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पाइअसहमहण्णवो
पडिअग्ग-पडिएल्लिअ पडिअग्ग सक [प्रति + जाग्र] १ सम्हालना। पडिअरण न [प्रतिचरण] सेवा, शुश्रूषा १०५, १११)। ३ वानर-वंश के एक राजा २ सेवा करना, भक्ति करना। ३ शुश्रूषा (ोघ ३६ भाः श्रा १; सुपा २६)। का नाम (पउम ६, १५२) । करना; 'वच्छ ! पडियग्गेहि मरिणमोत्तियाइयं
पडिअरणा स्त्री [प्रतिचरणा] १ बीमार की पडिइंधण न [प्रतीन्धन] अस्त्र-विशेष, इन्धसारदव्वं' (स २८८), पडियरगह (स ५४८)। सेवा-शश्र षा (ोध ८३)। २भक्ति प्रादर, नास्त्र का प्रतिपक्षी प्रत्र (पउम ७१, ६४) । पडिअग्गिअ पि[दे] १ परिभुक्त, जिसका सत्कार (उप १३६ टी)। ३ आलोचना, पडिइक्क देखो पडिक (प्राचा)। परिभोग किया गया हो वह । २ जिसको निरीक्षण (प्रोघ ८३)। ४ प्रतिक्रमण, पाप- पडिउंचण न [दे] अपकार का बदला (पउम बधाई दी गई हो वह । ३ पालित, रक्षित कर्म से निवृत्ति । ५ सत्-कार्य में प्रवृत्ति ११, ३८; ४४, १६)। (आव ४)।
पडिउंबण न [परिचुम्बन] संगम, संयोग पडिअग्गिअ वि [अनुव्रजित ] अनुसृत पडिअलि वि [दे] त्वरित, वेग-युक्त (दे (से २, २७)। (द ६, ७४)।
६, २८)।
| पडिउच्चार सक [प्रत्युत् + चारय् ] उच्चापडिअग्गिअ वि [प्रतिजागत] भक्ति से पडिआइय सक [प्रत्या + पा] फिर से पान रण करना, बोलना (भगः उवा)। आहत (स २१)। करना । पडिआइयइ (दस १०, १)।
पडिउज्जम अक [प्रत्युद् + यम् ] सम्पूर्ण पडिग्गिर वि [अनुव्रजिन्] अनुसरण पडिआइय सक [प्रत्या + दा] फिर से ग्रहण
प्रयत्न करना । पडिउज्जमंति (चेइय ७८२) । करने की आदत वाला (कुमा)। करना। पडिआइयइ (दस १०, १)।
पडिउट्रिअ वि [प्रत्युत्थित] जो फिर से पडिअम पू [दे] उपाध्याय, विद्या-दाता पडिआगय पि प्रत्यागत] १ वापस पाया
खड़ा हुआ हो वह (से १५, ८० पउम ६१, गुरु (दे ६, ३१)। हुआ, लौटा हुआ (पउम १६, २६) । २ न.
४०)। पडिअट्टलिअ बि [दे] घृट, घिसा हुआ
प्रत्यागमन, वापस पाना (आचू १)।
पडिउण्ण देखो परिपुण्ण (से ५, १९) । (से ६, ३१)।
पडिआयण न [प्रत्यापन] फिर से पान, 'वंतस्स य पडिप्रायणं' (दसवू १,१)।
पडिउत्तर न [प्रत्युत्तर] जवाब, उत्तर (सुर पडिअत्त देखो परि + वत्त = परि + वृत् । संकृ. पडिअत्तिअ (नाट)। पडिआयण न [प्रत्यादान] फिर से ग्रहण २,१५८ भवि) ।
पडिउत्तरण न [प्रत्युत्तरण] पार जाना, पार
(दसचू १,१)। पांडअत्तण न [परिवर्तन परमार हेरफेर (से ५, ६६)।
'पडिआर पुं[प्रतिकार] १ चिकित्सा, उपाय, उतरना (निचू १)। पडिअमित्त प्रत्यमित्र मित्र-शत्रु, मित्र
इलाज (प्राव ४, कुमा)। २ बदला. शोध पडिउत्ति स्त्री [दे] खबर, समाचार: 'अम्मा
(प्राचा)। ३ पूर्वाचरित कर्म का अनुभव पियरस्स कुसलपडिउत्ती ससिणेहं परिपृठा' होकर पीछे से जो शत्रु हुआ हो वह (राज)। (सूत्र १, ३, १, ६)।
(महा)। पडिअम्मिय वि [प्रतिकर्मित] मण्डित,
"एता पडिआर पुं[प्रत्याकार] तलवार की म्यान पडि उत्थ वि [पर्युषित] संपूर्ण रूप से विभूषित (दे ६, ३५)।
(दे २, ५ स २१५); 'न एकम्मि पडियारे। अवस्थित (से ४, ५०)। पडिभर सक [प्रति + चर ] १ बीमार दोन्नि करवालाई मायति' (महा)। पडिउद्ध वि [प्रतिबुद्ध] १ जागृत, जगा
की सेवा करना । २ अादर करना । ३ पडिआर तिचार सेवा-सुथ षा (गाया हया (से १२, २२)। २ प्रकाश-युक्तः 'जलनिरीक्षण करना। ४ परिहार करना । संकृ. १.१३-पत्र १७६)।
णिहिवहपडिउद्धं प्रापरणामड्ढिनं विनंभइ पडियरिऊण (निचू १)। पडिआरय वि [प्रतिचारक] सेवा-शुश्रूषा
| व धणु" (से ५, २७)। पडिअर सक [प्रति + कृ] १ बदला चुकाना।। करनेवाला (णाया १, १३ टो-पत्र १८१)।
| पडिउवयार [प्रत्युपकार] उपकार का २ इलाज करना। ३ स्वीकार करना । हेकृ. स्त्री. रिया (णाया १, १-पत्र २८)। पडिकाउं (गा ३२०)। संकृ. 'तहत्ति पडिआरि वि [प्रतिचारिन्] ऊपर देखो
बदला, प्रतिफल (पउम ४८, ७२, सुपा पडिकाऊण ठाविमो एसो' (कुप्र ४०)। (वव १)।
पडिउस्सस अक [प्रत्युत् + श्वस्] पुनर्जी पडिअर पु[दे] नुल्ली-मूल, चुल्हे का मूल पडिइ सक [प्रति + ३] पोछे लौटना, वापस
वित होना, फिर से जीना । वकृ. पडि उस्सभाग (दे ६, १७)। आना । वकृ. पडिईत (उप ५६७ टी)।
संत (से ६, १२)। पडिअर पु [परिकर] परिवार, 'पडियरि हेकृ. पडिएत्तए (कस)।
पडिऊल देखो पडिकूल (अच्चु ८० से ३, ( ? र त्यो पुरिसो व्व नियत्तो तेहिं चेव पडिइ स्त्री [पतिति पतन, पात (वव ५)।
३५)। पएहि नलो' (कुप्र ५७)।
पडिइंद पुं [प्रतीन्द्र] १ इन्द्र, देव-राज पडिएत्तए देखो पडिइ । पडिअरग वि [प्रतिचारक] सेवा-शुश्रूषा (पउम १०५, ६)। २ इन्द्र का सामानिक- पडिएल्लिअ वि [दे] कृतार्थ, कृत-कृत्य (दे ६, करनेवाला (निचू १, वव १)।
देव, इन्द्र के तुल्य वैभववाला देव (पउम ३२)।
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