो (पउम १४, १०४)। एक प्रकार का बाजा, मृदंग (कप्पू)।
पक्खोड सक [वि+कोशय] १ खोलना। पक्खाय वि[प्रख्यात] प्रसिद्ध, विद्युत पक्खिणी देखो पक्खि।
२ फैलाना । पक्खोडइ (हे ४, ४२)। संकृ. (प्राय)।
| पक्खित्त वि [प्रक्षिप्त] फेंका हुमा (महा; पक्खोडिऊण (सुपा ३३८)। पक्खारिण पु [प्रक्षारिण] १ अनार्य-देश पि १८२).
पक्खोड सक [श] १ कंपाना । २ झाड़ विशेष । २ पुंनी. उस देश का निवासी पक्खिनाह पुं [ पक्षिनाथ ] गरुड पक्षी कर गिराना । पक्खोड (हे ४, १३०)। मनुष्य । श्री. णी (राय)। । (धर्मवि ८४)।
संकृ. पक्खोडिय (उप ५८४)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org